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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१३६) अष्टाङ्गहृदये- ..... उपक्रमः पृथग्दोषान्योऽयमुद्दिश्य कीर्तितः॥ संसर्गसन्निपातेषु तं यथास्वं विकल्पयेत् ॥१३॥ पृथक् पृथक् दोषोंके प्रति जो उपक्रम जिसको उद्देशित कर प्रकाशित किया है वह संसर्ग और सन्निपातोंमें यथायोग्यपनेसे वैद्य विकल्पित करे ।। १३ ॥ ग्रैष्मः प्रायो मरुत्पित्ते वासन्तः कफमारुते॥ मरुतो योगवाहित्वात्कफपित्ते तु शारदः ॥ १४ ॥ वातीपत्तके संसर्गमें बहुधा ग्रीष्मऋतुकी चर्याको करै, कफ और वातकसंसर्गमें वसंतऋतुके समान चर्याको करै, क्योंकि वायुको योगवाहिपन होनेसे कफ और पित्तके संसर्गमें शरदऋतुके समान चर्याको करै ॥ १४ ॥ चय एव जयेदोषं कुपितं त्वविरोधयन् ॥ सर्वकोपे बलीयांसं शेषदोषाविरोधतः ॥१५॥ कुपित दोषक संग अविरोध करताहुवा संचय काल दोषको जीतता है और मब दोषोंके कोपमें अति बलवान् दोषको शेषदोषको अविरोधसे जीते ॥ १५ ॥ प्रयोगः शमयेद्वयाधिं योऽन्यमन्यमुदीरयेत् ॥ __ नासौ विशुद्धः शुद्धस्तु शमयेद्यो न कोपयेत् ॥१६॥ जो प्रयोग व्याधिको शांत करता है और अन्य अन्य रोगको उपजाता है वह प्रयोग शुद्ध नहीं है किंतु जोरोगको शांत करै और दोषोंको कुपित नहीं करै वह शुद्ध प्रयोग कहाता है ॥१६॥ व्यायामादृष्मणस्तैक्ष्ण्यादहिताचरणादपि ॥ कोष्ठाच्छाखास्थिमाणि द्रुतत्वान्मारुतस्य च ॥ १७ ॥ व्यायामसे-गरमाईसे तक्षिणपनेसे-अहित आचरणसे तो कोष्टसे शाखा-अस्थि-मर्म-इन्होंमें दोष आके प्राप्त होतेहैं क्योंकि पवनको शीघ्र स्वभाववाला होनेसे ॥ १७ ॥ दोषा यान्ति तथा तेभ्यः स्रोतोमुखविशोधनात् ॥ वृद्ध्याभिष्यन्दनात्याकारकोष्ठं वायोश्च निग्रहात् ॥१८॥ पीछे तिन स्थानोंसे तो स्रोतोंके मुखोंका विशोधनसे और वृद्धिसे-और अभिष्यंदनपनेंसे और पाकसे और वायुके निग्रहसे वेही दोष कोष्ठमें प्राप्त होते हैं ॥ १८ ॥ तत्रस्थाश्च विलम्बेरन भूयो हेतुप्रतीक्षिणः ॥ ते कालादिबलं लब्ध्वा कुप्यन्त्यन्याश्रयेष्वपि ॥ १९ ॥ तहां स्थित हुये और हेतुको देखते हुए दोष रोगोंको उत्पादन करते हैं और वेही दोष काल आदिके बलको लब्ध होकर कोष्टाश्रय शाखा-मर्म इन्होंमें कोपको प्राप्त होते हैं ॥ १९॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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