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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (९४०) अष्टाङ्गहृदयेप्रवृद्धं मेदुरैर्मेंदोनीतं मासेऽथ वा त्वचि ॥७॥ वायुना कुरुते ग्रन्थि भृशं स्निग्धं मृदुं चलम् ॥ श्लेष्मतुल्याकृति देहक्षयवृद्धिक्षयोदयम् ॥८॥ - स विभिन्नो घनं मेदस्ताम्रासितसितं स्रवेत् ॥ बढीहुई मेदको प्राप्तहुई और मांस स्वचाको प्राप्तहुई ॥ ७ ॥ वातसे स्निग्ध कोमल चलनेवाली कफकी आकृतिवाली शरीरके क्षय और वृद्धि होजातीहै ॥ ८ ॥ सो कफकी ग्रंथि फूटके करडीहुई सफेद लाल और काली झिरती है ॥ अस्थिभङ्गाभिघाताभ्यामुन्नतावनतं तु यत् ॥९॥ सोऽस्थिग्रन्थि:और हाडके टूटनेसे चोटसे उँची नीची गांठ होजातीहै ॥ ९ ॥ सो अस्थिकी ग्रंथि जानना ।। पदातेस्तु सहसाम्भोऽवगाहनात् ॥ व्यायामाद्वा प्रतान्तस्य शिराजालं सशोणितम्॥ १० ॥ वायुः संम्पीडव सङ्कोच्य वक्रीकृत्य विशोष्य च ॥ निःस्फुरं नीरुजं ग्रन्थि कुरुते सशिराह्वयः ॥ ११ ॥ पदातिके अकस्मात् जलके तैरनेसे अथवा कसरतसे मनुष्य के रुधिरसहित शिराजालको॥१०॥ वायु पीडा संकोच टेढापन सूखापनको उत्पन्नकरके पश्चात् नहीं फुरनेवाली और पीडासे रहित शिराय अंथिको उत्पन्न कर देतीहै ॥ ११ ॥ अरूढे रूढमात्रे वा व्रणे सर्वरसाशिनः ॥ सार्दै वा बन्धरहिते गानेऽश्माभिहतेऽथ वा ॥ १२॥ वातास्त्रमनुतं दुष्टं संशोष्य ग्रथितं व्रणम् ॥ कुर्यात्सदाहः कण्डूमान्त्रणग्रन्थिरयं स्मृतः॥ १३ ॥ व्रणके भरने अथवा नदी भरनेपर सर्वरस भोजन करनेवालेके और व्रणकी गीलेपनसे अथवा बंधरहित होनेसे अथवा पत्थर आदिकी चोट लगनेसे ॥ १२॥ वात रुधिरके झिरनेसे दुष्टरक्त ग्रंथि पैदाकर देताहै दाहवाली और खाजवाली सो व्रणग्रंथि है ॥ १३ ॥ साध्या दोषास्त्रमेदोजा न तु स्थूलखराश्चलाः ॥ मर्मकण्ठोदरस्थाश्च सहत्तु ग्रन्थितोऽव॒दम् ॥ १४ ॥ तल्लक्षणं च मेदेोऽन्तैः षोढा दोयादिभिस्तु तत्॥ प्रायो मेदःकफाट्यत्वात्स्थिरत्वाञ्च न पच्यते ॥ १५॥ तिन्होंमें दोष रुधिर मेदसे उपजी ग्रंथी साध्यहै और भारी तीक्ष्ण और फिरनेवाली असाध्यहै और मर्म कंठ पेटकी मोटी झिरनेवाली गांठ असाध्यहै।॥१४॥तिसके लक्षण भेदपर्यंत दोषोंसे छःप्रकारके हैं बहुत करकेयह मेदहै और कफयुक्त होनेसे कररा होजाताहै और पकता नहीं उसे अर्बुद कहतेहैं ।।१५॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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