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________________ क़र, सूनः क़र. सूचनः - [ श्रु० ] एक उद्भिज जो आठ प्रकार का होता है । ( १ ) इसका तना गिरहदार होता है। और इसके प्रत्येक गिरह पर काँटे होते हैं। इसकी पत्तियाँ काहू की पत्तियों से चौड़ी, बड़ी, खुरदरी तथा नीले रंग की और जमीन से मिली हुई होती हैं। शाखाएँ अनेक और तकले की तरह बारीक होती हैं । फूल श्वेत वर्ण के होते हैं। जड़ लंबी, मोटी और गाजर की तरह मीठी एवं किंचित् तीव्र भी होती है । ( २ ) इसकी पत्तियाँ भी पहिले की भाँति, किंतु खुरदरी नहीं होती। इसमें बहुता यत से मृदु कंटक होते हैं । इसका तना एक हाथ ऊँचा होता है और इसकी श्राधी ऊँचाई से शाखाएँ फूटती हैं । पत्ते प्रथमतः श्रत्यंत्र हरे तदुप रांत सफेद होजाते हैं। इसकी जड़ लंबी और सीधी होती है। यह पहिली प्रबलतर होता है । इसमें गोखरू की सो सुगंधि होती है। यह जाति फ़रीका और अरब में बहुत है । अफ़रीका निवासी मक्खियों को भगाने के लिये इसे मकानों के दरबाओं पर लटकाते हैं । २२०४ (३) इसके पत्ते गोल, जड़ लंबी और अधिक मोटी नहीं, जड़, तना और फूल श्वेत होते हैं । ( ४ ) इसमें एक ही तना होता श्रार यह श्रशाखी होता है। तना लग भग एक हाथ वा इससे भी अधिक दीर्घ होता है। तने में गिरहें होतीं और वह मृदुकं होती हैं । काँटे किंचित् नोल वर्ण के होते हैं । पत्ते जमीन से मिले हुये, चौड़े और अशरफ़ की तरह गोल होते हैं। जड़ फ़ावानिया की आकृति की एवं बाहर से काली और भीतर से सफेद होती है । कोई कोई इसका थाकार बहमन श्वेत का सा बतलाते हैं और उसमें बहमन की मिलावट करते हैं तथा इस प्रकार एक को दूसरी की जगह बेंचते हैं । किंतु बहमन के पत्ते उसके पत्तों से बहुत चोड़े होते हैं । ( ५ ) यह श्वेत वर्ण का होता हैं। इसलिये इसे "क़रस् अर्नः सफ़ेद" कहते हैं । इसमें पत्ते बहुतायत से और श्वेताभ होते हैं । काँटे तीव्र और कोड खुरदरा होता है । ( ६ ) इसके पत्र उन्नतोदर होते हैं और इसमें केवल एक ही तना होता है । इसको "क़रस्नः जली" कहते हैं । क़र सूचना ( ७ ) इसकी सफेद जाति ही के क़बील से है । इसके वृक्ष नदी कूल पर उत्पन्न होते हैं । पत्ते बहुत चौड़े और श्रव्यंत सफेद होते हैं । जड़ बहुत कमजोर और नाजुक होती है। इसका स्वाद अन्य सभी भेदों से अधिक मधुर होता है, परंतु इस चाबने से किंचित् तीव्रता का भी अनुभव होता है । (८) तना कज़मे को उँगली के बराबर मोटा और डेढ़ वित्ता ऊँचा होता है। शाखानों का रंग श्वेताभ और उन पर सिर गोल तथा उन गोल सिरों पर छः छः बारीक और सलाई की तरह लंबे काँटे होते हैं। जड़ भी कलमें की उँगली के बराबर मोटी और लंबी होती है । इसका स्वाद गाजर के समान होता है । "मुतलक क (सूचन: " शब्द से इसी जाति के पौधे का बोध होता है । बगदाद में यह बहुतायत से होता है । इसको “क्र. सूचनः मुसहस" और ' शशकाक" कहते हैं । नोट- सभी जाति के क़रस्चनः को जड़ें सुगंधित होती हैं। इनमें किसी की जड़ का स्वाद किंचित् तोच्णता और कड़वाहट लिये मधुर और किसी का सर्वथा मधुर होता है। यह बैतुल मुकte, अफ़रीका, अरब और फ़ारस में उत्पन्न होता है । वनस्पति शास्त्रज्ञ श्रबुल अब्बास किताव रहलः में लिखते हैं, "बैतुल मुकद्दस के प्रासपास पर्वती भूमि में मैंने एक प्रकार का सफ़ेद करस्नः देखा है जिसकी जड़ बड़ी और पत्ते काहू के पत्तों से छोटे और अत्यन्त कोमल थे | एक ही जड़ से बहुत सी शाखाएँ फूटी थीं । पत्तों के स्थान पर तकले की तरह गिरहदार और बारीक डंडियाँथीं । गिरहों के आसपास पत्ते और नोज के पुध भी थे, जिनके सिर पहलो क़िस्म से छोटे थे । जड़ का स्वाद मधुर था और उसमें किंचित् कड़वाहट भी थी ।" इसको जड़ हर प्रकार काम में आती है। इसे "शज्रए इब्राहीम" भी कहते हैं । प्रकृति - प्रथम कक्षा में उष्ण तथा रूक्ष । मात्रा - जड़ ४ ॥ माशे । हानिकर्त्ता- - उष्ण प्रकृति को । दपंधन - सर्द व तर वस्तुएँ
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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