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________________ एरण्डफला १७७६ एरण्डादि पुष्करमूल, गोखरू, कूठ, त्रिफला, देवदारु, काला एरण्डम्-[ गु० ] रेंडी का तेल । एरण्ड तैल । विधारा, लजालू (अवालुका) और शतावर, एरण्डशिफा-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] रेंड़ की जड़ । प्रत्येक का चूर्ण १-१ कर्ष मिलाकर विधिवत् पाक - एरण्डमूल । भा० वा० व्या०।कर रखलें। एरण्ड सप्त (द्वादश)क-संज्ञा पुं॰ [सं० पु. ] गुण-इसे यथोचित रोगानुकूल अनुपान के - शूल रोग में प्रयुक्त उक नाम का एक योग-एरंड साथ :चित मात्रा में सेवन करने से वातव्याधि, ___ की जड़, बेल की छाल, पमाड़ बीज, सिंहपुच्छी, शूल, सूजन, अण्वृद्धि रोग, उदर रोग, अफारा, जम्बीरमूल, पथरचटा और गोखरू २३-२३ रत्ती. वस्तियूल, गुल्म, श्रामवात,कटिशूल, ऊरुग्रह और यवहार, हींग, सेंधानमक एवं एरण्ड तैल १-१ माशा हनुस्तम्भ रोग का नाश होता है। यो० २० वात के साथ खाने से भयानक शूल का नाश होता है। व्या० चि०। एरण्ड-सप्तक-कषाय (काथ)-संज्ञा पुं० [सं० क्री.] वातव्याधि में प्रयुक्त उक्त नाम का एक एरण्ड-फला-संज्ञा स्त्री० [सं० बी० ] छोटी दन्ती का अायुर्वेदीय क्वाथ। पौधा । हूस्वदन्ती। योग-एरण्डमूल, विजौरे की जड़, गोखरू, एरण्डबीज-संज्ञा पुं॰ [सं० वी० ] रेड़ी। एरण्ड बड़ी कटेरी, छोटी कटेरी, पाषाणभेद और वेलफल । एरण्ड का बीया। गिरी इन्हें समानभाग लेकर क्वाथ बनाकर इसमें एरण्ड-भस्म-योग-संज्ञा पुं॰ [सं० पु.] एक प्रकार रंडी का तेल, हींग पमाड़ के बीज जवाखार और ___ का आयुर्वेदीय योग जो एरण्ड भस्म द्वारा प्रस्तुत उचित मात्रा में सेंधानमक मिलाकर पीने से ... होता है । जैसे-एरण्ड के मूल और पत्तों को स्तनपीड़ा, स्कंध, मेढ़, कटि और हृदय की पीड़ा ... लेकर बरतन में बन्द करके भस्म करें। इसे १-१ | दूर होती है । शा० सं० वातव्या० चि०। कर्ष की मात्रा से १ पल गोमूत्र के साथ सेवन एरण्ड-सफ़ेद-संज्ञा पु० [सं० एरण्ड+हिं० साद] करने से तिल्ली रोग का नारा होता है। वृ०नि० मोगली रेंड । बागबरैंडा । बाग भेरंड। - २० उदर रो० चि०। एरण्ड-स्वरस-संज्ञा पु० [सं० क्री.] रेंड का स्वएरण्डमूल-संज्ञा पुं० [सं० वी० ] रेड़ की जड़। रस प्राधा कर्ष, दूध में मिलाकर तीन दिन पर्यंत एरण्ड शिफा। जैसे-“एरण्डमूल सिद्धवा"। पीने से और लवणरहित घृत तथा दूध का च० द. विषमज्वर चि०। भोजन करने से कामला-रोग का शीघ्र नाश होता है। वृ०नि०र० कामला चि०। एरण्ड-मूलादि-क्वाथ-संज्ञा पुं० [सं० की० ] शूल | रोग में प्रयुक्त उन नाम का योग-दो पल एरण्ड एरण्डा-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.](१) बड़ी दन्ती । वृहद्दन्ती। मद० व०१। (२) पिप्पली । मूल को १६ पल पानी में पकाएँ, जब चतुर्थांश पीपल । श० च०। शेष रह जाय, तब छानकर इसमें यवक्षार उचित एरण्डा गाछ-[40] जंगली एररड का पौधा । मात्रा में डालकर पियें। इससे पार्श्वशूल, हृच्छूल और जंगली रेंड। कफज शूल का शीघ्र नाश होता है। वृ०नि० २० एरण्डादि-संज्ञा पु० [सं० पु.] आयुर्वेदीय श्रोषशूल चि०। धियों का एक वर्ग । इस वर्ग में निम्न श्रोषधियों एरण्डमूलादि-चूर्ण-पंज्ञा पुं० [सं० क्ली० ] उक्त नाम का समावेश होता है। का एक योग, जो शूल रोग में प्रयुक्र होता है । जैसे- - (१)रेंड की जड़, अनन्तमूल, किशमिश, एरण्डमूल, तुम्बुरु, विडनम , हुलहुल, हड़ और सिरस, गंधप्रसारिणी, माषपर्णी, मुद्गपर्णी, हींग-इन्हें समान भाग लेकर बारीक चूर्ण बना | विदारीकंद तथा केतकी की जड़ १८-१८ रत्ती । जल के साथ उचित परिमाण में सेवन करने से गुण-वात-पित्त-शामक । रसचन्द्रिका । शूल और गुल्म रोग का नाश होता है । मात्रा- (२) एरण्डमूल, बेल की जड़ की छाल, १ से ६ मा० तक । वृ० नि० र० शूल चि०। छोटी कटेरी, बड़ी कटेरी, कालानमक, सोंठ, मिर्च,
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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