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________________ एरण्डादि गुटी पीपर, हींग. विजौरा नीबू, सेंधानमक- इन्हें समानभाग लेकर विधिपूर्वक क्वाथ बनाकर पीने से धनुर्वात का नाश होता है । यो० २० वात व्या० चि० । १७७७ (३) एरण्ड, अडूसा, गोखरू, गिलोय, खिरेटी और ईख की जड़ सबको समानभाग लेकर क्वाथ बनाकर पीने से पुरातन जानुओं तक फैला हुआ स्फुटित एवं ऊपर को चलनेवाला वात-रक्क नष्ट होता है । भा० वात २० चि० । ( ४ ) एरण्डमूल, गिलोय, मजीठ, रक्तचन्दन, देवदारु, पद्मकाष्ठ प्रत्येक समान भाग । मात्रा-१ से २ तो० तक । श्रष्टगुण जल में क्वाथकर पीने से गर्भिणी स्त्रियों का ज्वर नष्ट होता है । भैष० स्त्री-रो० चि० । एरण्डादि-गुटी–संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] एरडबीज, सोंठ और मिश्री समानभाग लेकर यथाविधि गोलियाँ बनाएँ । गुण—इसे सेवन करने से आमवात का शीघ्र नाश होता है । वृ० नि० २० श्रामवा० चि० । एरण्डादि तैल-संज्ञा पुं० [सं० की ० एक तैलो षध । योग तथा निर्माण-विधि - एरण्ड की जड़, सहिजन की छाल, वरुना और मूली- इनका स्वरस, मुलेठी और क्षीरकाकोली २-२ तोला लेकर सिल पर पानी के साथ पीसें । पुनः दो सेर दूध और १ पाव तिल तैल मिलाकर यथा-विधि पाक करें 1. गुण — इसे नस्य, मालिश और कर्णपूरण के काम में लेने से कर्णनाद, बहरापन और कर्ण शूल नाश होता है । रम् कैम्पे एरण्डाद्य-निरूह-संज्ञा पुं० [सं० वी० ] निरूह विशेष । दे० “रेंड” । एरण्डनु - झाड - [ गु० ] एरण्ड वृत्त । रेंड का पेड़ । एरण्डनु तेल - [ गु० ] रेंडी का तेल । एरण्ड तैल । एरण्डी-संज्ञा स्त्री० [सं० एरण्ड ] ( १ ) रैंड का बीज । रेंडी । ( २ ) एक झाड़ी जो सुलेमान पर्वत और पश्चिमी हिमालय के ऊपर ६००० फुट तक की ऊँचाई पर होती है । इसकी छाल, पत्ती और लकड़ियाँ चमड़ा सिझाने के काम में आती है । इसे तुरंगा, आमी, चनिश्रात वा दगड़ी भी कहते 1 1 | संज्ञा स्त्री० [ मरा० ] रेंड । एरण्ड | एरण्डी-च-झाड-[ मरा० ] रेंड। एरंड वृक्ष । एरण्डी च तेल - [ मरा०] रैंडी का तेल । एरण्डतैल | एरण्डी-च-बीज -[ मरा०"] रेंडी । एरण्ड-बीज । एरण्डीन - [ सं० एरण्ड + ईन ( प्रत्य० ) ] एरण्ड सत्व । एरण्डेल -[ मरा० ] रेंडी का तेल । एरण्डतैल । एरण्डो -[ गु०, सिंध ] रेंड़ | एरण्ड-वृक्ष । एरण्डोली - [ मरा० ] सफेद एरण्ड बीज । एरन्दु (डु )- [ सिं० ] बागभेरण्ड । कानन एरण्ड | मोगली | जाड़ा (उड़ि० ) । एरबदु- गहा - [ सिं०] पाँगरा । पलोता मदार | पारिभद्र | एरमुदपु - [ ते० ] रैंड । एरण्ड | एरम् -[ लेo arum.] श्ररुई । घुइयाँ । एरम्-आर्चड-[ श्रं॰ arum-arched.] बीस कचू । बीरबकी । एरम्-इजिप्शियन - [ ० arum-egyptian. ] अरवी । घुइयाँ । एरम्-इण्डिकम् - [ ले० arum-indicum. ] मानकन्द | माणक | कचू । एरण्डादि भस्म योग-संज्ञा पुं० [सं० पु०] शूल रोग में प्रयुक्त उक्त नाम का योग - एरण्डमूल, चोता शम्बूक ( घोंघा ), पुनर्नवा और गोखरु समान भाग लेकर हाँडी में बन्दकर भस्म करें । इसे उचित मात्रा में गरम जल के साथ पीने से शूलरोग का नाश होता है । यो० र० शूल चि० । एरण्डाद्य घृत-संज्ञा पु ं० [सं० क्री० ] धृत विशेष । एरम्-कैम्पेन्युलेटस - [ ले० arum-campanuदे० " रेंड़” । एरम - कर्वेटम् - [ ले० arum-curvatum. ] गूरिन । डर । किर्किचालू । किरकल । जंगुश - ( पं० ) । latus. ] जिमीकन्द । सूरन । श्रोल । १ का०
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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