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________________ करनाले शामी २३०१ करना फिरनफले शामी-[१०] एक छोटे पौधे का नाम है | निवारण होता है । इसके पीने से गर्भपात होता जिसके पत्ते वनशा के पत्तों की तरह और फल है। इसको मदिरा के साथ पीने से कीड़े-मकोड़ों सफ़ेद एवं सुगंधित होता है। का विष नष्ट होता है। इसके लेप से अंगों की करनफान-[सिरि० ] करोया। बादी मिटती है । इसकी जड़ को कुचल कर । करनकार-[2 ] करोया। तेल में पकाकर मलने से धनुस्तम्भ (कुज़ाज़) तथा करनी-संज्ञा स्त्री० एक प्रकार का पुष्पवृक्ष जो कोंकण ज्वर के दौरे में लाभ होता है। (ख० अ०) में अधिकतया होता है। यह तिक्र, तीक्ष्ण एवं करनाल-[१०] लौंग । उष्ण होती है और कफ, पित्त, उदरीयाध्मान तथा । पेट के कीड़ों का नाश करती है। परीक्षित है। करनब-[ मुश्र० ] दे० "कर्नब"। करनबाद-[?] करोया। ता. श०। करना-संज्ञा पुं० [सं० कर्ण ] एक पौधा जिसके पत्ते करन्कुल शामी-[१०] एक पौधा जिसका तना केवड़े के पत्ते की तरह लंबे-लंबे पर बिना काँटे के प्रायः एक गज ऊँचा होता है। यह ऊपर से होते हैं। इसमें सफ़ेद-सफ़ेद फूल लगते हैं जो बड़े खुरदरा होता है । इसमें अनेक शाखाएँ होती हैं । खुशबूदार होते हैं। इसके पत्ते इरक्रपेचा और वनशे के पत्तों की ___ संज्ञा पुं० [सं० करुण ] बिजौरे की तरह का तरह होते हैं। फूल सफेदी लिये नीलवर्ण का एक बड़ा खट्टा नीबू जो कुछ लंबोतरा (वा गोल) होता है, जिसमें से लौंग की गंध आती है। होता है । इसे पहाड़ी नीबू भी कहते हैं। हिंदु. इस लिये इसे गुले करन्फल (लौंग का फूल) स्तान में बहुत सी जगहों में इसका पेड़ लगाया कहते हैं। इसकी जड़ खर्बक स्याह की तरह होती है, जिसमें से दालचीनी की बू आती है। प्रायः जाता है । साहब अंजुमन पाराये नासिरी के अनु सार यह ज़ंदरान और फारस में होता है। विशेष तर जगहों में जंगली तुलसी के साथ उत्पन्न होता तया पारस्य के ग्रामों में यह बहुत होता है । कला है । यह श्याम देश में बहुतायत से होता है । प्रारम्भ में हरा और कड़वाहट लिए खट्टा होता करन्फलयः (अफरीका)। ज़हरः । है। जबतक यह पीला नहीं होता, इसकी उक्न प्रकृति-द्वितीय कक्षा में गर्म एवं रूक्ष । कड़वाहट बनी रहती है। परन्तु पककर जब यह हानिकर्ता-उष्ण प्रकृति को। कुछ-कुछ रनवर्ण का होजाता है, तब इसमें मिठास दर्पघ्न-बनफ्शा। आजाती है । इसकी पत्ती कागज़ी नीबू की पत्ती से मात्रा-३॥ मा०। चौड़ी और बिजौरे की पत्ती से छोटी होती है। गुण-धर्म तथा प्रयोग-इसको सुगंध द्रव्यों इसके बीज भी बिजौरे के बीज से छोटे होते हैं। में मिलाते हैं। इसके पीने से मृगी में लाभ होता उन देशों में इसके पेड़ अधिकता से होते हैं जहां है। आँख पर इसके लेप करने से वातज और गरमी बहुत पड़ती है । इसके फूल में चार पंखकफज (रतूबी) सूजन उतर जाती है। प्रारम्भ ड़ियाँ होती हैं । इन फूलों से अर्क बाहर खींचते में चक्षुगोलकगत नाडीव्रण को अतीव गुणकारी है। हैं। इसके फल खाग जाते हैं। इसके रस से इसके लगाने से स्तनजात शोथ भी विलीन होता | शर्बत पकाते हैं। किसी-किसी ने लिखा है कि है और जमा हुपा दूध बिखर जाता है। इसका | इसका फल बहुत बड़ा होता है और तौलने पर फूल सू घने से प्रतिश्याय का निवारण होता है। कभी-कभी पाँच से दश सेर तक होता है। यह इसको कथित कर पीने से श्वासकृच्छ ता, दमा, देखने में गोलाकार होता है। इसका छिलका तरखाँसी और मूत्रावरोध नष्ट होते हैं। इसके चिकना और पीला देख पड़ता है। गूदा सफ़ेद काढ़े में श्राबज़न करने से स्त्री का रुका हुआ वा गुलावी होता है । यह वृक्ष सदा फला करता मासिक स्राव जारी हो जाता है। इसकी जड़ को है। बम्बई में जो करुण दिसम्बर या जनवरी के कथित कर पीने से रजोरोधजनित पीड़ा का | महीने में आता है, वह सबसे अच्छा कहा जाता ५६ फा.
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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