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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रस्थानं भाषार्टीकासमेतम् । (२५१) · कच्चीमूली, वार्ताकुं, बैंगन, चौलाईशाक, बथुवाशाक, करेला, ककोडा,परवल,कंकोल ॥३५॥ सैन्धवं दाडिमं धात्री घृतं तप्तहिमं जलम् ॥ जीर्णशाल्योदनं स्निग्धमल्पमुष्णं द्रवोत्तरम् ॥ ३६ ॥ सेंधानमक, अनार, आंमला, वृत, गरमकरके शीतल किया पानी, पुराने शालिचावल, चिकनापदार्थ, अल्पगरम, द्रवोत्तर अर्थात् उत्तर भागमें पानी आदिसे संयुक्त ॥ ३६॥ भुञ्जानो जालैमासैः शीघ्रं व्रणमपोहति ॥ अशितं मात्रया काले पथ्यं याति जरां सुखम् ॥ ३७॥ इन पदार्थोको जांगलदेशके मांसके रसके संग भोजन करता हुआ मनुष्य बणको तत्काल दूर करता है और मात्राकरके समयमें भोजन किया पदार्थ पथ्य है और सुखसे जरजाता है ॥ ३७ । अजीर्णे त्वनिलादीनां विभ्रमो बलवान्भवेत् ॥ ततः शोफरुजापाकदाहानाहानवाप्नुयात् ॥ ३८ ॥ अर्णिमें वातआदिदोषोंका बलवान् क्षोभ होजाता है; पछेि शोजा, शूल, पाक, दाह,अफारा इन्होंको मनुष्य प्राप्त होता है ॥ ३८ ॥ नवधान्यं तिलान्माषान् मयं मांसं त्वजाङ्गलम् ॥ क्षीरेक्षुविकृतीरम्लं लवणं कटुकं त्यजेत् ॥ ३९ ॥ नवीन अन्न, तिल, उडद, मदिरा जांगलदेशसे अन्यदेशका मांस, दूध, ईखकी विकृति, खटाई नमक, कटुपदार्थ ॥ ३९ ॥ यच्चान्यदपि विष्टम्भि विदाही गुरुशीतलम् ॥ वर्गोऽयं नवधान्यादिणिनः सर्वदोषकृत् ॥४०॥ और अन्यभी विष्टंभ करनेवाले पदार्थ विदाही पदार्थ, भारी पदार्थ, शीतल पदार्थ यह नवीन अन्नआदिवर्ग व्रणरोगीको सव दोषोंको करता है ॥ ४० ॥ मद्यं तीक्ष्णोष्णरक्षाम्लमाशु व्यापादयेद्वणम् ॥ वालोशीरैश्च वीज्येत न चैनं परिघट्टयेत् ॥ ४१ ॥ तीक्ष्ण, गरम, रूखा, खट्टा, मद्य तत्काल व्रणमें दुःखको उपजाता है और इस व्रणको कोमल खसके बीजनोंकरके वीजित करै, और इस व्रणको चालित नहीं करै ।। ४ १ ॥ न तुदेन्न च कंडूयेच्चेष्टमानश्च पालयेत् ॥ स्निग्धवृद्धद्विजातीनां कथाः शृण्वन् मनःप्रियाः॥ ४२ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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