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________________ एलादिलेप श्रासन, साल, वायबिडंग, भिलावाँ, चित्रक, त्रिकुटा, नागरमोथा और गोपीचंदन- इनके काथ से यथा-विधि १ प्रस्थ घृत सिद्ध करके ठंडा होने पर — मिश्री ३० पल वंसलोचन ६ पल और शहद २ प्रस्थ मिलाकर मथनी से मथें इसे प्रतिदिन प्रातःकाल १-१ पल खाकर ऊपर से सावधानी पूर्वक उचित मात्रानुसार दूध पीना चाहिए। यह मं श्रत्यन्त मेधावर्धक, नेत्रों को हितकारी, श्रायुवर्धक, यचमानाशक एवं शूल, और भगन्दरनाशक है। यह सेवन योग्य रसायन है, एवं इसमें किसी प्रकार के परहेज की भी श्रावश्यकता नहीं है । च० द० राज० चि० । एलादि लेप - संज्ञा पु ं० [सं० पु० ] इलायची, कूठ, पाण्डु दारूहल्दी, मोथा, चित्रक, वायविडंग, रसौत और हड़ - इन्हें पीसकर लेप करने से कुछ का नारा होता है । च० चि० ७ श्र० । १०८५ एलाद्य गुटिका - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] दे० "एलादि गुटिका" । एलाद्य-मोदक-संज्ञा पु ं० [सं० पु० ] अपस्मार रोग में प्रयुक्त उक्त नाम का योग — छोटी इलायची, मुलेठी, चित्रक, हल्दी, दारु-हल्दी, हड़, बहेड़ा श्रवला, रकशाली (लाल धान ), पीपल, मुनक्का, छोहाड़ा, तिल, जौ, विदारीकन्द, गोखरू, निशोथ, शतावर हरएक समानभाग और सबसे द्विगुण मिश्री की चाशनी कर यथाविधि मोदक प्रस्तुत करें। मात्रा - १० मा० । गुण तथा सेवन-विधि - इसे धारोष्ण गोदुग्ध के साथ या मूँग के यूष के साथ सेवन करने से मद्यपान जनित समस्त विकार एवं अन्य बीमारियाँ जो दुःसाध्य हो चुकी हों, शीघ्र नष्ट होती हैं । भैष० प० चि० । एलाचरिष्ट्र - संज्ञा पुं० [सं० पु०] इलायची ५० पल ( २०० तो ० ), अडूसे की छाल २० पल ( ८० तो० ), मजीठ, इन्द्र-जौ, दन्तीमूलत्वक्, हल्दी, दारूहल्दी, रास्ना खस, मुलेठी, सिरस की छाल, खदिर, अर्जुन की छाल, चिरायता, नीम की छाल, कूठ और सौंफ प्रत्येक १०-१० पल । सबको कूटकर ८ द्रोण जल में पकाएँ । जब एक द्रोण जल शेष बचे, तब छानकर उसमें पुनः ६ फा० एलायुग्म १६ पल, शहद ३०० पल, धो के फूल दालचीनी, तेजपात, नागकेशर, इलायची, त्रिकुटा, दोनों चन्दन, मुरामांसी, जटामांसी, मोथा, भूरि छरीला, श्वेतसारिवा, कृष्णसारिवा प्रत्येक १-१ पल कूटकर मिलाएँ पुनः इसे एक मिट्टी के पात्र में रख उसका मुख दृढ़ बन्द कर पृथ्वी में गाड़ दें। इसे एक मास पश्चात् निकालकर छा श्रर बोतल में भर सुरक्षित रख लें। मात्रा - १-२ तोला । गुण - इसके सेवन से विसर्प, मसूरिका, रोमान्तिका, शीतपित्त, विष्फोटक, विषम ज्वर, नाड़ी व्रण, दुष्ट व्रण, दारुणकास, श्वास, भगंदर, उपदंश, एवं प्रमेह पीडिका का नाश होता है । भैष० र० परि० । एलान -संज्ञा पु ं० [सं० नी० ] नागरंग । नारंगी । नारेङ्गा ले - बं० । हिरंवेफल मरा० । गुणपका खाने में मधुर, शीतल, बलकारक तथा वात-पित्तनाशक है । कच्चा फल खट्टा, गरम, भारी, दस्तावर और वातशामक है । रा०नि०व० ११ । एलान्दम् - [अ०] दम्मुल् अवेन । हीरादोखी । खूनखराबा । 1 एलापत्र - संज्ञा पु ं० [सं० की ० ] एक प्रकार का साँप । एलपर्णी-संज्ञा स्त्री० सं० स्त्री० ] प्रकार का पेड़ । काँटा श्रमरूली । ( २ ) रास्ता | रायसन । भा० पू० १ भ० । एलाफल - संज्ञा पुं० [सं० की० ] नि० ० ४ । ( १ ) एक एलानि - बं० 1 एलबालुक । रा० संज्ञा पु ं० [सं० पु० ] मधूक वृक्ष । महुए का पेड़ | वै० निघ० । एलाबा (वा) लुक-संज्ञा पु ं० [सं० क्ली० ] (१) एलवालुक | रा० नि० ० ४ । ( २ ) कुष्ठ गन्धि फल के समान एक फल । सु० सू० ३७ श्र० । एलाबू - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] अलाबू । कह । श्राल । एलाबू-वीज-संज्ञा पु ं० [सं० एलाबू+वीज ] क का बीया । तुख्म कढ । एलामिच्चम् प म -[ ता०] बिजौरा नीबू | एलाम् - [ मल० ] इलायची । एला । लावी । एलायुग्म -संज्ञा पुं० [सं० की ० ] दोनों प्रकार की इलायची | छोटी और बड़ी इलायची । "एला
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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