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________________ करमरी २२०॥ करमरी-संज्ञा स्त्री० [१] एक जंगली फल जो श्राकार | करमाला-संज्ञा पुं॰ [देश॰] अमलतास। में मकोय के बराबर और काले रंग का होता है। करमाली-संज्ञा पुं॰ [सं० पु.] सूरज । सूर्य । इसे नमक मिर्च से खाते हैं। यह खट्टा होता है। करमिली-[?] बालूबुखारा । प्रकृति-शीतल । करमी-[विहा. ] नाली । नारी। हानिकर्ता-मलावष्टम्भकारक एवं भारी है। करमीतून-[यू० ] जीरा । दर्पघ्न-नमक मिर्च । करमुक्त-संज्ञा पुं॰ [सं० क्री०] एक अस्त्र । बरछा । गुण-धर्म तथा प्रयोग-यह शुक्र सांद्रकर | करमूल-संज्ञा पुं॰ [सं० की.] मणिबन्ध । कलायी। शिश्नप्रहर्षकारी एवं कामोद्दीपन है। यह संको रा०नि० व० १८ । चक है। उक्लेश एवं वमन का नाश करती है करमली-संज्ञा पु[ देश.1 एक पहाड़ी पेड़ जो और पिपासा शामक है । म मु०। गढ़वाल और कुमायूँ में बहुत होता है। करमई-संज्ञा पुं० [सं० पु.] (1) Fslacour करमृतक-[सं०१ ] बाँझ खेखसा । tia cataphracta पानी आँवला । पानी करमेवा-संज्ञा पु० [सं० कर+हिं० मेवा ] एक आमलक वृक्ष ।। अटी. सा०। (२) करौंदा । प्रकार का साग। रा०नि०व०१०। वै० निघ० । राज० । भा०। करमैल-संज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार का तोता च० सू० ४ ०। जो साधारण तोते से कुछ बड़ा होता है। इसके करमईक-संज्ञा पुं॰ [सं० पु.] (1) करौंदा । परों पर लाल दाग़ होते हैं। करमई वृक्ष । (२) एक प्रकार की लता। (३) करमोद-संज्ञा पुं॰ [सं० कर+मोद ] एक प्रकार का कराम्ल । आँवला । अगहनी धान । करमईका-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] दे० 'करमईक । करम्कंदु-[मरा० ] सोनापाठा । अरलू । श्योनाक । करमहन-संज्ञा पुं० [सं० पुं०] करमचा का पेड़। करम्चा-[बं०] कंजा । करंज। करौंदा। करम्ब-संज्ञा पुं.दे. "करंव"। करमर्दिका-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] पहाड़ी दाख की | करम्दा-संज्ञा पु० दे० "करौंदा"। तरह का एक फल जो पर्वती दाख के समान | करम्बी-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] कलमी शाक। गुणवाली है। करोंदी । यथा-"द्राक्षा पर्वतजा कलम्बी। याहक तादृशी करमदिका" |-भा० पू० १ ० | करम्बु-[ मल• ] Gussiaca suffruticosa अाम्रादिब०। बनलौंग। करमर्दी-संज्ञा स्त्री० [सं० पु०, स्त्री.] (१) कंजा। [ता०] उख । गन्ना । ईख । ___ करंजवृक्ष । (२) करौंदा । करौंदी । रत्ना० । करम्बेल-[ बम्ब०, मरा० ] भव्य । चालता । करमल्लिका-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] चमेली। ( Dillenia Indica ) करमल-[पं०] हरमल । इसपंद । करम्भ-संज्ञा पुं॰ [सं० पु.] (1) दही मिला संज्ञा पुं॰ [ देश.] कमरख । हुश्रा सत्तू । दघिसा । प. मु.। (२) वाग्भट करमा-संज्ञा पुदे० "कौमा"। के अनुसार वीरतरादिगण की एक ओषधि । उत्तम [सिरि० ] हड्डी। अरणी । वा० सू०.१५ अ वीरतरादिः अरुणः। करमाई-संज्ञा स्त्री० दे० "करमई"। संज्ञा पुं॰ [सं० की०] (१) प्रियंगुफल ।. [सिरि० ] शुकाई। (२) स्थावर विषों में से एक प्रकार का फलविष संज्ञा स्त्री० अम्ली। अम्लोसा । दे. "फलविष" । (३) एक प्रकार की गोंद जो करमार-[?] बाँस । जहरीली होती है । यह स्थावर विषों के अंतर्गत है करमाल-संज्ञा पुं० [सं० पु.] (1) धूआँ । (४) एक प्रकार का फूल | सु० कल्प० २ ०। धूम । खतमाल । हे० च० । (२) मेघ । बादल। (५) शतमूली । शतावर। ५७ फा०
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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