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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org निदानस्थानं भाषाटीकासमेतम् । सप्तमोऽध्यायः । स्त्र Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३८७) अधार्शसा निदानं व्याख्यास्यामः । इसके अनंतर अर्श अर्थात् बवासीरनिदाननामक अध्यायका व्याख्यान करेंगे । अरिवत्प्राणिनो मांसकीलका विशसन्ति यत् ॥ अशसि तस्मादुच्यन्ते गुहमार्गनिरोधतः ॥ १ ॥ दोषास्त्वङ्मांसमेदांसि सन्दूष्य विविधाकृतीन् ॥ मांसांकुरानपानादौ कुर्वन्त्यर्शासि ताञ्जगुः ॥ २ ॥ .. For Private and Personal Use Only • शत्रुकी तरह मांसके अंकुर गुदा के मार्ग के निरोधसे मनुष्यको पीडित करते हैं, इस कारण वे अर्शनाम से कहे जाते हैं ॥ १ ॥ वातआदि दोष, त्वचा, मांस, मेद आदिको दूषित कर गुदा आदि में अनेक प्रकारकी आकृतियोंवाले मांसके अंकुरोंको करते हैं, तिन्होंको वैद्य अर्शरोग कहते हैं ॥ २ ॥ सहजन्मोत्तरोत्थानभेदाद्वेधा समासतः ॥ शुष्कत्राविविभेदाच्च गुदस्थूलान्त्रसंश्रयः ॥ ३ ॥ अर्धपञ्चांगुलस्तस्मिंस्तिस्त्रोऽध्यर्द्धांगुलाः स्थिताः ॥ वल्यः प्रवाहिणी तासामन्तर्मध्ये विसर्जनी ॥ ४ ॥ बाह्या संवरणी तस्या गुदोष्ठो बहिरंगुले ॥ यवाध्यर्धप्रमाणेन रोमाण्यत्र ततः परम् ॥ ५ ॥ तत्र हेतुः सहोत्थानां वलीबीजोपतप्तता ॥ अर्शसां बीजतप्तिस्तु मातापित्रचारतः ||६|| दैवाच्च ताभ्यां कोपो हि सन्निपातस्य नान्यतः॥असाध्यान्येवमाख्याताः सर्वे रोगाः कुलोद्भवाः ॥७॥ साथ जन्मनेवाला और पीछे जन्मनेवाला इन भेदोंसे संक्षेप करके अशरोग दो प्रकारका है शुष्क तथा स्त्रावी भेदोंकरकेभी अर्श दो प्रकारका है सूखी (वादी) स्रावी (खूनी) और स्थूल आंतों का संश्रयरूप गुदा ॥३॥ साढे चारअंगुल प्रमाणित है, तिसमें डेढडेढअंगुल परिमाणवाली तीन बली अर्थात् आंटी स्थित हैं, और तीन तीन आंटियों के मध्य में गुदाके भीतर प्रवाहिणी आंटी है और मध्यमें विसर्जनी आंटी हैं ॥ ४ ॥ और गुदाके बाहिर संवरणी आंटी है और तिस संवरणी आंटीके बाहिर एक अंगुल गुदाका ओष्ठ हैं यह डेढ जवके प्रमाणवाला है और तिस गुदाके ओष्ठसे परे रोम जमते हैं ॥ ५ ॥ तिन दोनों अर्शरोगों में साथ जन्मनेवाले अर्श रोगोंके कारण वलीसंबन्धी बीजका उपतापपना है और वह बीजोंका उपततपना माता और पिताके अपचारसे होता है || ६ || दैवसे और माता पिताके अपचारसे सन्निपातका कोप होता है अन्यसे नहीं इस वास्ते. अरोरोग असाध्य है और कुलसे उत्पन्न होनेवाले सब रोग असाध्य कहे हैं ॥ ७ ॥
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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