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________________ करम्भक २२१० करल्लु करम्भक-संज्ञा पु० [सं० पु.] सफेद चिरचिटा। कुछ बड़ी और वहुत सुन्दर होती है । यह हिमारे श्वेत किणिही। लय में प्रायः सभी जगह पाई जाती है। संज्ञा पुं० [सं० की.] (१) दही मिला | कररुह-संज्ञा पुं॰ [सं• पु] (१) नख । नाखून हुभा सत्तू । हारा० । इसका अपर नाम 'ककसार' | रा०नि० व० १८ । (२) नखी नामक सुगंधित है। निजैरालिाभः प्रादात द्विजन्मेभ्यः कर- वस्तु । नख । रा०नि०व०१३। (३) एक: म्भकम्।" ( राजत० ५। १६)(२) अविरल प्रकार का धूप जिसमें अगर श्रादि पड़ते हैं। वै० पिष्ट यव । दरा हुश्रा दाना । निघ० २ भः । (४) उँगली । करम्भा-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] (१) शतावरी । करसहा-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] नख । नाखून । सतावर । (२) प्रियङ्गु । फूलप्रियङ्गु । रा०नि० कररेखा-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] हाथ की रेखा । ५० १२ । (३) इन्दीवरा। उतरन । के० दे० 'रेखाः सामुद्रिक ज्ञेयाः शुभाशुभानवदकाः" । नि०। (४) इन्दीवरी। रा. नि० व० १८। करम्भ-[पं. ] ज़न्द । शना (पं० लेदक)। करल-संज्ञा पुं॰ [सं० पु.] कैथ का पेड़ । कपित्थ करयनीली-[१] नीलीपत्र । वृक्ष । करयपाक-[ देश०] एक प्रकार का नीम जो कच्चे | करल वैकम्-[ मल० ] ईशरमूल । जरावंद हिंदी । पर हरा और पकने पर ललाई लिये नीला और करला-संज्ञा पु० दे० "कल्ला" | त्रिपुटा । काला होता है। सुरभिनिंब । कृष्णनिंब । | करलासना-[ देश. J वन बर्बटी । अरण्य मुद्ग । करयल-[द० ] करीर । करील ।। . ( Phaseolus adenanthus.) करयल का तेल-[१०] करीर का तेल । करली-संज्ञा स्त्री॰ [ देश०, गु० ] (१) छोटा करेला करयापाक-[ द० ] दे॰ “करयपाक"। (२) कुलीचा-भाजी । कराली-नु-भाजी । करयापात-द.] सुरभिनिंब । कढ़ी नीम । सज्ञा स्त्री॰ [सं० करील](१)कल्ला। कोमल पत्ता करयास-[6.] मांस । गोश्त । कनखा । (२) एक प्रकार का शाक जातीय करयून-[ ] कंतूरियून। सुप जो बर्षाऋतु में उत्पन्न होते हैं। पत्ते लम्बे करर-[१] करै । सफ़ेद जीरा। होते हैं । पत्तों के बीच में से एक बाल निकलती [पं०] डकरी । दैदल ( नेपा०)। है। इसमें सफेद फूल होता है। नीले रंग का फल संज्ञा पुं॰ [ देश०] (१) एक जहरीला लगता है। इसके पत्तों का शाक होता है। शा० कीड़ा जिसके शरीरमें बहुत सी गाँठे होतीहै । (२) नि. भू.। रंग के अनुसार घोड़े का एक भेद । (३) एक पो०-करलो, दीर्घपत्रा, मध्यदण्डा, प्रलप्रकार का जंगली कुसुम वा ब” का पौधा जो म्बिका -(शा०नि० भू०)-सं० । करली -हिं, उत्तर पश्चिम में पंजाब, पेशावर आदि सूखे कुलीची भाजी -गु० । करलीनी भाजी -मरा० । स्थानों में बहुत होता है । इसके बीज से निकाला फेलेञ्जिवम् व्युबरोज -ले०।। हुआ तेल पोली का तेल कहलाता है ।अफरीदियों गुण-करली शीतला स्वाद्वी वातला कफ का मोमजामा इसी तेल से बनाया जाता है। कृद्गुरुः । करली मधुरातिक्ता बातला सारका इसमेंफूल बहुत अधिकता से लगते हैं। इसकी मता । शानि० भू०। लकड़ी बहुत मुलायम होती है । हिं० श० सा०। करलीनी-भाजी-। कररी-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री. ) हाथी के दाँत की करली-नु-भाजी- गु० ] करली। जड़ । करिदंतमूल । हला। करलुरा-संज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार की काँटेदार संज्ञा पुं॰ [सं० कर्बुर] बन तुलसी । बबरी लता जिसमें सफेद और गुलाबी फूल लगते हैं। ममरी। दे० 'कररुया"। संज्ञा स्त्री० [सं० कुररी ] वटेर की जाति की करल्ली-[पं० ] लाल कचनार । रक काञ्चन । एक प्रकार की चिड़िया जो साधारण चिड़िया से । करल्लु-[ बम्ब० ] सफेद सिरस ।
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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