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________________ कककर पुनः अक्षत योनि हो । यह एक रहस्य है । जंगली पर सुखाकर, शहद और घी में मिलाकर चाटने से कबूतर की हड्डी जलाकर दो चना प्रमाण पान के अत्यन्त उग्र यच्मा भी नाश हो जाता है। पत्ते में रखकर खाने से श्वास रोग आराम होता | कबूतर का झाड़-द०] पालक जूही। है। सदैव कपोतमांस भक्षण करने से श्वित्र रोग कबूतर का फूल-संज्ञा पुं॰ [देश॰] एक फूल । उत्पन्न हो जाता है। इसी प्रकार गरम मसाले कबूतर की जड़-संज्ञा स्त्री० एक जड़ी। के साथ इसका कबाब अधिक दिन तक खाने से कबूतरझाड़-संज्ञा पु० [हिं० कबूतरxझाड़ ] पित्तरक्त प्रकोप एवं कुष्ठ हो जाता है। इससे शीघ्र पापड़े की तरह की एक झाड़ी जो दक्षिण पश्चिम सड़नेवाला विकृत शोणित उत्पन्न होता है, विशे भारत और सिंहल प्रभृति स्थानों में उत्पना षतः पालतू के मांस का ऐसा ही प्रभाव होता है। होती है। शीतल प्रकृतिवालों को बहुत गुणकारी है । कबूतर कबूतरी-संज्ञा स्त्री० [फा० कबूतर ] कबूतरको मादा। का वह बच्चा जो उड़ने के योग्य हो, उसका मांस कपोतिका । शीघ्रपाकी होता है; क्यों कि उसके उड़ने से कबूद-वि० [फा०] [वि. कबूदी] नीला । आसमानी । फालतू द्रव (रतूबत फुज़लिया) नष्ट हो जाते हैं। कासनी । कबूदी। ऐसे बच्चे से बना दोष उस बच्चे के गोश्त की संज्ञा पुं०(१) बंसलोचन का एक भेद जिसे अपेक्षा श्रेष्ठ होता है जिसके पूरे पर और बाल 'नीलकंठी' भी कहते हैं। नीला बंसलोचन । आदि न हो। क्योंकि उसमें अनात्मीकृत वा (२) एक प्रकार का पक्षी । शनीन । बगुला । अप्राकृतिक द्रवांश (रतूबत फुजिलया ) अत्यधिक होता है । कबूतर के बच्चे का पेट चीरकर सर्प और (३) Weeping-willaw वेतस भेद । इं०हैं. गा०। वृश्चिक दंशस्थल पर बाँध देने से बहुत उपकार होता है। बच्चे का मांस खाने से कंठक्षत (खुनाक) | कबूद:-[फा०] बेद का एक भेद । स्याह बेद वा बेद मिश्क । हो जाता है। किंतु शीतल तरकारी या सिरका कबूदर-[फा०] बूतीमार वा एक प्रकार का कीड़ा प्रभृति डालकर रसादार बनाकर खायें । वह बच्चा जो पानी में मछली खाता है। जिसे अच्छी तरह पर निकल कर उड़ने लगा हो, अपेक्षाकृत उत्तम होता है। इससे गाढ़ा और क(कु)बूदान-[१०] कलौंजी । शोनीज़ । पिच्छिल (मतीन) रक्त और रतूबत उत्पन्न होती कबूदान:-[ फा०] विजया बीज । भाँग का बीया । है। शैत्यप्रधान प्रकृतिवाले को या ऐसे रोगी को शहदानज। जो शीतल रोगों के कारण क्षीण हो गया हो कबूब-[१०] भपा कबूब-[अ०] भपारे की दवा। वह ओषधि जिससे तथा उसके शरीर में रक्ताल्पता हो, इसका सेवन भपारा ली जाए। गुणकारी है। परन्तु इससे मलोत्पत्ति अधिक कबूबुल अर्स-[१०] अभ्रक । अबरख । होती है तथा यह शीघ्र सड़ जाता है। कबूतर के बूर-अ.] जल्दी फलनेवाले छोहाड़े का पेड़। बच्चे को तिलतैल में बिना नमक और पानी के कबूस-[१०] बारीक पिसी हुई सूखी दवा जो जनम पकाकर खाने से शीघ्र वृक्क एवं वस्तिस्थ अश्मरी पर छिड़की जाए। धूड़ा। टूट कर निःसृत हो जाती है। कबूली-संज्ञा स्त्री० [फा० ] चने की दाल की वैद्यों के अनुसार कपोत मांस शीतल. गरु खिचड़ी। स्निग्ध, रक्तपित्त नाशक और वाजीकरण है तथा कबूह-[?] यतू का एक भेद । दे० "यतू"। ज्यातिवर्द्धक, वायु एवं कफनाशक है। इसके सेवन कबेंग-[ बर०] शिङ्गर । से मज्जा की वृद्धि होती है। (ख० अ०) कबअदिया, कबअदियून-[ सिरि० ] शाहतरा । - कबूतर की बीट शालि चावलों के साथ पीने से पित्तपापड़ा। गर्भस्राव या गर्भपात के उपद्रव दूर हो जाते हैं। कबक-[फा०] चकोर। । परेवा पक्षी के मांस को धूपमें नियत समय कककर-फ्रा.] तीतर ।
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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