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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२५०) अष्टाङ्गहृदयेवस्त्रआदिके द्वारा स्थापित कर पीछे तिस व्रणको सुंदर वस्त्रके टुकंडेकरके युक्तिसे बांधे और वामें पार्श्वमें और दाहने पार्श्वमें बाँधै और नीचे तथा ऊपरको बाँधे नहीं ॥ २८ ॥ शुचिसूक्ष्मदृढाः पट्टाः कवल्यः सविकेशिकाः॥ धूपिता मृदवः श्लक्ष्णा निर्बलीका व्रणे हिताः ।। २९ ॥ पवित्र और महीनसूत्रवाले दृढ पट्ट अर्थात् वस्त्रको बाँधना और सुंदर कल्करूप तथा धूपित कीहुई तथा कोमल मिलीहुई बलियोंकरके रहित और व्रण हितकारक पुलटिस बाँधनी ।। २९ ॥ कुर्वीतानन्तरं तस्य रक्षा रक्षोनिषिद्धये ॥ बलिं चोपहरेत्तेभ्यः सदा मूविधारयेत् ॥ ३० ॥ पीछे राक्षसआदिको दूर करनेके अर्थ तिस व्रणकी रक्षा करता रहै और तिन राक्षसोंके अर्थ बलिदानको देता रहै, और वक्ष्यमाण औषधियोंको सब कालमें शिरपै धारण करता रहै ॥ ३०॥ लक्ष्मी गुहामतिगुहां जटिलां ब्रह्मचारिणीम् ॥ वचां छत्रामतिच्छत्रां दूर्वा सिद्धार्थकानपि ॥३१ ।। वृद्धि अथवा पद्मचारिणी, पृश्निपर्णी, शालकर्णी जटामांसी, ब्राह्मी, वच, सोंफ, बडी सौंफ,दूब,. . सरसों इन्होंको माथेपै धारता रहै ॥ ३१ ॥ । ततः स्नेहदिनेहोक्तं तस्याचारं समादिशेत् ॥ दिवास्वप्नो व्रणे कण्डूरागरुक्शोफपृयकृत् ॥ ३२ ॥ तिस रोगीको स्नेहपान विधिमें उपदिष्ट किये आचारसे शिक्षित कर और व्रणरोगमें दिनको शयन करना खाज, राग, पीडा, शोजा रादको करता है ॥ ३२॥ स्त्रीणान्तु स्मृतिसंस्पर्शदर्शनैश्चलितस्रुते॥ शुक्रे व्यवायजान्दोषानसंसर्गेऽप्यवाप्नुयात् ॥३३॥ स्त्रियोंकी स्मृति, संस्पर्श, देखना इन्होंकरके चलित और फिरते हुये वीर्यमेंभी मैथुनसे उपजे हुये दोषोंको मनुष्य प्राप्त हो सक्ता है इसवास्ते स्त्रीका स्मरण, स्पर्शन, देखना ये सबकालमें निषिद्ध है ॥ ३३॥ भोजनं तु यथासात्म्यं यवगोधूमषाष्टिकाः॥ मसूरमुद्गतुवरीजीवन्तीसुनिषण्णकाः॥३४॥ प्रकृतिके अनुसार जव, गेहूं, सांठीचावल, मसूर, मूंग, तुवरीअन्न, जीवंताशाक, कुरुडूशाक३४ बालमूलकवार्ताकतण्डूलीयकवास्तुकम् ॥ कारवेल्लककर्कोटपटोलकटुकाफलम् ॥३५॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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