SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 612
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम् । (५४९) दशनवृश्चिकैः॥ कटुम्लगालनं वक्के कपिकच्छ्वघर्षणम्॥११२॥ उत्थितो लब्धसंज्ञश्च लशुनस्वरसं पिबेत्॥खादेत्सव्योषलवणं बीजपूरककेसरम् ॥११३ ॥ लध्वन्नं प्रतितीक्ष्णोष्णमद्यात्स्रोतोविशुद्धये ॥ संन्यासरोगमें सुंदर तीक्ष्णरूप नस्य और अंजन तत्काल प्रयुक्त करने योग्य हैं, और धूमका पान प्रधमन और नखोंके मध्यमें सूइयों करके तोद अर्थात् चमका ॥१११॥ बालोंका उखा डना और दाह दांत और बिच्छुओंसे डशाना और मिरच विजोरा आदि औषधोंके रसको मुखमें प्रयुक्त करना और कोचकी फलियोंकरके अवघर्षण करना ये सब हितहैं ।।११२॥ ऐसे प्रकारोंकरके उत्थितहुआ और लब्धसंज्ञावाला मनुष्य लहसनके रसको पीवै और सूंठ मिरच पीपल सेंधानमकसे मिश्रित विजोरेके केशरको खावै ॥ ११३॥ और स्त्रोतोंकी शुद्धिके अर्थ हलका कडुआ तीक्ष्ण गरम अन्न खाय ।। विस्मापनैः संस्मरणैः प्रियश्रवणदर्शनैः॥ ११४॥पटुभिर्गीत वादित्रशब्दैर्व्यायामशीलनैः॥स्त्रंसनोल्लेखनै मैः शोणितस्यावसेचनैः॥ ११५॥ उपाचरेत्तं प्रततमनुबन्धभयात्पुनः॥ तस्य संरक्षितव्यं च मनःप्रलयहेतुतः ॥ ११६ ॥ और विस्मयको करनेवाले और सारणकरके और प्रिय श्रवण और दर्शनोंकरके ॥ ११४ ।। और मनोहररूप गीत और वाजोंके शब्दोंकरके व्यायामके अभ्यासकरके तथा वमन विरेचन धूम रक्तके निकालनेसे || ११६॥ तिस रोगीको उपाचरित करता रहै, और अनुबंधके भयसे तथा प्रलयहेतुसे स्मृतिको नष्टतासे तिस रोगीका मन अच्छी तरह रक्षा करनेको योग्य है ॥ ११६ ॥ इति बेरीनिवासिवैद्यपंडितरविदत्तशास्त्रिकृताऽष्टांगहृदयसंहिताभाषाटीकायां चिकित्सितस्थाने सप्तमोऽध्यायः ॥ ७ ॥ अष्टमोऽध्यायः। HOT अथातोऽशंसां चिकित्सितं व्याख्यास्यामः । इसके अनंसर अर्श अर्थात् बवासीर चिकित्सितनामक अध्यायका व्याख्यान करेंगे ॥काले साधारणे व्यभ्रे नातिदुर्बलमर्शसम् ॥ विशुद्धकोष्ठं लवल्पमनुलोमनमाशितम् ॥ १॥शुचिःकृतस्वस्त्ययनं मुक्तविण्मूत्रमव्यथम्॥शयने फलके वान्यनरोत्सङ्गे व्यपाश्रितम् ॥२॥पूर्वे For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy