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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तरस्थानं भाषार्टीकासमेतम् । (१००९) विदाहरागरुक्पाकशोथग्रन्थिविकुंचनम् ॥ १२ ॥ दंशावदरणं स्फोटाः कर्णिका मण्डलानि च॥ सर्वत्र सविषे लिंगं विपरीतं तु निर्विषे ॥१३॥ और इसीसे अन्यभी दंष्ट्राके प्रहार करनेवाले गीदड भादि जानलेने ॥ ११ ॥ खाज चभका वर्णका बदलजाना सुप्ति क्लेदज्वर भ्रम दाह राग पीडा पाक शोजा ग्रंथि विकुंचन ॥ १२ ॥ दंशका कटना फोडे कर्णिका मंडल ये सब विषसे संयुक्त हुये दंशमें होतेहैं और विषसे वर्जित दंशमें इन्होंसे विपरीत लक्षण जानने ॥ १३ ॥ दष्टो येन तु तच्चेष्टा रुतं कुर्वन्विनश्यति ॥ पश्यंस्तमेव चाकस्मादादर्शसलिलादिषु ॥ १४ ॥ जिस प्राणीके जो डशागयाहो तिसीके समान चेष्टा और शब्दको करताहुआ अथवा कारणकेही विना सीसा और जल आदिमें तिसी प्राणीको देखताहुआ मरजाताहै ॥ १४ ॥ योऽद्भधस्त्रस्येददष्टोऽपि शब्दसंस्पर्शदर्शनैः॥ जलसन्त्रासनामानं दष्टं तमपि वर्जयेत् ॥१५॥ जो नहीं दष्टहुआभी पानियोंसे डरै, शब्द संस्पर्श दर्शनसे त्रासको प्रातहो इस प्रकारसे काटे. हुएकी चिकित्सा नहीं करनी ॥ १५ ॥ आखुना दष्टमात्रस्य दंशं काण्डेन दाहयेत् ॥ दर्पणेनाथवा तीव्ररुजा स्यात्कर्णिकान्यथा ॥ १६ ॥ मूसेके दंशको पत्थर अथवा सीसेसे दग्धकरै और जो नहीं दग्धकरे तो तीत्र पीडावाली कर्णिका उपजतीहै ॥ १६ ॥ दग्धं विस्रावयेदंशं प्रच्छिन्नं च प्रलेपयेत् ॥ शिरीषरजनीवक्रकुंकुमामृतवल्लिभिः ॥ १७ ॥ दंशको दग्धकर और प्रच्छिन्नकर झिरावै और शिरस हलदी तगर केशर गिलोयसे लेपितकरै १७॥ अगारधूममञ्जिष्ठारजनीलवणोत्तमैः॥ लेपो जयत्याविषं कर्णिकायाश्च पातनः ॥१८॥ घरका धूम मजीठ हलदी सेंधानमक इन्होंसे किया लेप मूसेके विषको जीतता है और कर्णिकाको गिराताहै ॥ १८ ॥ ततोऽम्लैः क्षालयित्वाऽनु तोयैरनु च लेपयेत् ॥ पालिन्दीश्वेतकटभीविल्बमूलगुडूचिभिः॥ १९॥ अन्यैश्च विषशोफनैः शिरा वा मोक्षयेद्रुतम् ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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