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________________ एमाइलाइ क्लोराइडम् १७७२ एमादियून विवात औषधजन्य विषाक्रता के अज्ञात होने पर देने से कुछ लाभ नहीं होता, यह औषध हितकर उसके प्रतिविध स्वरूप से भी इसका उपयोग प्रमाणित हुई है। किया जाता है। नोट-इस औषध के सेवनोपरांत कोई हानिएमाइलाइ-क्लोराइडम्-[ले. amyli-chlorid. का उपसर्ग नहीं प्रकाशित होते । जहाँ दोघं काल __um ] दे॰ “एमाइलाइ प्रायोडिसेटम्"। ... पर्यन्त निद्राजनक औषध का व्यवहार करना हो, एमाइलाइ-ब्रोमाइडम्-[ ले० amyli-Bromid- वहाँ पर इसका उपयोग श्रेयस्कर होता है। um ] दे॰ “एमाइलाइ-आयोडिसेटम्"। पत्रीलेखन विषयक आदेश-इसको जल वा एमाइलीन-क्लोरल-[अं॰ amylene-chloral] मद्यसार (६०%) में घोलकर देना चाहिये। यह एक चपरा तैलीय द्रव है, जो क्लोरल पर इसे कैप्शूरज में भी देते हैं। अस्तु, इसके १० एमाइलोन हाइड्रेट की क्रिया द्वारा प्राप्त होता है । बूद वाले कैपशूल्ज बने बनाये बिकते हैं और इसे "डामियोल" (darmiol ) भी करते हैं। कभी-कभी वस्ति (इंजेकशन) द्वारा भी इसका यह भी निद्रा उत्पन्न करती है। उपयोग करते हैं । इसको त्वगीय पिचकारी द्वारा __ मात्रा-५ से १० मिनिम ( बंद)=(.३ से | प्रयोग नहीं करना चाहिये । क्योंकि इससे वहाँ पर घन शतांशमीटर)। वेदना होने लगती है। नोट-इसका प्रायः ५० प्रतिशत का घोल एमाइलो डेक्स्पन-[अं० amylo-dextrin.] विक्रय होता है, पर इसके के गूल (प्रत्येक कैप- एक विशेष प्रकार का स्कटिकीय चूर्ण । शूल में ७॥ बूंद यह प्रोषध होतो है ) प्रयोग में एमाइलोपसीन-[ अं० amylopsin. ] क्रोमलाना चाहिये। ग्रन्थि-स में पाए जानेवाले चार प्रकार के उपयोग-मालीखोलिया में यह श्रौषध उप- फोटों में से एक । इसका कार्य खाद्यगत श्वेतयोगी पाई गई है । यह असम्मत वा नाट श्राफिशल सार ( starch ) को रारा में परिणत ... (Not official ) है । करना है। एमाइलीन-हाइ इट-[अं० amylene-Hydr- | एमाइलोफॉर्म-[अं॰ amyloform. ] एक प्रकार ate] एक प्रकार का स्वच्छ वर्णरहित तैलीय का गन्धरहित अविलेय श्वेत चूर्ण जो उष्णता द्रव, जिसकी गंध विशेष प्रकार की उग्र तथा स्वाद । से परिवर्तित नहीं होता और जो श्वेतसार पर तीव्र होता है। फॉर्म एल्डीफाइड के क्रिया करने से प्रस्तुत पा०-टर्शियरी-एमाइलिक एलकोहल Ter- होता है। tiary Amylic Alcohol-vio एमादियून-[यू.] एक वनस्पति जो सजल स्थान में - असम्मत या नाट आपिशल उपजती है। इसमें बारह से अधिक पत्र नहीं ( Not official) होते । यह पुष्प और फल से रहित होती है । विलेयता-एक भाग यह पाठ भाग पानी इसकी जड़ पतली और काले रंग की होती है। और एल्कोहल (६०%) में सहज में धुल गन्ध तीव्र तथा स्वाद फीका होता है। यह जाता है। शीतोत्पादक है। इसमें जलीय द्रव होता है। __ मात्रा-~-३० से ८० बूंद तक=(१.८ से ४.७२ इसे पीसकर स्त्री के स्तन पर लेप करने से उसकी धन शतांशमीटर )। रक्षा होती है। यदि जैतून का तेल मिला लें, प्रभाव तथा प्रयोग तो और भी लाभ हो, यदि पुरुष १०॥ मासे इसकी पह निद्वाजनक है। मेनिया अर्थात् उन्माद | जड़ वा पत्तो लेकर शराब के साथ खाले, तो राग और प्रधानतः मानोमेनिया (अहिफे- नपुंसक बन जाय । इसी प्रकार ऋतुस्नानोनोन्माद) में तथा डेलीरियम् टू मेंस (मदात्यय) परांत यदि स्त्री इसे भक्षण कर ले, तो वन्ध्या ओर उग्र प्रकार की मृगीरोग में,जिसमें ब्रोमाइड के होजाय । (ख० अ०) ,
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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