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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तरस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (९५९) त्पीडाविषवच्छुक्रपातनैः॥३॥ वेगनिग्रहदीर्घातिखरस्पर्शविघहनैः॥दोषा दुष्टा गता गुह्यं त्रयोविंशतिमामयान् ॥ ४॥ जनयन्त्युपदंशादीनस्त्रीके संग मैथुनसे निवृत्तहुयेके अथवा कारणके विनाही स्त्रीके संग मैथुन अथवा हस्तक्रिया आदिको सेवनेवालेके अथवा वातआदि दोषकरके अधिष्ठित तथा संकीर्ण और मलिन योनिमार्गवाली ॥ १॥ और भैंस बकरी आदिकी योनि और नहीं इच्छा करनेवाली और अगम्य अर्थात् बहनआदि और नवीन सूतिका स्त्रीके संग भोग करनेवाले मनुष्यके और दूषितहुये पानीको स्पर्श करनेवाले मनुष्यके और मैथुनके अंतमें जलका न स्पर्श करनेवाले मनुष्यके ॥ २ ॥ और लिंगको बढानेकी इच्छा करके तीक्ष्ण लेप आदिको सेवनेवाले मनुष्यके और मुष्टि दंत नख उत्पीडन विषवाले पदार्थ वीर्य के पातनोंसे ॥ ३ ॥ वेगोंका रोकना दीर्घ और अत्यंत खरधरा स्पर्श और योनिके विघटनकरके दुष्टहुये दोष लिंगमें प्राप्त होके २३ प्रकारक।।४॥उपदंश आदि रोगोंको उपजातेहैं । उपदेशोऽत्र पश्चधा॥ पृथग्दोषैः सरुधिरैः समस्तैश्चतिन्होंके मव्यमें उपदंश पांच प्रकारकाहै वातका पित्तका कफका रक्तका सन्निपातका अत्र मारुतात् ॥ ५॥ . मेदशोफे रुजश्चित्राः स्तम्भस्त्वक्परिपोटनम् ॥ इन्होंके मध्यमें बायुसे उपजे ॥ ५ ॥ उपदंशमें लिंगमें शोजा अनेक प्रकारको पीडा तथा स्तंभ और लिंगकी त्वचामें परिपोटन ( फटाव) ये उपजतेहैं ॥ ___पक्कोदुम्वरसंकाशः पित्तन श्वयथुर्वरः ॥६॥ और पित्तसे पकेहुए गूलरके समान शोजा और ज्वर उपजताहै ॥ ६ ॥ ___ श्लेष्मणा कठिनः स्निग्धः कण्डूमाञ्छीतलो गुरुः॥ कफसे कटिन स्निग्ध और खाजवाला शीतल भारी शोजा उपजताहै ॥ शोणितेनासितस्फोटसम्भवोऽस्त्रस्नुतिर्वरः॥७॥ . और रक्तसे काले फोडोंकी उत्पत्ति रक्तका झिरना और ज्वर उपजताहै ॥ ७ ॥ सर्वजे सर्वलिङ्गत्वं श्वयथुर्मुष्कयोरपि ॥ तीवारुगाशुपचनं दरणं कृमिसम्भवः ॥८॥ सन्निपातके उपदंशमें सब दोषोंके लक्षण होतेहैं, और वृषणोंमें शोजा तीव्रपीडा तत्काल । पकना, और विदारण कीडोंका संभव होताहै ॥ ८ ॥ याप्यो रक्तोद्भवस्तेषां मृत्यवे सन्निपातजः॥ सब उपदंशोंमें रक्तका उपदंश कष्टसाध्यहै, और सन्निपातका उपदंश मृत्युका कारणहै ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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