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________________ I कर सूचनः गुणधर्म- - यह बूटो रजः प्रवर्तक हैं, मरोड़ का निवारण करती और यकृत की पीड़ा विशेष ( दर्द जिगर इम्तिलाई ) में उपकारी है । साढ़े तीन माशे की मात्रा में इसकी जड़ और साढ़े तीन माशे गाजर के बीज प्रति दिन भक्षण करने से कामोद्दीपन होता है। यह उत्तम दोषों को उत्पन्न करती श्रामाशय से तरल श्लेष्मा का उत्सर्ग तथा वक्ष एवं पार्श्वशूल को लाभ पहुँचाती और बिच्छू के ज़हर को नष्ट करती है । इसकी जड़ पकाकर श्रीर शर्करा मिलाकर पीने से फुंसी तथा सूजन का नारा होता है उ ओर विकृत दोषों का शरीर से उत्सर्ग होता है । इसकी जड़ का मुरब्बा श्राँतों में सुगंध उत्पन्न करता, शरीर दुर्गंध दूर करता और कामोद्दीपन करता है । यह रसायन है। इससे वायु का नाश होता है। पांव की पिंडली की उन फुंसियों पर जिनसे लगातार रतूत जारी हो। इसे जौ के आटे और कानो की पत्ती के रस के साथ लगाने से बड़ा उपकार होता है । श्लीपद रोग के प्रारंभ में भी इसके उपयोग से बहुत कल्याण होता है । वें प्रकार के करस्नः को बैतुलमुक़द्दस की और पार्श्वशूल कटिशूल और सिर के मवाद के लिये लाभकारी जानते हैं सातवें प्रकार की जड़ अत्यंत कामोद्दीपक है । पहला प्रकार गुण धर्म में आठवें के समान है। जियाउद्दीन इब्नुल्बेतार ने मनो में लिखा है, "करस्नः तारल्यजनक हैं एवं शीघ्र श्रामाशय से हज़म होकर नीचे उतर जाता है । यह उत्कृष्ट दोष उत्पन्न करता है । श्रामाशय से तरल कफ को विलीन कर श्राँतों की ओर पहुँचा देता है । इसके उक्त गुण उस दशा में होते हैं । जब इसके पत्तों को पकाकर खायँ ।” ( ख़० अ० ) करस्न: - [ फ्रा० ] मटर | कलाय । करह -संज्ञा पुं० [सं० करभ ] ऊँट । करभ । संज्ञा पुं० [सं० कलिः ] फूल की कली । [ फ्रा० ] मक्खन | मसका । २११५ क़रह - [ [अ०] कलौंजी । शोनीज़ | क़रहटी - संज्ञा स्त्री० [सं० ? ] फूट । एर्वारु । करतन - [ फ्रा० ] मकड़ी | करहाटक करहट्टी - [ कना० ] बन कपासी । भारद्वाजी । करहनी - संज्ञा पु ं० [देश० ] एक प्रकार का धान जो न में तैयार होता है। करहर-संज्ञा पु ं० [देश० ] मैनफल | करहरी, करहली - संज्ञा स्त्री० [देश० ] हिंदुस्तान में होनेवाला एक प्रकार का फल जो ग्रीष्म ऋतु में होता है । यह काले और अत्यन्त श्वेतवर्ण का एवं दीर्घाकार होता है और ऊपर से जमालगोटे की तरह मसृण किंतु उससे किंचित् छोटा होता है । इसके भीतर से सफ़ेद रंग की मींगी निकलती है। जिसे नमक और कालीमिर्च के साथ भूनकर खाने हैं । यह अत्यंत सुस्वादु होती है । हकीम गुलाम इमाम ने अपनी किताब मुफ़रिदास में फ्रल्ल को करहरी ही ख़्याल किया है । गुण, धर्म तथा प्रयोग - हकीम शरीफ खाँ के अनुसार यह कामोद्दीपक है और शुक्र को सांद्र करती है । यह पेट में कब्ज़ पैदा करती है परन्तु उदर शूल का निवारण करती है । दे० "सा० श०" | करहा- संज्ञा पुं० [सं० पु० करहान् ] मैनफल का पेड़ | संज्ञा पु ं० [देश० ] सफ़ेद सिरिस का पेड़ | करहाई -संज्ञा स्त्री० [देश० ] एक प्रकार की बेल । क़रहा - [अ०] ] आँवल तरवर । उशरक्क़ । करहाट, करहाटक -संज्ञा पुं० [सं० पु० ] ( १ ) मैनफल का पेड़ । मदन वृक्ष । प० मु० रा० नि० ०८ | योगरत्न • उ० ख० केशर पाक । सु० कल्प० ७ ० । (२) एक प्रकार का पेड़ । महापिंडीतरु । बड़ा खजूर | रा० नि० व० ६ । सु० चि० १८ श्र० । (३ कमल की जड़ । भसीड़। मुरार । मे० । ( ४ अकरकरा । ( ५ ) श्वेत मदन | वै० निघ० : ( ६ ) कमल का छत्ता । कमल की छतरी । कमल के फूल के भीतर की छतरी जो पहले पीली होती है, फिर बढ़ने पर हरी होजाती है । ( ७ ) पिंडार | भिलौर । करहाटक -संज्ञा पु ं० [सं० की ० ] सोना । स्वर्ण | श्रम० ।
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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