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________________ करे २२५२ करेगा वजाइनुल अदविया के अनुसार बोए हुए की करेयवदी-[ कना०] काला शीशम । काला सीसो। की अपेक्षा स्वयंभू पौधे में विष निवारण की शक्ति | कृष्ण शिंशप । अधिक होती है । संखिया और अफीम का विष करेर-पं०] अखरेरी । पाखी। उतारने के लिये इसका शुद्ध रस पिलाकर वमन [देश॰] करीर । करील। कराते हैं। इसके पत्तोंको पकाकर रोटीके साथखाने करेरा-म० ] सिहोर । रूसा । से अफीम का नशा उतरता है । इसके सूखे हुये | | करेरुआ-संज्ञा पुं॰ [देश॰]एक कँटीली बेल जिसके उसारे के चूर्ण को फंकी देने से दस्त आते हैं। पत्ते नीबू की पत्ती की प्राकृति के, पर उनसे लंबे इसके पत्ते और टहनियों के टुकड़े सुखाकर रख होते हैं और उनकी तरह कड़े नहीं; अपितु कोमल छोड़ते हैं और खटाई के साथ उबालकर चावल होते हैं । पत्र एकांतर एवं सत होते हैं और के साथ खाते हैं । इन्हें रात में उबालकर रख देवें उन पर तथा कोमल शाखाओं एवं पुप कलिकाओं और प्रातः काल रोटी खाने से पूर्व स्त्री सम्बन्धी पर एक प्रकार की भूरे रंग की धूल सी चीज जमी वातनाड़ी विषयक सामान्य रोग जनित दुर्बलता दूर होती है और स्तनों में दुग्ध को वृद्धि होती है । होती है, जो स्पर्श मात्र से हाथों में लग जाती है। इसकी कोमल शाखायें, पत्र और मूल पकाकर रोटी प्रत्येक पत्र वृत के मूल से लगे व्याघ्रनखाकृति के और चावल के साथ खाये जाते हैं। ख० अ०। दृढ़ युग्म कंटक होते हैं । कदाचित् इसी कारण कोई कोई आधुनिक ग्रंथकार इसे "व्याघ्रनखी" इसकी पत्ती पीस-पकाकर फोड़े पर बाँधने से नाम से अभिहित करते हैं। वह पक जाता है। वसंत ऋतु (फागुन और चैत-बैसाख ) में लड़के डंठलों को लेकर बाजा बजाते हैं। इस इसमें हलके करौंदिया (बैंगनी) रंग के सवृंत घास का लोग साग बनाकर खाते हैं । करमू अफीम तितली स्वरूप एकांतिक पुष्प प्रत्येक पत्रका में का विष उतारने की दवा है । जितनी अफीम खाई लगते हैं। इनमें लगभग ७० की संख्या में १-२ गई हो, उतना करेमू का रस पिला देने से विष अंगुल लम्बी पतलो पुकेसर और उतनी ही लम्बी शांत हो जाता है। (हिं० श० सा०) मध्य में एक स्त्री-केसर होती है जिनके सिरे पर अासाम में इसे सुखाकर उन स्त्रियों को देने में क्रमशः परागकोष और चिन्ह (Stigma) इसका उपयोग करते हैं जो अशक्त और स्नायु जाल स्थित होते हैं। कटोरी और पखड़ी में ४-४ पत्र संबंधी कमजोरी की शिकार रहती हैं। होते हैं। पुषदल और. पु-स्त्री केसर पहले सफेद बरमा में इसका रस अफीम और संखिया के फिर करौंदिया हो जाते हैं। फूलों के झड़ने पर विष को नष्ट करने वाली तथा वामक औषधि की इसमें कागजी नीबू के आकार के कुछ लंबे फल तरह उपयोग में लाते हैं। कम्बोडिया में इसकी लगते हैं, जिनमें बीज ही बीज भरे रहते हैं । ये कलियाँ ज्वर निवारक समझी जाती हैं । ज्वरजनित खाने में बहुत कड़वे होते हैं । यहाँ तक कि इसके सनिपात और ज्वरजनित मूर्छा में इसकी डंडी पत्तों से भी कड़वी गंध निकलती है। इसकी जड़ और पत्ते उपयोगी माने जाते हैं। १॥ इञ्च से ३ इंच तक मोटी होती है। इसका बैट के मतानुसार इसका कोमल कलियों और केन्द्र भाग सख़्त काष्ठीय होता है, जिसके ऊपर पतों का साग बनाया जाता है । यह साग गर्मी एक मोटो छाल परिवेष्टित होती है,जिस में से मूली तथा खून के दस्तों को बंद करता है, वायु की की तरह को एक विशेष प्रकार की गंध आती है। वृद्धि करता और पौष्टिक है। संखिये और अफीम स्वाद में यह चरपरी होती है। का विष नष्ट करने के लिये इसके पत्तों का रस पर्या-डोडिका, विषमुष्टिः, डोडी,सुमुष्टिका दिया जाता है, जो रेचक और वामक है। (भा० पू० खं० शा० २०६), डोण्डिका, व्याघ्र चोपड़ा के मतानुसार यह विरेचक वमन कारक नखी, व्याघ्रघटी-सं० । कररुमा -हिं० । गिटारेन और संखिये के विष को नष्ट करने वाला है। । मार०। कैपेरिसहारिडा Capparis Horrida,
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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