SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Sh i n Arada en Acharya Sh Kailassagerar Gyanmandie श्री अष्ट प्रकार। ل يله A बार जोधपुर पाई और दीक्षा के लिये प्रार्थना की, अनन्तर संवत् १९७० मार्गसिर वदी ११ के दिन हमको भी दीक्षा देकर प्रभावत्री जी नाम से प्रसिद्ध किया। इन्होंने तेरह वर्ष चारित्र पालकर देवलोक गमन किया। तृतीय शिष्या फलोदी के एक श्रावक सौभाग्यमल जी गोलेछा को धर्म पत्नी केशरबाई को सुपुत्री सुगनवाई ने संवत् १८४० भाद्रपद कृष्ण ३ को रात्रि के र बजे जन्म ग्रहण किया था, और वहीं वेद रतनलाल जी के सपत्र सौभागचंद जो से माता , पिताओं ने सं० १८५२ में हम बाई का विवाह किया । पुनः मत्रद वर्ष पर्यन्त ग्रहस्थाश्रम में सर्व सुख प्राप्त किये, अनन्तर सं. १९६८ में पूर्व शुभ कमोदय से इस बाई को वधध्य प्राप्त हुआ। कई बार इस बाईने।गुरुणी जो महाराज से दीक्षा के लिये प्रार्थना की पर सफलता न हुई । जब महाराज विहार करके फलोदी पधारे तो पम सुगन बाई के हृदय में दीक्षा लेने की सरकवठा बढ़ी, और महाराज के ठराने का आग्रह किया । लाभ देखकर शाप ठहर गई और वहीं चतुर्विध संघ के समक्ष संवत् १९७१ माघ सुदी १ ( वसन्त पञ्चमी ) दिन शुभ मुहूर्त में दीक्षा दी और सगनश्री नाम स्थापन किया। चतुर्थ शिष्या जोधपुर के बरादियों के मुहल्ले में एक धार्मिक श्रावक गणेशमल जी कोपर रहतेचे, भापकी धर्म पत्नी का नाम عليرحل ४ ॥ For Private And Personal use only
SR No.020072
Book TitleAshtaprakari Pooja Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaychandra Kevali
PublisherGajendrasinh Raghuvanshi
Publication Year1928
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy