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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शारीरस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (३१५) और पृष्टवंशके दोनोंतर्फ श्रोणी और कर्ण दो मर्म स्थित हैं ॥ १७ ॥ और वंशमें आश्रित हुये कूलोंके ऊपर कटिक और तरुण दो मर्म स्थित हैं तिन्होंमें चोट लगजाये तो पांडु और हीनरूपवाला रक्तके क्षयसे मनुष्य मरजाता है ॥ १८ ।। पृष्ठवंशके दोनोंतर्फ कटि और पार्यो में जघनस्थानके बहिर्भागमें कुकुंदरनामवाले दो संधिमर्म हैं ॥ १९ ॥ तहां चोट लगजावे तो चेष्टाकी हानी और नचिके शरीरमें स्पर्शका अज्ञान उपजता है और पसलियोंकरके मध्यमें बँधेहुये और श्रोणीमर्म तथा कर्णमर्मके ऊपर ॥ २० ॥ मूत्रआदि आशयोंके आधाररूप औरतरुणसंज्ञक हड्डियोंमें स्थित दो नितंबमर्म हैं तहां चोट लगजाये तो नचिके शरीरमें शोजा दुर्बलता मृत्यु उपजती है ॥ २१॥ पाश्र्वान्तरनिबद्धौ च मध्ये जघनपार्श्वयोः ॥ तिर्यगूर्व च निर्दिष्टौ पार्श्वसन्धी तयोर्व्यधात् ॥ २२ ॥ रक्तपूरित कोष्ठस्य शरीरान्तरसम्भवः ॥ स्तनमूलार्जवे भागे पृष्ठ वंशाश्रये शिरे ॥ २३ ॥ बृहत्यौ तत्र विद्धस्य मरणं रक्त संक्षयात् ॥ बाहुमूलाभिसम्बद्धे पृष्ठवंशस्य पार्श्वयोः ॥२४॥ अंसयोः फलके वाहुस्वापशोषौ तयोर्व्यधात् ॥ ग्रविामुभयतः स्नानी ग्रीवावाहुशिरोन्तरे ॥२५॥ स्कन्धांसपीठसम्बन्धावंसों वाहुक्रियाहरौ।कण्ठनाडीमुभयतःशिराहनुसमाश्रिताः॥२६॥ चतस्रस्तासु नीले द्वे मन्ये द्वे मर्मणी स्मृते ॥ स्वरप्रणाशवै कृत्यं रसाज्ञानं च तद्वयधे ॥ २७॥ कण्ठनाडीमुभयतो जिह्वा । नासागताः शिराः ॥ पृथक्चतस्रस्ताः सद्यो अन्त्यसन्मातृकाहयाः॥ २८॥ पावोंके मध्यमें बंधेहुये और जघनके पावों में तिरछे और ऊंच स्थित हुये ऐसे दो पार्श्वसंधिमर्म हैं तिन्होंमें चोट लगजानेसे ॥ २२ रक्तसे पूरितकोष्टवाला मनुष्य होके मृत्युको प्राप्त होजाता है और चूँचियोंके मूलके कोमल भागमें पृष्टके वांसके आश्रित हुई दो नाडियां हैं ॥ २३ ॥ वे दोनों बृहतीमम कहाते हैं तहां चोट लगै तो रक्तके नाश होनेसे मनुष्य मरता है और पृष्टवंशके पाश्वोंमें बाहुके मूलसे बँधेहुये ॥ २४ ॥ अंसफलकाख्य दो मर्म हैं तिन्होंमें चोट लगजाये तो बाहुका शयन और बादशोष उपजते हैं और ग्रीवाके दोनों पाश्चोंमें ग्रीवा और बाहु शिरके अंतरमें स्नानीनाम दो मर्म है ॥ २५ ॥ अर्थात् कंधा पीठ इन्होंमें संबंधवाले दो अंस हैं इन्हीं में चोट लगजावे तो बाबुके प्रतारण और आकुंचनआदि कर्मका नाश होजाता है और कंटकी नाडीके दोनोंतर्फ और ठोडीमें आश्रित हुई।॥ २६ ॥ चार नाडियां हैं तिन्होंमें दो नीलमर्म हैं और दो मन्यामर्म है तिन्होंमें चोट लगजावै तो स्वरका नाश, स्वरकी विकृति, रसका अज्ञान ये अजते For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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