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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रस्थानं भाषाटीकासमेतम् । तत्रान्यस्थानसंस्थेषु तदीयामबलेषु च ॥ कुर्याञ्चिकित्सां स्वामेव बलेनान्याभिभाविषु ॥२०॥ अन्यस्थानों में जो स्थित और बलसे रहित वातआदि दोष होवें तो स्थानीके दोषसंबंधिनी चि'कित्साको नहीं करै, और बलवाले दोषोंमें अपनी ही चिकित्साको करै ॥२०॥ आगन्तुं शमयेद्दोषं स्थानिनं प्रतिकृत्य वा॥ प्रायस्तिर्यग्गता दोषाः क्लेशयन्त्यातुरांश्चिरम् ॥२१॥ • स्थानमें रहनेवाले दोषका प्रतीकार करके पीछे आगन्तुक दोषको शांत करै और प्रायताकरके तिर्यग्गत हुये दोष रोगीको चिरकालतक क्लेशित करते हैं ।। २१ ॥ कुर्यान्न तेषु त्वरया देहाग्निबलविक्रियाम् ॥ शमयेत्तान्प्रयोगेण सुखं वा कोष्ठमानयेत्॥२२॥ तिन तिर्यग्गत दोषोंमें शीघ्र चिकित्साको नहीं करै; देह अग्नि-बल-इन्होंके जाननेवाला वैद्य पीछे तीन दोषोंको प्रयोग करके शांत करै, अथवा सुखपूर्वक कोष्ठमें प्राप्त करै ॥ २२ ॥ ज्ञात्वा कोष्टप्रपन्नांश्च यथासन्नं विनिहरेत् ॥ स्रोतोरोधबलभ्रंशगौरवानिलमूढताः॥२३॥ कोष्टमें प्राप्त हुये दोषोंको जानकर पीछे वमन विरेचन आदिके द्वारा निकासे और नाडियोंके स्त्रोतोंका रोग-बलका क्षय-शरीरका भारीपन-वातकी मूढता ॥ २३ ॥ आलस्यापक्तिनिष्ठीवमलसङ्गारुचिक्लमाः॥ लिङ्गं मलानां सामानां निरामाणां विपर्ययः॥२४॥ आलस्य-भोजनका अपाक-मुरखस्राव-विष्ठाआदि मलकी अप्रवृत्ति-अरुचि-लानि ये सब आमसहित मलोंके चिह्न हैं, और आमोंसे रहित दोषोंके लक्षण इन्होंसे विपरीत जानना ॥ २४ ॥ ऊष्मणोऽल्पवलत्वेन धातुमांद्यमपाचितम् ॥ दुष्टमामाशयगतं रसमामं प्रचक्षते ॥२५॥ अग्निकी दुर्बलताकरके नहीं पाकको प्राप्त हुआ रसधातु पीछे दुष्ट होके आमाशयमें जाके प्राप्त होता है तिसको वैद्य आम कहते हैं ॥ २५ ॥ अन्ये दोषेभ्य एवातिदुष्टेभ्योऽन्योन्यमूर्च्छनात् ॥ कोद्रवेभ्यो विषस्येव वदन्त्यामस्य सम्भवम् ॥ २६॥ अन्य वैद्य अति दुष्टहुये दोषोंके आपसमें मूर्छनपनेसे आमकी उत्पत्तिको कहतेहैं जैसे कोद्रवोंसे विषकी उत्पत्ति कहते हैं ॥ २६ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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