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________________ एमाइल नाइट्रिस १७७१ एमाइलाई आयोडिसेटम यह औषध हितकर है । स्त्रियों के कष्टरज ( Dy- एमाइलम्-[ ले० amylum ] गोधूमज-सार । smenorrhoea) रोग में कहते हैं कि इसके निशास्ता । नशा । श्वेतसार । उपयोग से रोग-यंत्रणा कम हो जाती है। यह एमाइल-वैलेरियेनास-[अं० amyl-valeriaयोन्याक्षेप ( Uterine spasm ) का निवा- nas ] दे॰ “एमाइल नाइट्रिस" । रण करता है और जच्चा के हस्तपादादि में श्राक्षेप एमाइल-वैलेरियेनेट-[ अं० amyl-valerianहोने ( Eclampsia) को रोकता है। ate ] एक डाक्टरी औषध जो वैलेरियन (जटा सुषुम्ना-कांड पर इस औषध का अवसादक मांसो) को प्रतिनिधि स्वरूप काम में पाती है । दे. प्रभाव होता है । अस्तु, धनुष्टङ्कार ( Tetan- | "बोर्निवल" us )और कुचलीन-जन्य विषाक्रता (Strychn- एमाइल-सैलिसिलेट-[ अं० amyle salicyl. ine poisoning) में भी इसको देते हैं। ate ) संधान-क्रिया विधि से प्रस्तुत किया हुआ __ सूचना-कोमल प्रकृति या वात-प्रकृति के एक प्रकार का शीतहरित तैल (आइल अाफलोग इस दवा के प्रभाव से अधिकाधिक प्रभावित विण्टरग्रीन ) जो मीथिल सैलिसिलेट की प्रतिहोते हैं । अस्तु, उक्त प्रकृति के व्यक्तियों को बहुत निधि रूप से व्यवहार किया जाता है। यह अत्यंत सावधानीपूर्वक इस औषध का व्यवहार करना क्षोभक तथा मंद गंधयुक्त होता है। इसे प्रामवाचाहिये। ऐसे रोगियों को जो महाधमनो ( Aor ताक्रांत संधियों पर लगाकर ऊपर से ऊनी कपड़े ta) की किसो व्याधि से अक्रान्त हो या से आच्छादित कर देते हैं और ५ बूंद की मात्रा जिनकी धमनियों के स्तर वसादि में परिणत हो में इसे कैप्शूल्ज में डालका मुख द्वारा प्रयोगित गये हों वा फुफ्फुसीयाध्मान ( Emphyse- करते हैं । बोर्नियो-केम्फर (भीमसेनी-कपूर) द्वारा ma) के रोगी को और रक-प्रकृति के रोगियों को प्रस्तुत किये हुये सेलिट वा "बोर्नियोल सैलिसिar farcasret #12 ( Chronic Bronchi- लेट" के भी उपयुक्त गुण-प्रयोग हैं। साधारणतः tis) रोगियों को इस औषध का प्रयोग कदापि इसे समान भाग जैतून तेल में डायलूट कर, न करना चाहिये। श्रामवाताक्रांत संधियों पर लगाते हैं। एमिसाल पत्री-लेखन विषयक आदेश—यह औषध (amysal) “एमाइल सैलिसिलेट" के योग प्रायः सुधाई जाती है, यद्यपि इसे मुख और से बना हुआ एक प्रकार का मिश्रित प्राइंटमेंट है, स्वगीय सूचिकाभरण द्वारा भी प्रयोगित कर सकते जिसका प्रयोग प्रामवातिक संधियों पर होता है। हैं । अस्तु जब इसे सुघाना हो, तब चार-पाँच बूंद इस | ह्वि० मे० मे। औषध को रूमालपर छिड़ककर वा इसका एक ग्लास | एमाइल-हाइड्राइड-[ अं७ amyle-hydride ] कैप्शूल रुमाल में तोड़कर सतर्कतापूर्वक सुधाएँ। हींगोलोन ( rhigolene)। दे. "हींगोयदि मुख द्वारा प्रयोजित करना हो, तो सरा- लीन"। सार (६०%) में विलीन करके वा किंचिद् एमाइलाइ-आयोडिसेटम्-लेamyli-Iodisब्रांडी में मिलाकर या कतीरे के लुभाब ( Muci atum ] एक डाक्टरी असम्मत (नाटआफिlage Tragacanth) में मिलाकर दें। शल) औषध । इस औषध के ग्लास कैप्शूल भारतवर्ष में विकृत प्रस्तुत-क्रम-५ भाग प्रायोडोन को थोड़े जल नहीं होते। में आलोडित कर, १५ भाग गोधूमज श्वेतसार में टिप्पणी-रोगी इस दवा के सूघने के सावधानीपूर्वक रगड़ते हैं । यह प्रायोडीन के प्रयोग अभ्यासी हो जाया करते हैं । अस्तु, कुछ कालोप- का एक साधन है । इसे १ ड्राम को मात्रा में दूध रांत ऐसे रोगियों को एक बार औषध सुंघाने से वा जल में घोटकर बर्तते हैं। शुष्क होसिंग रूप कुछ भी लाभ नहीं हुआ करता है, जब तक उन्हें | से यह उन प्रत्येक दशाओं में प्रयुक्त हो सकता है, कई बार यह औषध न सुंघाई जाय।। जिनमें "आयोडीन" का व्यवहार होता है। किसी
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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