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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शाररिस्थानं भाषाटीकासमेतम्। (३३७) कारणके विनाही जिसके त्वचामें आश्रित हुआ विवृष्ट होवे और दौडताहुआ लक्षित होवे तिस रोगीको वैद्य वर्जे ॥ ( और चंदन, खस, मदिरा, मुरदा, ध्वक्षिपक्षी, इन्होंके समान गंधोंवाले और शिवाल, मुर्गाकी चोंटी, कुंद, शालिचावल इन्होंके समान कांतिवाले और भीतरको दाहवाले और गर्माईसे रहित व्रण अर्थात् घाव प्राणोंका नाश करते हैं यह ॥ १ ॥ श्लोक क्षेपक है।) और जो वातसे उपजा व्रण शूलको नहीं उपजावे और पित्तसे उपजा व्रण दाहको नहीं उपजावे ॥ ११४ ॥ और कफसे उपजा व्रण रादको नहीं उपजावे और मर्मसे उपजा व्रण पीडाको नहीं उपजावे और चूनाकरके व्याप्त हुएकी तरह दीखे और जिस व्रण ॥ ११५ ॥ शक्ति, ध्वजा आदिके चिह्न दखेिं ऐसे सब व्रणोंको वैद्य त्याग देवे ॥ विण्मूत्रमारुतवहं कृमिलं च भगन्दरम् ॥ ११६ ॥ घट्टयजानुना जानु पादाबुद्यम्य पातयन् ॥ योऽपास्यति मुहु वक्रमारुतं न स जीवति ॥ ११७ ॥ दन्तैम्छिदन्नखाग्राणि तैश्च केशांस्तृणानि च ॥ भूमि काष्ठेन विलिखल्लोष्ठं लोष्ठेन ताडयन् ॥ ११८॥ हृष्टरोमा सान्द्रमूत्रः शुष्ककासी . ज्वरी च यः ॥ मुहुर्हसन्मुहुः श्वेडञ्छय्यां पादेन हन्ति यः॥ ११९॥ मुहुश्छिद्राणि बिमृशन्नातुरो न स जीवति ॥ और विष्ठा, मूत्र, अधोवायुको बहानेबाला और कीडोंसे संयुक्त भगंदरको वैद्य त्यागै ॥११॥ जो रोगी गोडे करके गोडेको घटित करताहुआ और पैरोंको ऊपरको फैंक पीछे नीचेको प्राप्त करताहुआ और कारणके विना वारंवार मुखवातको अन्य जगह प्राप्त करें ऐसा रोगी जीवता नहीं ॥ ११७ ॥ दांतोंकरके नखोंके अग्रभागको छेदित करै तथा दंतोंकरके बाल और तृणोंको छेदित करे और पृथ्वीको काष्टकरके लेखित करै और लोहेको लोहकरके ताडित करै ॥ ११८॥ और खडेहुये रोमोंवाला हो और घनरूप मूत्रबाला हो और सूखी खांसी तथा ज्वरसे संयुक्त और वारंवार हँसताहुआ तथा वारंवार शब्दको करताहुआ पैरकरके शय्याको ताडित करै ।। ११९ ॥ और वारंवार नासिकाआदि छिद्रोंका स्पर्श करे ऐसा रोगी नहीं जीवता है। मृत्यवे सहसार्तस्य तिलकव्यङ्गविप्लवः ॥१२० ॥ मुखे दन्ते नखे पुष्पं जठरे विविधाः शिराः॥ ऊर्ध्वश्वासं गतोष्माणं शूलोपहतवंक्षणम् ॥ १२१ ॥ शर्म वाऽनधिगच्छन्तं बद्धिमान्परिवर्जयेत् ॥ विकारा यस्य वर्धन्ते प्रकृतिः पार हीयते ॥ १२२ ॥ सहसा सहसा तस्य मृत्युहरति जीवितम् ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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