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________________ राजवैद्य पं० रवीन्द्र शास्त्री कविभूषण इस ग्रंथ की समालोचना करते हुये लिखते हैंआयुर्वेदीय विश्व-कोष के प्रथम खंड को मैंने खूब अच्छी तरह देखा है। ग्रंथ के सांगोपांग अध्ययन के बाद मैं इस निश्चय पर पहुँचा हूँ कि वास्तव में यह क्रान्तकारी और अद्वितीय ग्रंथ न है, आयुर्वेदीय निघंटु के साथ ही एलोपेथिक तथा हिकमती निघण्टु का उल्लेब होने से सोने में सुगन्ध हो गई है प्रत्येक शब्द का वर्णन आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से होने पर भी साधारण जनता भी इससे बहुत लाभ उठा सकती है, मेरा विश्वास है कि इस पुस्तक के प्रकाशन से आयुर्वेदिक साहित्य के एक प्रधान अंग की पूर्ति हो गई है, जो वैद्य मात्र के लिये अभिमान की बात है। पुस्तक के लेखक महोदयों ने निश्चय ही अपने ज्ञान ओर अन्वेषण का सदुपयोग करके वैद्यों का न केवल हित ही किया है अपितु उनके लिये एक आदर्श भी बना दिया है । पुस्तक के प्रकाशक महोदय ने वास्तव में ऐसे विशालकाय ग्रंथ का प्रकाशन करके अपने सत्साहस और आयुर्वेद प्रेम का परिचय दिया है । मैं लेखक और प्रकाशक दोनों को ही इस सदुद्योग के लिये धन्यवाद देता हूँ। वैद्य मात्र से मेरी यह अपील है कि वह अपनी ज्ञान वृद्धि के लिये पुस्तक की एक प्रति अपने पास अवश्य रक्खें। कविराज शशिकान्त भिषगाचार्य, पूर्व सम्पादक जीवनसुधा इस ग्रंथ की उपयोगिता पर लिखते हैंआयुर्वेद साहित्य में इस प्रकार के महा कोष की निहायत जरूरत थी, जिसके स्वाध्याय से वैद्यक डाक्टरी और यूनानी का पूर्ण ज्ञाता हो सके, यह बात आयुर्वेदीय विश्व कोष से पूर्ण हो सकती ' है, हिंदी में अभी तक ऐसा अभूत पूर्व ग्रंथ नहीं था। यह अभाव भगवान विश्वेश्वर के द्वारा पूर्ण हो रहा है, आयुर्वेद का साहित्य संसार के सब साहित्यों से पिछड़ा हुआ है। जब तक इस प्रकार की ज्ञान वर्धित अनुपम पुस्तकों का निर्माण नहीं होगा, तब तक आयुर्वेद साहित्य नहीं बढ़ सकता। ओ कार्य आयुर्वेद महा मंडल के हाथों द्वारा कभी का समाप्त हो जाना चाहिये था, वह गुरुतर कार्य पं० विश्वेश्वरदयालु जी अपने निर्बल कंधों पर उठा रहे हैं, अत: वे धन्यवाद के पात्र हैं। किंग जार्जस मेडीकल कालेज डिपार्टमेन्ट आफ फार्माकालाजी लखनऊ २३ मार्च सन् १९३६ ई० प्रिय महाशय ! आपने जो अपने 'आयुर्वेदीय कोष' का प्रथम खंड प्रेषित किया, उसके लिये मैं आपको धन्यवाद देता हूँ । इस प्रकार की रचना दीर्घ प्रयास एवं महान योग्यता की अपेक्षा रखती है। मुझे इसमें कोई सन्देह नहीं कि, भारतीय चिकित्सा प्रणाली के प्रेमियों द्वारा यह पूर्णतया अभिनन्दित होगा। मैं आपके इस उद्योग की सफल ना का अभिलाषी हूँ। वी० एन० ब्यास एम० वी०, रायबहादुर, प्रधानाध्यक्ष निघण्टु विभाग विश्वविद्यालय-लखनऊ
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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