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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शारीरस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (३३९) दुष्टरूप मरनेको पूंछनेसेभी नहीं कह परंतु मरनेके योग्य रोगीको चिकित्सित करनेकी वैद्य इच्छा नहीं करै ।। १२९॥ यमदूतपिशाचाद्यैर्यत्परासुरुपास्यते ॥ नद्भिरौषधवीर्याणि तस्मात्तं परिवर्जयेत् ॥१३०॥ रसायन आदि औषधोंके वीर्योको नाशनेवाले धर्मराजके दूत, पिशाच आदिकरके गतप्राणोंवाला रोगी उपासित कियाजाताहै इसवास्ते ऐसे रोगीको वैद्य त्यागै ॥ १३० ॥ आयुर्वेदफलं कृत्स्नं यदायुशैं प्रतिष्ठितम् ॥ रिष्टज्ञानादृतस्तस्मात्सर्वदैव भवेद्भिषक् ॥ १३१॥ मरणं प्राणिनां दृष्टमायुः पुण्योभयक्षयात्। तयोरप्यक्षयादृष्टं विषमापरिहारिणाम् ॥१३२॥ जिसकारणसे आयुर्वेदके जाननेवाले वैद्यमें आयुर्वेदका संपूर्ण फल प्रतिष्ठित है तिसवास्ते आर'ष्टके ज्ञानसे आहत वैद्यको होना चाहिये ।। १३१॥ आयु और पुण्य इन दोनोंके क्षयसे मनुष्योंका मरण होता है भोगके सम्पूर्ण साधन विद्यमान होनेपरभी आयुके क्षयसे मरण होता है जो आहारादिके न मिलनेसे मरण है वह पुण्यके क्षयसे होता है और विषम अर्थात् हाथी, घोडा, सिंह सर्प, आदिसे नहीं वचनवाले मनुष्यके आयु और पुण्यका नाश होनेसेभी मरण मुनिजनोंने देखाहै || १३२ ॥ इति बेरीनिवासिवैद्यपंडितरविदत्तशास्त्रिकृताऽष्टांगहृदयसंहिताभाषाटीकायां शारीरस्थाने पंचमोध्यायः ॥ ५ ॥ षष्ठोऽध्यायः। अथातो दूतादिविज्ञानीयं शारीरं व्याख्यास्यामः। इसके अनंतर दूतादिविज्ञानीयशारीरनामक अध्यायका व्याख्यान करेंगे अर्थात् दूतके लक्षण देखकरही रोगीके शुभाशुभका विचार कहेंगे आदि कहनेका भाव यह है कि, दूतके साथ रोगीके घर जानेमें जो निमित्त मार्गमें हों उनसे शुभाशुभ जानना || पाखण्डा श्रमवर्णानां सवर्णाः कर्मसिद्धये ॥ त एव विपरीताः स्युर्दूताः कर्मविपत्तये ॥१॥ उनहत्तरप्रकारके पाखंड और चारप्रकारके आश्रम और चारप्रकारके ब्राह्मणआदि वर्ण इन सबोंके तुल्य जातिवाले दूत अर्थात् वैद्यको बुलानेवाले मनुष्य कर्मकी सिद्धिके अर्थ कहे हैं अर्थात् पाखंडीका पाखंडी और ब्रह्मचारीका ब्रह्मचारी और ब्राह्मणका ब्राह्मण ऐसे अन्यभी दूत श्रेष्ठ जानने और इन्होंसे विपरीत दूत चिकित्साकी निष्फलताके अर्थ कहे हैं ॥ १ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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