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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobaith.org www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम् । (४९१) यासान्पलार्द्धकान् ॥ ६४॥ सर्पिषः षोडशपलं चत्वारिंशत्पलानि चामत्स्यण्डिकायाः शुद्धायाः पुनश्च तदधिश्रयेत्॥६५॥ दौलेपिनिशीते च पृथग्द्विकुडवं क्षिपेत् ॥ पिप्पलीनां तवक्षी- माक्षिकस्यानवस्य च॥६६॥ लेहोऽयं गुल्महृद्रोगदुर्नामश्वासकासजित् ॥ और ४०५६ तोले पानीमें४०० तोले कुटीहुई कटेहलीको पकावै जब पकनेमें २५६ तोले भर पानी स्थित रहै ।। ६३ ।। तब पानीको छान फिर कढाई चढाय तिसमें दोदो तोलेभर सूंठ मिरच रायसण गिलोय चीता काकडासिंगी भारंगी नागरमोथा पीपलामूल धमासा इन सबोंका चूर्ण बना मिलावै ॥६४ ॥ पीछे ६४ तोले घृत और शुद्ध राब १७६ तोले इन्होंको मिलाके फिर. पकावै ॥६५॥ जब कडछीमें चिपकनेलगै तब अग्निपैसे उतार शीतल होनपै पीपल ३२ तोले वंशलोचन ३२ तोले पुराना शहद ३२ तोले ये सब मिलावै ॥ ६६ ॥ यह लेह गुल्म हृद्रोग बवासीर श्वास खांसीको जीतताहै ॥ शमने च पिबेदमं शोधनं बहुले कफे॥६७ ॥ और कफकी खांसीमें शमनरूप धूम पीना चाहिये और करडे कफवाली खांसीमें शोधनरूप धूम पीना चाहिये ॥ ६॥ मनःशिलालमधुकमांसीमुस्तेगुदीत्वचः॥धूमं कासतविधिना पीत्वा क्षीरपिबेदनु॥६॥निष्ठयूतान्ते गुडयुतंकोष्णं धूमो निहन्ति सः॥ वातश्लेष्मोत्तरान्कासानचिरेण चिरन्तनान् ॥६९॥ मनशिल हरताल मुलहटी बालछड नागरमोथा इंगुदीकी छाल इन्होंके धूमेको खांसीको नाशने वाली विधिकरके पानकर पीछे दूधको पावै ॥ ६८ ॥ परंतु थूकनेके अंतमें गुडसे संयुक्त और अल्प गरम किया वह दूध पीना उचित है और वही पान किया पूर्वोक्त धूमा वात कफकी अधिकतावाले और पुरातन खांसियोंको नाशताहै ॥ ६९ ॥ तमकः कफकासे तु स्यान्चेत्पित्तानुबन्धजः॥पित्तकासक्रियां तत्र यथावस्थं प्रयोजयेत् ॥७०॥कफानुबन्धे पवने कुर्यात्कफ हरां क्रियाम् ॥ पित्तानुवन्धयोर्वातकफयोः पित्तनाशिनीम् ॥७१॥ वातश्लेष्मात्मके शुष्के स्निग्धं चाट्टै विरूक्षणम् ॥ कासे कर्म सपित्ते तु कफजे तिक्तसंयुतम् ॥ ७२ ॥ कफकी खांसीमें जो कफके अनुबंधसे उपजा तमकश्वास उपजे तो तहां अवस्थाके वशसे पित्तकी खांसीके पेयाको युक्त करै ॥ ७० ॥ कफके अनुबन्धवाले वायुमें कफके हरनेवाली क्रियाको For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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