SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 256
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (१९३ ) जन्यास्तम्भे स्वरभ्रंशे सायं प्रातर्दिनेदिने ॥ एकाहान्तरमन्यत्र सप्ताहे च तदाचरेत् ॥ १६ ॥ मन्यास्तंभ स्वरभ्रंश इन रोगों में दिनदिन प्रति सायंकाल और प्रभातकाल नस्यको प्रयुक्त करै और पूर्वोक्त रोगोंसे अन्य रोगों में एक एक दिनके अंतरमें सातदिनोंतक नस्यको प्रयुक्त करै ॥ १६ ॥ स्निग्धस्विन्नोत्तमाङ्गस्य प्राकृतावश्यकस्य च ॥ ... निवातशयनस्थस्य जत्रूचं स्वेदयेत्पुनः ॥ १७ ॥ पहले स्निग्ध और पश्चात् स्विन्न शिरवाले और शौचादिसे निवृत्तहुए और वातसे रहित स्थानमें स्थित शय्यापै स्थित मनुष्यके घारंवार जत्रु ( गलेकी हसली जो कंधेके निकट होती है ) उर्धअंगको स्वेदित करै ॥ १७ ॥ अथोत्तान देहस्य पाणिपादे प्रसारिते ॥ किञ्चिदुन्नतपादस्य किञ्चिन्मूर्द्धनि नामिते ॥१८॥ तब सीधा और कोमल देहयुक्त हाथ तथा पैरोंको पसारे हुये और कछुक उन्नतौरोंवाले और कछुक शिरको नवाये हुए मनुष्यके ॥ १८ ॥ नासापुटं पिधायकं पर्यायेण निषेचयेत् ॥ उष्णाम्बुतप्तं भैषज्यं प्रनाड्या पिचुनाथ वा ॥ १९ ।। नासिकाके एक पुटको आच्छादित कर औषधसे निषेचित कर और नाडीकरके अथवा रूईके फोहे करके गरम पानी में तप्त किये औषधको नासापुटमें प्रवेशितकरै ॥ १९ ॥ दत्ते पादतलस्कन्धहस्तकर्णादि मर्दयेत्॥ शनैरुच्छिद्य निष्ठीवेत्पार्श्वयोरुभयोस्ततः ॥ २० ॥ नस्यको दिये पश्चात पैरोंके तलुवे, कंधा, हाथ, कान आदिको मर्दित करे, पश्चात् मर्दनके अनंतर हौले हौले उच्छेदितकरके पश्चात् दोनों पसलियोंके आश्रितहोकर थूकने लगे ॥ २० ॥ आभेषजक्षयादेवं द्विस्त्रिी नस्यमाचरेत् ॥ मूर्छायां शीततोयेन सिञ्चेत्परिहरञ्छिरः ॥ २१॥ जबतक औषधका नाश होवे तबतक २ वार अथवा ३ वार नस्यको आचरित कर और मूर्छ होजावे तब शिरको वर्ज कर शीतल पानीकरके सेचित करै ।। २१ ॥ स्नेह विरेचनस्यान्ते दद्यादोषाद्यपेक्षया॥ नस्यान्ते वाक्शतं तिष्ठदुत्तानो धारयेत्ततः ॥ २२ ॥ विरेचननामक नस्यके अंतमें दोष आदिकी अपेक्षाकरके स्नेहको देवै और नस्यके अंतमें १०० मात्रा कालतक स्थित रहे पश्चात् सीधा शयन करताहुआ धारै ॥ २२ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy