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________________ २०६६ कनेर शेष गुणधर्म के लिए "सफेद कनेर" देखो। गर्भाशय से मृत वा शुष्क शिशु बाहरणार्थ, यूनानी मतानुसार इसकी जड़ व्यवहार की जाती है। हकीम नूरूल इस्लाम साहब को व्याज़ में इसके पत्तों को पीसकर तेल में मिलाकर प्रलेप उल्लिखित है-"रविवार को लाल कनेर के पत्ते, करने से क्षतज कृमि नष्ट हो जाते हैं। फूख और डालियां लेकर पानी में पीसकर रस ___ इसकी जड़ के काढ़े को राई के तेल में यहीं निचोड़ और उस रस में दो मोटे कपड़ों को तीन तक श्रोटायें कि तैल मात्र शेष रह जाय । त्वरोगों ', 'बार तर करके सुखा लेवें । फिर उक्त कपड़ों की में इस तेल के अभ्यंग से उपकार होता है। . बत्ती बनाकर मिट्टी के नये चिराग में तेल डाल यदि रक्तविकार के कारण शरीर की त्वचा हाथी कर उसे जलायें। उक्न प्रकाश में स्त्री-संग करने की त्वचा की भाँति स्थूल हो गई हो, तो इसकी से वीर्य स्खलित नहीं होगा:". छाल का लेप करने से वह पूर्ववत् हो जाती है। - इग्न ज़हर के रिसाला अरबी में उल्लेख है। -ख० अ० "कनेर को तीव्र सिरके में डाल मिट्टी की हाँडी में इसके पत्तों को पका-पीसकर तेल में मिला लेप भरकर मन्दाग्नि पर कथित करें, जब कनेर की करने से संधिगत शूल निवृत्त होता है। सम्पूर्ण शक्ति द्रव में पाजाय, तब उसे साफ करके कनेर भक्षण जनित विषाक्त लक्षण और उसमें कोई अन्न भिगोकर कुलंग (कराँकुल ) को उसका अगद खिलायें, इससे वह निश्चेष्ठ हो जायगा।" इसकी जड़ भक्षण से उत्पन्न विष-प्रभाव के पदि इसको हरे सौंफ और काकनज के रस में लक्षण यह हैं-पुट्ठों की जड़ें अपना कार्य स्थगित पीसकर आँख में लगायें तो प्रारम्भिक मोतिया कर देती हैं, हृत्स्पंदन रुक जाता है, नाड़ी की गति विन्दु, नेत्रकण्डु, जाला, फूला और पपोटों का एक मिनट में १०-१५ तक रह जाती है । और जब मोटा पर्क आना ये रोग प्राराम हो। यह १० तक रह जातीहै, तब मनुष्य स्वर्ग सिधारता इसके पत्तों को अंगूरी सिरके में पीसकर प्रलेप है। इसकी छाल के विष का प्रभाव हृदय पर करने से दिन-रात अर्थात् २४ घण्टे के भीतर होता है । इसकी पत्ती, छाल और फूल इन सब दा, रोग निमूल होजाता है। में विष होता है; परन्तु मूलत्वक् में सर्वाधिक विष होता है। यह विष है । यह विषाक्त वस्तु राल की वैद्यों के कथनानुसार बागी कनेर की जड़ जात से है और उड़नशील नहीं है। कनेर के स्वबड़ी विषैली होती है। इसकी जड़ का प्रलेप यंभू वृक्षों में यह विष अधिक पाया जाता है, करने से फोड़े फुन्सी प्रादि त्वगोग श्राराम आरोपित वृक्ष में यह अल्प होता है । राल को . होते हैं । इसका ताजा स्वरस दुखती हुई आंख पानी में घोलने से उक्त विष जल में मिश्रीभूत में डाला जाता है। हो जाता है। इसकी छाल और पत्तों के खिंचे : इसके पत्तों को कथित कर उस काढ़े से आँख अर्क में विष की उग्रता अत्यधिक होती है । इसकी पर धार देने से सूजन उतर जाती है। जड़ अधिक मात्रा में सेवन करने से हस्त-पाद में इसकी जड़ की छाल का तेल बनाकर लगाने आक्षेप होने लगता है। इसकी जड़ के विष से से कई तरह का दाद और कोढ़ पाराम होता है। नाड़ी की गति प्रति मिनट घटकर ३६ तक हो इस तेल के मलने से तर और खुश्क खुजली जाती जाती है, किंतु निर्बलता नहीं होती। रहती है। ___ कनेर विष का उपाय इसके पत्तों का तेल बनाकर लेप करने से जब कनेर के भक्षण से विषाक लक्षण प्रगट हो रोगोत्पादक जीवाणु शरीर पर नहीं बैठते। जायँ, तब रोगी को कै करावे या वमनकारी यंत्र इसके पत्तों का दुधिया रस दाद पर लगाया | द्वारा भामाशय को प्रक्षालित कर डालें । परन्तु जाता है। जब विष प्रामाशय से उतर कर आँतों पर प्रभाव
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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