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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तरस्थानं भाषाटीका समेतम् । ( ९५५ ) लंघन और रक्तका निकालना विरूक्षणकर्म शरीरका शोधन और आँवलेके प्रयोग और शीतल लेप इन्होंको सब कालमें जालगर्दमकी शांतिके अर्थ करै ॥ ६ ॥ विदारिकां हृते रक्ते श्लेष्मग्रन्थिवदाचरेत् ॥ मेदोऽर्बुदक्रियां कुर्य्यात्सुतरां शर्करार्बुदे ॥ ७ ॥ रक्तको निकालके पीछे विदारिकाको कफकी ग्रंथिके समान चिकित्सितकरै शर्करार्बुद में अच्छी तरह मेदके अर्बुदकी समान क्रियाको करै ॥ ७ ॥ प्रवृद्धं सुबहुच्छिद्रं सशोफं मम्मणि स्थितम् ॥ वल्मीकं हस्तपादे च वर्जयेद् बढ हुआ और बहुतसे छिद्रोंवाला और शोजेसे संयुक्त और मर्ममें स्थित वल्मीक हाथमें और पैर में होतो चिकित्सा के योग्य नहीं ॥ इतरत्पुनः ॥ ८ ॥ शुद्धस्यात्रे हृते लिम्पेत्सपङ्कारेवतामृतैः ॥ श्यामाकुलत्थिकामूलदन्तीपललसक्तुभिः ॥ ९ ॥ फिर अन्यत्रल्मीकको || ८ || शुद्ध किये मनुष्य के रक्तको निकास नमक अमलताश गिलोय कालीनिशोत कुलथीकी जड जमालगोटाकी जड तिल कुटसत्तू से लेपितकरै ॥ ९ ॥ पक्के तु दुष्टमांसानि गतीः सर्वाश्च शोधयेत् ॥ शस्त्रेण सम्यगनु च क्षारेण ज्वलनेन वा ॥ १० ॥ पकहुये में दुष्ट मांसोंको और सब गतियों को शस्त्रसे पीछे खारसे तथा अग्निसे शोधितकरै १० ॥ शस्त्रेणोत्कृत्य निःशेषं स्नेहन कदरं दहेत् ॥ निरुद्धमणिवत्कार्यं रुद्धपायोश्चिकित्सितम् ॥ ११ ॥ कदररोगको शस्त्रसे जडसहित काट पीछे स्नेहसे दग्धकरें और निरुद्रमणीकी सदृश रुद्र गुदके चिकित्सितका करना योग्य है ॥ ११ ॥ चिप्यं शुद्धया जितोष्माणं साधयेच्छस्त्रकर्म्मणा ॥ जुलाब आदि शुद्धिकरके जीती हुई गरमाईवाले चिप्यरोगको शस्त्रकर्म से साधै ॥ दुष्टं कुनखमप्येवं और दुष्टये कुन रोगकोभी इसीप्रकार साधितकरै ॥ चरणावलसे पुनः ॥ १२ ॥ धान्या लसिक्तौ कासीसपटोलीरोचनातिलैः ॥ सनिम्बपत्रैरालिम्पेत् और अलसरोग में दोनों पैरों को ॥ १२ ॥ कांजीसे सेचितकर हीराकसीस परवल गोरोचन के पत्ते से लेकरे ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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