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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अष्टाङ्गहदये॥ १२ ॥ नाभिः सोऽपि हि सद्योनो द्वारमामाशयस्य च ॥ सत्वादिधाम हृदयं स्तनोरःकोष्ठमध्यगम् ॥१३॥ स्तनरोहित मूलाख्ये चंगुले स्तनयोर्वदेत् ॥ ऊर्ध्वाधोऽलकफापूर्णकोष्ठो नश्येत्तयोः क्रमात् ॥ १४ ॥ अपस्तम्भावुरःपार्वे नाड्यावनिलवाहिनी ॥ रक्तेन पूर्णकोष्ठोऽत्र श्वासात्कासाच नश्यति ॥ १५ ॥ पृष्ठवंशोरसोर्मध्ये तयोरेव च पार्श्वयोः ॥ अधोंऽसकूटयोविद्यादपालापाख्यमर्मणी ॥ १६ ॥ लयोः कोष्ठे सृजा पूणे नश्येद्या तेनपूयताम् ॥ और धनुषके समान टेढा मूत्राशय है तहां अल्परक्त और अल्पमांसमें गमन करनेवाला ॥१०॥ और नीचेको एकमुखवाला बस्तिमर्म काटके मध्यमें है, सो पथरी निकासनेके घावके बिना तिसके दोनोंतर्फ चोट लगै तो तत्काल मनुष्यके प्राणोंको हरता है ॥ ११ ॥ और जो तिस बस्तिमममें एकतर्फको चोट अर्थात् बींधाजावे तो मूत्रको झिरानेवाला घाव उपजता है वह घाव बलसे अंकुरको प्राप्त होता है अन्यथा नहीं और आमाशय और पक्काशयके मध्यमें सब नाडियोंका स्थानरूप ॥ १२ ॥ नाभिमर्म है तहां चोट लगै तो तत्काल मनुष्य मरजाता है और आमाशयके द्वारपै सत्वादिका स्थानरूप और स्तन, छाती, कोष्ठके मध्यमें प्राप्त हृदयमर्म है, तहां चोट लगे तो तत्काल मनुष्य मरजाता है ।॥ १३ ॥ दोनों चूंचियोंके ऊपर दोअंगुल स्तनरहित और नीचे दोअंगुल स्तनमूल ऐसे दो मर्म हैं, तिन्होंमें चोट लगजावे तो क्रमसे रक्त और कफसे पूर्ण कोष्ट होके ननुष्य मरजाताहै ॥ १४ ॥ छातीके दोनोतर्फको अपस्तंभनामवाले और वायुको वहनेवाले नाडीप देश मर्म हैं तिन्होंमें चोट लगजावे तो रक्तकरके पूर्णकोठवाला श्वास और खांसीसे मर जाता है ।। १५!! पृष्टवंश और छातीक मध्यमें तिन दोनों पाश्चोंके ऊपर अंशकूटोंके नीचे अपाल और अपाख्य दो मर्म हैं ।। १६ ॥ तिन्होंमें चोट लगजावे तो रादभावको प्राप्त हुय लोहूकरके पूरितको के हो जानेसे मनुष्य मरजाता है । पाश्र्वयोः पृष्ठवंशस्य श्रोणीकरें प्रतिष्ठिते ॥१७॥ वंशाश्रिते स्फिजोरूज़ कटीकतरुणे स्मृते ॥ तत्र रक्तक्षयात्पाण्डुहीनरूपो विनश्यति ॥ १८॥ पृष्ठवंशं झुभयतो यो सन्धी कटिपाश्र्वयोः ॥ जघनस्य बहिर्भागे मर्मणी तो कुकुन्दरौ ॥ १९ ॥ चेष्टाहानिरधःकाये स्पर्शाज्ञानं च तव्यधात् ॥ पाश्र्वान्तरनिवद्धौ यावुपरि श्रोणिकर्णयोः ॥ २० ॥ आशयच्छादनौ तौ तु नितम्बो तरुणास्थिगौ ॥ अधःशरीरे शोफोत्र दौर्बल्यं मरणं ततः॥ २१॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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