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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम् । (६१३) पञ्चमूलजलैधात वातिकं लवणोत्तरैः ॥ भद्रादिवर्गयष्ट्याह्वतिलैरालेपयेद्वणम्॥२॥वैरेचनिकयुक्तेन त्रैवृतेन विशोध्यच॥ विदारीवर्गसिद्धेन त्रैवृतेनैव रोपयेत् ॥३॥ पंचमूलोंके पानीकरके धोये हुये वातकी विद्रधीसे उपजे घावको नमक देवदार्वादिगणके औ-. षध मुलहटी तिल करके लेपित करै ॥२॥ वैरेचनिक औषधोंकरके युक्त हुये त्रैवृतनामक घृत करके शोधितकर पश्चात् विदारीवर्गके औषधोंमें सिद्ध किये ये त्रैवृतघृतकरके घावको आरोपित करै ॥३॥ क्षालितं क्षीरितोयेनलिम्पेद्यष्टयमृतातिलैः॥पैत्तं घृतेन सिद्धे न मञ्जिष्ठोशीरपद्मकैः॥४॥ पयस्याद्विनिशांश्रेष्ठायष्टीदुग्धैश्च रोपयेत् ॥ न्यग्रोधादिप्रवालत्वक्फलैर्वा कफजं पुनः ॥ ५॥ आरग्वधाम्बुना धौतं सक्तुकुम्भनिशातिलैः॥लिम्पेत्कुलत्थि कादन्तीत्रिवृच्छयामाग्नितिल्वकैः॥६॥ ससैन्धवैः सगोमूत्रैस्तैलं कुर्वीतरोपणम् ॥ दूधवाले वृक्षोंके रसोंकरके धोये हुये पित्तंकी अधिकतावाले विद्रधीके घावको मुलहटी गिलोय तिल मँजीठ खश पद्माखमें सिद्ध किये घृतकरके लेपित करै ॥ ४ ॥ दूधीहलदी दारुहलदी त्रिफला मुलहटी दूधमें सिद्ध किये घृतकरके अथवा वड आदि वृक्षोंके अंकुर छाल फलमें सिद्ध किये घृतकरके लेपित करे और कफकी विद्रधीके घावको ॥५॥ अमलतासके पानीसे धोकर सत्तू निशोत हलदी तिल करके लेपित करें और कुलथी जमालगोटाकी जड निशोत मालविकानिशोत चीता लोध ॥ ६ ॥ सेंधानमक गोमूत्र करके रोपणसंज्ञक तेलको करै ।। रक्तागन्तुद्भवे का- पित्तविद्रधिवक्रिया ॥ ७॥ रक्तसे और क्षतरूपादिसे उपजी विद्रधीमें पित्तकी विद्रधिकी तरह क्रिया करै ॥ ७ ॥ वरुणादिगणक्वाथमपक्केऽभ्यन्तरे स्थिते॥ऊषकादिप्रतीवापं पू ह्नेि विद्रधौ पिबेत् ॥८॥ घृतं विरेचनद्रव्यैः सिद्धं ताभ्यां च पाययेत् ॥ निरूहं स्नेहबस्ति च ताभ्यामेव प्रकल्पयेत् ॥ ९॥ शरीरके भीतर उपजी विद्रधीमें ऊषकादिगणके औषाधोंके प्रतिवापसे संयुक्त किये वरुणादि गणके क्वाथको प्रभातमें पीवै ॥ ८ ॥ विरेचन द्रव्योंकरके और ऊषकादिगण वरुणादि द्रव्योंकरके सिद्ध किये घृतको पूर्वोक्त विद्रधीमें पान करावै और इन्हीं दोनों गणोंके औषधोंकरके निरूह और स्नेहबस्तिको कल्पित करै ।। ९ ॥ पानभोजनलेपेषु मधुशिग्रुः प्रयोजितः ॥ दत्तावापो यथादोषमपक्कं हन्ति विद्रधिम् ॥१०॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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