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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (१७९) अजाविमाहिषादीनां बस्ति सुमृदितं दृढम्॥ कषायरक्तं निश्छिद्रग्रन्थिगन्धशिरं तनुम्॥१६॥ तिन दोनों कणिकाओंमें बकरा, मेंढा, भैसा आदिके खालसे बनीहुई बस्तिसे संयुक्त और सुंदर मृदित और दृढपनेसे संयुक्त और हरडैआदिके कपायकरके रक्त और छिद्र, ग्रंथि, गंध, शिरा, न निकलीहुई, महीन ॥ १६ ॥ ग्रान्थतं साधुसूत्रेण सुखसंस्थाप्यभेषजम् ॥ बस्त्यभावेऽङ्कपादं वा न्यसेद्वा सोऽथवा घनम् ॥१७॥ और सुंदर सूतकरके बँधीहुई और सुखपूर्वक स्थापित करी औषधिसे संयुक्त पिचकारी बननी चाहिये और बकराआदिकी चर्मसे बनीहुई बस्तिक अभावमें बकरा और मृग आदिके अवयवविशे षको तथा घनरूप वस्त्रको पिचकारीके नेत्रमें योजित करे ॥ १७ ॥ निरूहमात्रा प्रथमे प्रकुञ्चो वत्सरात्परम् ॥ प्रकुञ्चवृद्धिःप्रत्यहं यावत्षट्प्रसृतास्ततः ॥१८॥ प्रथम वर्षसे अल्पकालमें निरूहकी मात्रा दो तोले प्रमाण कल्पित करनी और प्रथमवर्षमें निरू हकी मात्रा चार तोले प्रमाणसे कल्पित है और एक वर्षसे उपरांत प्रतिवर्ष चार चार तोलेभर मात्राको बढाता रहे, जबतक अडतालीस तोलेभर मात्रा होवे बारह वर्षको आयुतक बारह पलकी मात्रा निरूहमें कल्पित है ॥ १८ ॥ प्रसृतं वर्द्धयेदूर्ध्वं द्वादशाष्टादशस्य च ॥ आसप्ततेरिदं मानं दशैव प्रसृताः परम् ॥१९॥ और तेरहमें वर्षसे लेकर सत्रहमें वर्षतक प्रतिवर्ष निरूहकी मात्रामें आठआठ तोलेभर बढाता रहै और अठारहमें वर्षसे लेकर सत्तर वर्षतक ९६ ताले द्रव्यकी मात्रा निरूहमें कही है और सत्तर वर्षसे उपरांत ८० तोलेभर द्रव्यको मात्रा निरूहमें है ऐसे प्रमाण कहा है ॥ १९ ॥ यथायथं निरूहस्य पादो मात्रानुवासने ॥ आस्थाप्यं अहिवं स्विन्नं शुद्धं लब्धबलं पुनः॥२०॥ निरूहबस्तिमें जो यथायोग्य मात्रा कही है तिससे चौथी हिस्सा मात्रा अनुवासन बस्तिमें जान नी और निरूहणके योग्य और स्नेहित और स्विन्न और शुद्ध और बलकी लब्धिसे संयुक्त मनुष्यको ॥ २० ॥ अन्वासनाह विज्ञाय पूर्वमेवानुवासयेत् ॥ शीते वसन्ते च दिवा रात्रौ केचित्ततोऽन्यदा ॥ २१॥ फिर मन्वासनके योग्य जानकर पहलेही अनुवासित करवावे, शीतऋतुमें और वसंतऋतुमें For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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