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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (७५) नारंगी जंबीरी नींबु सतूत अडीवेर वृक्ष ये सब अम्लदाखकी तरह गुणवाले हैं पका हुआ और सूखा करोंदा अतिपित्तको नहीं करता है ॥ १३६ ॥ दीपनं मेदनं शुष्कमम्लीकाकोलयोः फलम् ॥ तृष्णाश्रमलमच्छेदि लघिष्टं कफवातयोः ॥ १३७॥ सूखी अमली और बेर दीपन है भेदन है और तृषा श्रम ग्लानीको छेदित करता है, और हलका है कफ और वातमें हित है ॥ १३७ ।। फलानामवरं तत्र लकुचं सर्वदोपकृत् ॥ हिमानिलोष्णदुर्वातव्याललालादिदुषितम् ॥ १३८॥ सब फलोंमें नीचा बढहलका फलहै, वह सब दोपको करताहै. और शीत–वात-गरमी-बुरीबात-सर्पआदिकी लाल आदिकरके दूषित ॥ १३८ ॥ जन्तुजुष्टं जले मग्नमभूमिजमनार्तवम् ॥ अन्यधान्ययुतं हीनवीर्यं जीर्णतयापि च ॥१३९ ॥ और जीवोंकरके संयुक्त, और पानीमें मग्न और योग्य पृथिवीसे नहीं उपजा, और अकालमें उपजा, और दूसरे अन्नसे युत, और हीनवोठवाला अतिपुराना ॥ १३९ ।। धान्यं त्यजेत्तथा शाकं रूक्षसिद्धमकोमलम् ॥ असञ्जातरसं तद्वच्छुष्कं चान्यत्र मूलकात् ॥ १४०॥ ऐसे अन्नको त्याग और स्नेहकरके रहित पकाया हुआ और कोमलतासे रहित और उपजे हुये रससे रहित और मूली शाकके विना सूखे शाकको त्याग ॥ १४ ॥ प्रायेण बलमप्येवं तथामं विल्ववर्जितम् ॥ विष्यन्दि लवणं सर्वं सूक्ष्मं सृष्टमलं विदुः॥ ११ ॥ और प्रायतासे पूर्वोक्त प्रकारवाले और बेलगिरीसे रहित कचे फलकोभी त्यागै सब नमक कफआदि संघातके विग्रहपनेंको करतेहैं, और सूक्ष्म है, मलको रचते हैं यह वैद्य कहते हैं ॥ १४ ॥ वातघ्नं पाकि तीक्ष्णोष्णं रोचनं कफपित्तकृत् ॥ सैन्धवं तत्र सुस्वादु वृष्यं हृद्यं त्रिदोषनुत् ॥ १४२ ॥ और वातको नाशता है, घाव अन्न आदिको पकाताहै, तीक्ष्णहै, गरम है, रोचन है कफ और पित्तको करताहै, तिन्होंमें सेंधानमक स्वादु है, वीर्यमें हित है, सुंदर है और त्रिदोषको नाशता For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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