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________________ Shin Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirtm.org Acharya Shil kailassaganser Cyanmandir * न सूचित तीनों पुत्रों के अन्तर विक्रम संवत् १९०३ ज्येष्ट सुदी ५ को कन्या का जन्म हुआ। इस बालिका का नाम माता पिता ने शरीर की सन्दरता और संगठन के कारण गहवाई दिया। माता के साथ धर्मशाला और देव दर्शनों में प्रतिदिन जाना, और पढ़ी लिखी धार्मिक बालिकाओं से बात चीत करना बचपन से ही श्रापको रुचिकर था। पिता ने जब पुत्री की विवाह अवस्था देखी तब माता के श्राग्रह से शीघ्र ही बारह वर्ष की अवस्था में विवाह करना ठान लिया और इसी नगर के धनिक शिरोमणि, धार्मिकरन भंडारी उम्मेदचन्द जी के सुयोग्य पुत्र पृथ्वीचंद्र बी के साथ धूमधाम से कन्या का पाणिग्रहण करदिया । कुछ वर्ष पतीत हुये तब चरित्र नायका का चित्त गृहस्थ सुख से विमुख सा होगया। केवल लोक व्यवहार से समराल में जाना प्राना होता था । कर्मोदय से अापके पतिदेव २० वर्ष की अवस्था में ही परलोक सिधार गये। फिर धर्म ध्यान करते और दीक्षा समय की प्रतीक्षा करते २ अपने अन्तराय कमाँ की प्रबलता से ब्रायः ३४ वर्ष बड़े कष्ट से व्यतीत किये। मध्य में कई बार आपने गुरुणी जी महाराज भावत्री जी से दीक्षा के लिये प्रार्थना की सुसराल में श्वशुर से राजकार्य (दाकिनी) के कारण कई वर्षों तक दीक्षा की आज्ञा नहीं मिली अतः नापने २० वर्ष तक चार विकृति ( विगह) का त्याग किया और धर्मकार्य में दृढ़ निश्चय कर लिया । सच यहां भावी जी पधारों और चातुर्मास किया, तब आपने अपने देवर विसमचंद जी से कहा कि मुझे दीक्षा 1 की मात्रा दो, जब उनकी टालाटोली देखी तो स्पष्ट कर दिया कि माला न दोगे तो मैं अपना शरीर त्याग कर दूंगी। ऐसा नविन चिकन For Private And Personal use only
SR No.020072
Book TitleAshtaprakari Pooja Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaychandra Kevali
PublisherGajendrasinh Raghuvanshi
Publication Year1928
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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