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________________ एसिडम् क्रोमिकम् १८०० एसिडम् थाइमिनिकम् थेराप्युटिक्स अर्थात् आमयिक प्रयोग एलकोहल, ईथर वा ग्लीसरीन में मिलाने से तत्क्षण प्रज्वलित होने की आशंका रहती है। अतः लाइकर एसिडाई क्रोमिसाई दाहक रूप से | इन द्रव्यों के साथ उसे कदापि न मिलाना मस्सों (Warts), फिरङ्ग जनित चट्टों ( Con चाहिये। dylomata ), दुष्ट व्रणों ( Lupus ) कोषमय घेघा (Cystic goitre) एवं एसिडम्गेलिकम-[ ले० acidum-gallicum] अन्य कोषाकार अर्बुदों (Cystic tumo मायिकाम्ल । दे० "माजू"। urs) प्रभृति के प्रदग्ध करने में काम आता है। एसिडम्-टाटारिकम्-[ ले. acidum-tartariकिंतु इसका प्रयोग बहुत ही चतुरतापूर्वक करना | cum ] टारटारिक एसिड tartaric acil चाहिये । अस्तु इसे नोकदार शीशे की कलम से (अं०)। तितिडि काम्ल, इमली का सत, इमली लगाना चाहिये और उक्त स्थल के आस-पास के __ का तेजाब, अंगूर का सत-(हिं.)।हम जुत्तीरी, तन्तुओं को सुरक्षित रखने के लिए उस पर प्लाष्टर मिल्हुत्तीरी, ततॊरुलखमर-(३०)। निर्माण-विधि-द्राक्षा-स्वरस अर्थात् अंगूर वा मलहम लगा देना चाहिए तथा लिंट का एक के शराब बनने के उपरांत शराब के पीपों में टकड़ा पानी में भिगोकर अपने पास रखना चाहिए: जो वस्तु लगी रह जाती है, उसे आंग्ल भाषाविद् जिसमें यदि तेजाब कुछ अधिक लग जाय, तो उसे टारटार कहते हैं। उसे ही अरबी भाषा में तीर लिंट से तत्काल अभिशोषित कर लिया जाय । और फारसी में दर्दे-शराब कहते हैं। इसीसे प्रति औंस जल में १० ग्रेन क्रोमिक एसिड पोटेशियम टार्टरेट बनाई जाती है और पोटेशियम् डालकर बनाया हुआ घोल मुखज्ञत विशेषतः टार्ट रेट से टार्टरिक एसिड निर्मित होता है । यह फिरंगजन्य क्षतों ( Syphilides ) के लिए अम्लतितिड़िका ( इमली) और अपक्क द्राक्षा और बहुत ही उपयोगी होता है। परन्तु रेन्युला श्राम्रादि फलों में प्रचुरता से पाया जाता है. और लिंग्वल एपिथैलियोमा को प्रदाहित करने के और उनसे ही पृथक करके स्फटिकाकार "टार्टरी" लिए तीव्र घोल की आवश्यकता पड़ती है। इसे नाम से विक्रय होता है। लगाने के कुछ मिनिट उपरांत एल्युमिनिया एसी- नोट-यह अल अम्लिका (इमली) और टेट के घोल से प्रक्षालित कर डालना चाहिये। खट्टतूत में भी होता है। इसलिये कभी उनसे अल्सरेटेड गम्ज़ (क्षतयुक्त मसूढ़ों) और फाउल | भी इसको प्राप्त कर लिया करते थे । पर अधुना सोज (दुर्गधिमय-क्षतों) के प्रक्षालनार्थ इसका साधारणतः यूरुप में इसको पोटेशियम टार्टरेट से निर्बल घोल, जैसे, की शक्ति का वा उससे ही प्रस्तुत करते हैं । वि० दे० "तिन्तिडिकाम्ल"। | एसिडम-टैनिकम्-[ ले०ncidum-tannicum] किंचित् तीव्र उपयोग में लाया जाता है। इसके एक प्रकार का अम्ल जो बबूल, खदिरादि अनेक १ ग्रेन प्रति औंसवाले घोल को जल में मिलाकर वृक्षों की छालों से प्राप्त किया जाता है। उससे कंठ रोगों में गंडूष कराते हैं। (Tannic acid) कषायाम्ल । वल्कलाम्ल। श्वेत प्रदर-( Leucorrhoea) और वि० दे० “वल्कलाम्ल"। पूयमेह ( सूज़ाक) में इसके २००० वा ४००० एसिडम् डाइआक्सिफेनिकम्-[ ले० acidumभाग जल में १ ग्रेन एसिड की शक्ति के सोल्युशन dioxyphenicum ] डाइआक्सिफेनिक की उत्तर-वस्ति करने से लाभ होता है। पैरों से एसिड। अधिक स्वेद-स्राव होने पर इसके तीन प्रतिशत एसिडम् डाइआयोडो-सैलिसिलिकम्- ले० aciके घोल का प्रयोग उपकारी होता है। dum-di-iodo-salicylicum ]errariयोग-निर्माण विषयक आदेश डोसैलिसिलिक एसिड। क्रोमिक एसिड अपने संवटन से आक्सीजन एसिडम्-थाइमिनिकम्-[ ले० acidum-thyसरलतापूर्वक पृथक् कर देता है। अतएव इसको minicum ] सोल्युरोल (Solurol.)।
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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