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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५३३) चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम् । स्नेह तीक्ष्णतराग्निस्तु स्वभावाशशिरं जलम् ॥ ७७॥ स्नेहादुष्णांबुजीर्णात्तु जीर्णान्मण्डं पिपासितः ॥ पिवेत्स्निग्धान्नतृषितो हिमस्पर्द्धिगुडोदकम् ॥ ७८ ॥ गुर्वाद्यन्नेन तृषितः पीत्वोष्णाम्बु तदुल्लिखेत् ॥ क्षयजायां क्षयहितं सर्वं बृंहणमौषधम् ॥ ७९ ॥ कृशदुर्बलरूक्षाणां क्षीरं छागो रसोऽथवा ॥क्षरं च सोर्ध्ववाताया क्षयकासहरैः श्रुतम् ॥ ८० ॥ रोगोपसर्गजातायां धान्याम्बु ससितामधु ||पाने प्रशस्तं सर्वाश्च क्रिया रोगाद्यपेक्षया ॥८१॥ और स्नेहकरके अत्यंत तीक्ष्ण अग्निवाला मनुष्य तृषासे पीडित होवे तो अपने स्वभाव के अनुसार शीतल जलको पवै ॥ ७७ ॥ और नहीं जीर्णहुये स्नेहसे उपजी तृषावाला मनुष्य गरम पानीको पीवै, और जीर्णहुये स्नेहसे उपजी तृषावाला मनुष्य मंडको पीत्रै, और चिकने अन्नके भोजन तृषित हुआ मनुष्य गुडके सर्वतको पीत्रै ॥ ७८ ॥ और भारी अन्नके भोजन करके तृषित हुआमनुष्य गरम पानीका पान करके, पीछे वमन करै, और क्षयसे उपजी तृषामें क्षयमें हित और बृंहणरूप औषध हित हैं ॥ ७९ ॥ माडे दुर्बल रूखे शरीरवाले मनुष्यों को तृपा उपजै तो दूध अथवा बकरे के मांसका रस हित है, और ऊर्ध्ववातवाली तृषामें क्षय और खांसीको हरनेवाले औषधोंकरके पकायेहुये दूधका तथा बकरे के मांसका रस हितहै ॥ ८० ॥ रोगके उपसर्गसे उपजी तृषा में धनियेका पानी अथवा कांजी और मिसरीसहित मधु ये पीनेमें श्रेष्ठ हैं, और रोग आदि की अपेक्षा करके सब क्रिया श्रेष्ट हैं ॥ ८१ ॥ तृष्यन्पूर्वामयक्षीणो न लभेत जलं यदि ॥ मरणं दीर्घरोगं वा प्राप्नुयात्त्वरितं ततः ॥ ८२ ॥ सात्म्यान्नपान भैषज्यैस्तृष्णां तस्य जयेत्पुरः ॥ तस्यां जितायामन्योऽपिशक्यो व्याधिश्चिकित्सितुम् ॥ ८३ ॥ पहिले रोगसे क्षीण हुआ मनुष्य तृषाको प्राप्त होके जलको नहीं प्राप्त होवे तो वह मनुष्य शीघ्र ही मर जाता है अथवा दीर्घ रोगको प्राप्त होता है ॥ ८२ ॥ इसकारण प्रकृतिके अनुसार अन्न पान औषध करके तिस रोगी के तृपाको पहिले जीतै, और तिस तृषाको जीतने के पश्चात् अन्यव्या- . धिभी चिकित्साकरनेके योग्य होजाती है ॥ ८३॥ इति बेरीनिवासिवैद्यपंडित रविदत्तशास्त्रिकृताऽष्टांगहृदयसंहितामा पाटी कार्याचिकित्सितस्थाने षष्टोऽध्यायः ॥ ६ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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