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सूत्रस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (९१) वर्णिनीमन्ययोनिं च गुरुदेवनृपालयम् ॥
चैत्यश्मशानायतनचत्वराम्बुचतुस्पथम् ॥ ७० ॥ ब्रह्मचर्यको धारणेवाली, बकरी तथा भैंसआदि या अन्यजातीसे संयुक्त स्त्रीको त्याग और मैथुनसमयमें गुरु-देवता-राजाका स्थान, और देवताकरके अधिष्ठित वृक्ष-श्मशान दुष्टोंक निग्रहस्थान-त्रिपथ-अर्थात् तिराहा पोनी-चोराहा ऐसे स्थानोंको त्यागै ॥ ७० ॥
पर्वाण्यनङ्गं दिवसं शिरोहृदयताडनम् ॥
अत्याशितोऽधृतिः क्षुद्वान् दुःस्थिताङ्गः पिपासितः॥७१॥ मैथुन समयमें सूर्यकी संक्रांतिआदि पर्वकालोंको, और मुखको जैसा कि दाक्षिणात्य मुखद्वारा करते हैं उसको न करै और दिनको रति न करै और शिर तथा हृदयके ताडनको त्यागै और अतिभोजन किये हुये और धैर्य्यपनेसे रहित और क्षुधावाला और दुःस्थित अंगोंवाला और अतिप्यासवाला ॥ ७१॥
बालो वृद्धोऽन्यवेगार्तस्त्यजेद्रोगी च मैथुनम् ॥
सेवेत कामतः कामं तृप्तो वाजीकृतां हिमे ॥ ७२ ॥ बालक-वृद्ध-मूत्रआदि वेगसे पीडित और रोगी मनुष्य मैथुनको त्याग और वा किरण द्रव्योंकरके तृप्तहुये मनुष्य शीतलकालमें मैथुनको इच्छापूर्वक सेवते रहैं ॥ ७२ ॥
यहाद्वसन्तशरदोः पक्षाद्वर्षानिदाघयोः॥
भ्रमक्लमोरुदौर्बल्यवलधात्विन्द्रियक्षयः॥ ७३ ॥ वसंत और शरदऋतुमें तीनतीन दिनोंके अंतरमें मैथुनको सेबै, और वर्षा प्रीष्म ऋतुमें पंद्रह २ दिनोंमें मैथुनको करै, और भ्रम-ग्लानि-जांवोंमें दुर्बलता-वलक्षय-धातुक्षय-इंद्रियक्षय ॥७३॥
अपर्वमरणं च स्यादन्यथा गच्छतः स्त्रियम् ॥ स्मृतिमेधायुरारोग्यपुष्टीन्द्रिययशोवलैः॥
अधिका सन्दजरसो भवन्ति स्त्रीषु संयताः॥ ७४॥ __ अकालमरण-ये सब पूर्वोक्त रीतिसे विपरीत कालमें मैथुन करनेमें उपजते हैं, और स्मृतिबुद्धि-आरोग्य-आयु-पुष्टि-इंद्रिय-यश-बल-इन्होंकी अधिकतासे संयुक्त और मंद बुढापावाले मनुष्य स्त्रियोंमें सावधान रहनेवाले होजाते हैं ।। ७४ ।। स्नानानुलेपनहिमानिलखण्डखाद्यशीताम्बुदुग्धरसयूषसुराप्रसन्नाः॥ सेवेत चानुशयनं विरतौ रतस्य तस्यैवमाशु वपुषः पुनरेति धाम॥७५॥
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