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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम्। कफोद्भवे वमेत्स्विन्नः पिचुमन्दवचाम्बुना।कुलत्थधन्वोत्थरस तीक्ष्णमद्ययवाशनः ॥४८॥पिबेच्चूर्णं वाहिंगुलवणद्वयनागरान् ॥सैलायवानीककणायवक्षारान्सुखाम्बुना ॥४१॥ फलं धान्याम्लकौलत्थयूषमत्रासवैस्तथा।पुष्कराह्वाभयाशुण्ठीशठी रास्नावचाकणाः॥५०॥ काथं तथा भयाशुण्ठीमाद्रीपतिद्रुकट फलात् ॥ कफके हृद्रोगमें स्विन्नहुआ और कुलथी जांगलदेशके मांसका रस तीक्ष्णमदिरा यवको भोजन करनेवाला मनुष्य नींब और वचके पानी करके वमनको करै ॥ ४८ ॥ बच हींग सेंधानमक कालानमक सुंठ इलायची अजवायन पीपल जवाखारके चूर्णको सुखपूर्वक गरम किये पानीके संग पीचे ॥ ४९ ॥ अथवा फलकी कांजी अन्नकी कांजी कुलथीका यूष गोमूत्र आसवके संग पीवै और पोहारमूल हरडै झूठ कचूर रास्ना वच पीपल इन्होंके चूर्णको गरम पानी फलकी कांजी अथवा बिजोरेका रस अन्नकी कांजी कुलथीका यूष गोमूत्र आसव इन्होंके संग पीवै ॥ ५० ॥ हरडे झूठ कालाअतीश दारुहलदी कायफल इन्होंके क्वाथको पावै ॥ क्वाथे रौहीतकाश्वत्थखदिरोदुम्बरार्जुने ॥ ५१ ॥ सपलाशवटे व्योषत्रिवृच्चूर्णान्विते कृतः॥ सुखोदकानुपानस्य लेहः कफ विकारहा ॥ ५२ ॥ श्लेष्मगुल्मोदिताज्यानि क्षारांश्चविविधापिबेत् ॥प्रयोजयेच्छिलार्ह वा ब्राह्मं चात्र रसायनम्॥५३॥ तथामलकलेहं वा प्राश्यं वागस्तिनिर्मितम् ॥ रक्तरोहिडा पीपलवृक्ष खैर गूलर कोहवृक्ष इन्होंके ॥ ५१ ॥ और ढाक बड इन्होंके काथमें सूट मिरच पीपल निशोथका चूर्ण मिलाके कियाहुआ लेह सुखपूर्वक गरम किये पानीका अनुपान करनेवाले मनुष्यके कफके विकारको नाशताहै ॥५२॥ कफके हृद्रोगमें कफके गुल्ममें कहेहुये घृत और अनेक प्रकारके खारोंको पीवै और शिलाजितको अथवा रसायनअध्यायमें कहे हुये ब्राह्मसंज्ञक रसायनको ॥ १३ ॥ तथा रसायनमें कहे हुये आमलाके लेहको अथवा अगस्तिमुनिके रचेहुये प्राश्यको प्रयुक्त करै ।। स्याच्छूलं यस्य भुक्तेऽन्ने जीर्यत्यल्पं जरां गते ॥५४॥ शाम्येसकुष्ठकृमिजिल्लवणद्वयतिल्वकैः॥सदेवदातिविषैश्चूर्णमुष्णा म्बुना पिबेत् ॥ ५५॥ यस्य जीर्णेऽधिकं स्नेहैः स विरेच्याफलैः पुनः॥ जीर्ऋत्यन्ने तथा मूलैस्तीक्ष्णैः शूले सदाधिके ॥ ५६ ॥ और जिस मनुष्यके अन्नके भोजनकरनेमें अत्यंत शूल होवे, और अन्नके जीर्णहोनेमें अल्पशूल होवै और किट्टसारपनेकरके जरावस्थाको प्राप्तहुये भोजनमें ।। ५४ ॥ शूल शांत होजावै वह For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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