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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५५०) अष्टाङ्गहृदयेण कायेनोत्तानं प्रत्यादित्यगुदं समम् ॥ समुन्नतकटीदेशमथ यन्त्रणवाससा ॥ ३॥ सक्थ्नोः शिरोधरायां च परिक्षिप्तमृजु'स्थितम् ॥ आलम्बितं परिचरैः सर्पिषाभ्यक्तपायवे॥४॥ततोऽ स्मै सर्पिषाभ्यक्तं निदध्यादृजुयन्त्रकम्॥शनैरनुसुखंपायौततो दृष्टा प्रवाहणात्॥५॥ यन्त्रे प्रविष्टं दुर्नामप्लोतगुण्ठितयाऽनुच॥ शलाकयोत्पीड्य भिषक् यथोक्तविधिना दहेत् ॥६॥ क्षारेणैवामितरत्क्षारेण ज्वलनेन वा ॥ महद्वा बलिनश्छित्त्वा वीतयन्त्रमथातुरम् ॥७॥ स्वभ्यक्तपायुजघनमवगाहेनिधापयेत्॥ निर्वातमन्दिरस्थस्य ततोऽस्याचारमादिशेत्॥८॥ एकैकमिति सप्ताहात्सप्ताहात्समुपाचरेत् ॥ बद्दलोंकरके रहित शरद वसंत आदि कालमें अत्यंतदुर्बलपनेसे रहित और विशेषकरके शुद्धकोष्ठवाला हलका तथा अल्प वा अनुलोमित भोजनकरनेवाला ।। १ ।। पवित्र बलि होम जप आदिको किये विष्ठा मूत्रको त्यागे, पीडासे रहित शय्यामें तथा फलकमें वा मनुष्यकी गोदीमें विशेषकरके स्थित ॥ २॥ पूर्व शरीरसे सीधा और सूर्यके सन्मुख गुदावाला और समान अच्छीतरहसे ऊंची कटिदेशवाला यन्त्रणवस्त्रकरके ॥ ३ ॥ दोनों सक्थी और ग्रीवामें परिक्षिप्त कोमलपनेसे स्थित, सेवकोंकरके निश्चल पकडाहुवा और तसे गीली गुदावाले ॥ ४ ॥ मनुष्यके अर्थ वृत मलनेसे चिकने अभ्यक्त कोमल और सुखके अनुसार यंत्रको गुदामें होलेहौले प्राप्त करै, पश्चात् प्रवाहणसे देखकर ॥ ५ ॥ यंत्रमें प्रविष्ट हुये बवासीरके मस्सेको कपडेके टुकडेसे आच्छादितदेहवाली शलाकासे ऊपरको पीडित कर पीछे कुशल वैद्य यथोक्तविधिसे दग्ध कर ॥ ६ ॥ और गीले मस्सेको खारसे दग्ध कर और रूखे मस्सेको खारकरके तथा अग्निकरके दग्ध कर और बलवाले मनुष्यके बडे मस्सेको छेदित कर फिर यन्त्र दूर कर ॥७॥ अच्छी प्रकार गुदा और जवनको घृतसे गीलाकर रोगीको अवगाहमें स्थापित करै, पीछे वातसे रहित मंदिरमें स्थित हुये तिस मनुष्यके अर्थ उष्णो. दकआदि उपचारोंको आदेशित करै ।। ८ ॥ और एक एक उपचारको सात सात दिनतक आचरित करै ॥ . प्रारदक्षिणं ततो बाममर्शपृष्ठाग्रजंततः॥९॥बह्वर्शसःसुदग्धस्य स्याद्वायोरनुलोमता ॥ रुचिरन्नेऽग्निपटुता स्वास्थ्यं वर्ण बलोदयः ॥१०॥ और बहुतसे बवासीरके मस्सोंवाले मनुष्यके पहिले दाहने देशमें स्थित हुये मस्सेको उपाचरित करै।९पीछे बांये मस्सेको उपाचरित कर, पीछे पृष्ठभागके अग्र भागमें उपजे हुये मस्सेको For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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