SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1021
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (९५४) अष्टाङ्गहृदयेकेशर इन्होंको मिलावे बकरीका दूध ३२ तोले और तेल १६ तोले मिलाके पकावै ॥ २९ ॥ और अभ्याससे प्रयुक्त किया इस तेलका नस्य नीलिका सफेदबाल व्यंगरोग बलिरोग तिलकालक दूषिक इनको नाशताहै मुखको नीरोग और कान्तिको करताहै ॥ ३० ॥ मञ्जिष्ठाशबरोद्भवस्तुवरिकालाक्षाहरिद्राद्वयं नेपालीहरितालकुंकुमगदागोरोचनागैरिकम्॥पत्रंपाण्डुवटस्य चन्दनयुगंकालीयकं पारदं पत्तङ्गं कनकत्वचंकमलजं बीजं तथा केसरम३१ सिक्थं तुत्थं पद्मकायोवसाज्यं मजाक्षीरंक्षीरिवृक्षाम्बुचाग्नौ। सिद्धं सिद्धं व्यङ्गनील्यादिनाशे वक्रछायामैन्दवीं चाशुधत्ते३२॥ मजीठ श्वेतलोध फटकडी लाख हलदी दारुहलदी मनशिल हरताल केशर कूट गोरोचन गेरू पीले बडके पत्ते लालचंदन सफेदचंदन तगर पारा पतंगवृक्ष पीलेकमलकी छाल कमलके बीज कमलकेसर ॥ ३१ ॥ मोम नीलाथोथा पद्मकादिगणके औषध वसा घृत मजा दूध दूधवाले वृक्षोंका रस इन्होंको अग्निमें सिद्धकरै सिद्धकिया यह घृत व्यंग और नीलिका आदिको नाश करनेबाला मुखपै चंद्रमाकी कांतिको प्राप्त करताहै ॥ ३२ ॥ मार्कवस्वरसक्षीरतोयपिष्टानि नावने ॥ भंगरेके स्वरस दूध पानी में पिसेहुये औषध नस्यमें हितहैं । प्रसुप्तौ वातकुष्टोक्तं कुर्यादाहं च वह्निना ॥ उत्कोठे कफपित्तोक्तं कोठे सर्वं च कौष्टिकम् ॥ ३३ ॥ और प्रसुप्ति रोगमें वात कुष्टमें कहे औषधको और दाहको करै और उत्कोचरोगमें कफपित्तमें कहे औषधको करै, और कोठरोगमें कुष्ठमें कहे सब औषवको करै ॥ ३३ ॥ ___ इति बेरीनिवासिवैद्यपंडितरविदत्तशास्त्रिंकृताऽष्टांगहृदयसंहिताभाषाटीकाया मुत्तरस्थाने द्वात्रिंशोऽध्यायः ॥ ३२ ॥ त्रयस्त्रिंशोऽध्यायः। ... अथातो गुह्यरोगविज्ञानीयमध्यायं व्याख्यास्यामः। इसके अनंतर गुह्यरोगविज्ञानीयनामक अध्यायका व्याख्यान करेंगे।। स्त्रीव्यवायनिवृत्तस्य सहसा भजतोऽथवा ॥ दोषाध्युषितसंकीर्णमलिनानुरजःपथाम् ॥१॥ अन्ययोनिमनिच्छन्तीमगम्यां न वसूतिकाम् ॥ दूषितं स्पृशतस्तोयं रतान्तेष्वपि नैव वा॥२॥ विवर्द्धयिषया तीक्ष्णान्प्रलेपादीन्प्रयच्छतः ॥ मुष्टिदन्तनखो For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy