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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३८८) अष्टाङ्गहृदयेसहजानि विशेषेण रूक्षदुर्दर्शनानि च ॥अन्तर्मुखानि पाण्डू.. नि दारुणोपद्रवाणि च ॥८॥षोढान्यानि पृथग्दोषसंसर्गनि चयात्रतः॥शुष्काणि वातश्लेष्मभ्यामाणि त्वत्रपित्ततः॥९॥ विशेषकरके रूख और देखनेमें दुष्टरूप और भीतरको मुखोंवाले और पाण्डुरूप और दारुण उपद्रवोंसे संयुक्त साथ उपजनेवाले अर्शरोग होते हैं ॥८॥ जन्मसे पछि उपजनेवाले अर्शरोग छः प्रकारके हैं, वातके, पित्तके, ककके, दोदोषोंके,सन्निपातके, रक्तके जानो और सूखे अर्शरोग वात और कफकरके होते हैं,रक्त और पित्तसे गीले अर्शरोग होते हैं,अर्थात् बवासीरके मस्से होते हैं।॥९॥ दोषप्रकोपहेतुस्तु प्रागुक्तस्तेन सादिते॥ अग्नौ मलेतिनिचिते पुनश्चातिव्यवायतः॥१०॥यानसङ्क्षोभविषमकठिनोत्कटकासनात् ॥ बस्तिनेत्राश्मलोप्टोर्वीतलचैलादिघट्टनात्॥११॥ भृशं शीताम्बुसंस्पर्शात्प्रततातिप्रवाहणात् ॥ वातमत्रशक द्वेगधारणात्तदुदीरणात् ॥ १२ ॥ ज्वरगुल्मातिसारामग्रहणी शोफपाण्डुभिः॥ कर्शनाद्विषमाभ्यश्च चेष्टाभ्यो योषितां पुनः . ॥ १३॥ आमगर्भप्रपतनाद्गर्भवृद्धिप्रपीडनात् ॥ ईदृशैश्चापरै र्वायुरपानः कुपितो मलम् ॥ १४ ॥ पायोर्बलीषु सन्धत्ते तास्वभिष्यण्णमूर्तिषु ॥ जायन्तेऽसि तत्पूर्वलक्षणं मन्दवह्निता ॥ १५॥ विष्टम्भः सक्थिसदनं पिण्डिकोद्वष्टनं भ्रमः ॥ सादोऽङ्गे नेत्रयोः शोफः शकृ दोऽथवा ग्रहः ॥ १६ ॥ मारुतः प्रचुरो मूढः प्रायो नाभेरधश्चरन् । सरुक्त्रपरिकर्त्तश्च कृच्छ्रान्निर्गच्छति स्वनन् ॥ १७॥ अन्त्रकूजनमाटोपः क्षामतो द्गारभूरिता ॥प्रभूतं मूत्रमल्पाविद् श्रद्धावैधूमकोऽम्लकः॥१८॥. शिरःपृष्ठोरसां शूलमालस्यं भिन्नवर्णता ॥ तथेन्द्रियाणां दौबल्यं क्रोधो दुःखोपचारता ॥ १९॥ आशंका ग्रहणीदोषपा ण्डुगुल्मोदरेषु च ॥ — दोषोंके प्रकोपका कारण पहिले कहचुके तिस करके मंदभावको प्राप्त हुआ अग्निके होनेसे मलका अत्यंत संचय होता है अर्थात् विष्ठाकी अत्यंत वृद्धि होती है फिर अति मैथुन करनेसे ॥ १० ॥ यान अर्थात् असवारीका संक्षोभ, विषम, कठिन उत्कट, आसनसे और बस्तिका नेत्र, पत्थर, लोहा, पृथ्वीतल, वस्त्र आदिके घट्टनसे ॥ ११ ॥ और अत्यन्त शीतलपानीके स्पर्शसे और निरन्तर For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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