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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . अष्टाङ्गहृदयेतिक्त और स्वादु ऐसा पालुफल अति गरम नहीं है, और त्रिदोषको नाशता है बिजोराकी छाल तिक्त और कटु है चिकनी है ।। १२९ ।।। बृंहणं मधुरं मांसं वातपित्तहरं गुरु ॥ - लघु तत्केसरं कासश्वासहिध्मामदात्ययान् ॥ १३०॥ बिजोरेका गूदा धातुओंको बढाता है, मधुर है वात और पित्तको हरता है, और भारी है बिजोराका केशर हलका है, और खांसी -श्वास-हिचकी-मंदात्यय रोगोंको नाशता है ॥ १३०॥ आस्यशोषानिलश्लेष्मविबन्धच्छद्यरोचकान् ॥ गुल्मोदराशःशूलानि मन्दाग्नित्वं च नाशयेत् ॥ १३१ ॥ और मुखका शोष-वात-कफ-विबंध-छर्दि-अरोचक-गुल्म-उदररोग--बवासीर-शूटमंदाग्निरोगको नाशता है ॥ १३१ ॥ भल्लातकस्य त्वङ्मांसं बृंहणं स्वादु शीतलम् ॥ तदस्थ्यग्निसमं मेध्यं कफवातहरं परम् ॥ १३२ ॥ भिलावाकी छाल और गुदा धातुओंको बढाताहै, स्वादुहै शीतलहै और भिलावाकी गिरी अग्निके समान है पवित्र है कफ और वातको निश्चय हरती है ॥ १३२ ।। स्वाद्वम्लं शीतसुष्णं च द्विधा पालेवतं गुरु ॥ रुच्यमत्यग्निशमन रुच्यं मधुरमारकम् ॥ १३३ ॥ रैवत शाक २ प्रकारका है एक स्वादु और खट्टा, दूसरा शीतल और गरम है परंतु दोनों रैवतशाक रुचिमें हित हैं और अतिअग्निको शांतकरते हैं,और मधुर मारक चिमें हित है। १३३॥ पक्वमाशु जरां याति नात्युष्णं गुरु दोपलम् ॥ द्राक्षापरूषकं चाईमम्लं पित्तकफप्रदम् ॥ १३४॥ और पक्कहुआ यह फल शीव जीर्णताको प्राप्त होता है, और अति गरम नहीं है. और भारी है और दोषोंको उपजाता है, और गीले हुये दार्ख और फालसे खट्टे हैं, पित्त और कफको देतेहैं ॥ १३४ ॥ गुरूष्णवीर्य वातघ्नं सरं च करमर्दकम् ॥ तथाम्लं कोलकर्कन्धूलकुचाम्रातमारकम् ॥ १३५॥ करोंदा भारी है, गरम वीर्यवाला है, और वातको नाशता है, और संर है और दोनों तरहके बेर बढहल अंबाडा मारुक ॥ १३५ ॥ ऐरावतं दन्तशठं सतूदं मृगलिण्डिकम् ॥ नातिपित्तकरं पक्कं शुष्कं च करमर्दकम् ॥ १३६ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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