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________________ एफिड्रा १७६२ एफिडान अन्तःक्षेपित ( Inject ) किया जाय वा | सांस्थानिक शिरा ( Systemic vein. ) में । ये उभय दारोद अामा राय-प्रांत्र-पथ से शीघ्रतापूर्वक अभिशोषित हो जाते हैं और त्रिस्थ पेशिका ( Musculature. ) पर इनका प्रतिरोधक प्रभाव (11.hibitingeffect.) लगभग समान होता है। उभय क्षारोद रक्त प्रणालियों को संकुचित करते और स्पष्टतया रक्त-चाप की वृद्धि करते हैं। इनमें से एफोड्रोन का, जो कोष्ठस्थ गत्युत्पादक नाड़ियों के छोरों ( Vasomotor uerve) पर प्रायः निःशेष कार्य करती हैं, कोष्टीय वेगवर्द्धनीय प्रभाव (Vasopressor effect) अधिक बलवता होता है, जबकि स्युडो-एफोडीन (Pseudo-Ephedripe ) figna afztकाओं ( Musculature of the vessels ) पर भी कुछ कार्य करती हुई बतलाई गई है । स्युडो-एफोड्रोन से फुस्फुसोय और ( Portal ) क्षेत्रों में चाप-वृद्धि भी कम लक्षित होती है। वायु-प्रणालिकाओं पर इसके विस्तारक प्रभाव तथा उसो प्रकार नासिका को श्लैनिक कलाओं पर श्राकुचनकारी प्रभाव को शक्ति में एफोडीन से अावश्यक भेद नहीं होता । उभय क्षारोदों के वृक्क पर प्रभाव करने का परिणाम रक-प्रणालियों का प्रसार करना और वृक्क को आयतन-वृद्धि करना है; परन्तु स्युडोएफीडोन को दशा में एकीड़ोन द्वारा उत्पादित प्रारम्भिक क्षणिक संकोच का अभाव होता है। प्रथमोक क्षारोद ( स्युडो-एफोड़ोन) को दशा में मूत्रन प्रभाव अधिकाधिक स्पष्ट होता है। ऐच्छिक और अनैच्छिक मास-पेशियों पर उभय क्षारोदों को क्रिया लगभग एक समान प्रतीत होतो है । (इं० डू. ई०) एफीड्रीन प्रामाराय-फुस्फुसीया वा प्राणदा (vagus) नाड़ियों एवं इच्छाधीन( Autonomic) वातवहानाड़ियों को चेष्टा द्वारा रनवेग को वृद्धि करतो है ओर श्वासनाड़ो एवं उसकी शाखा-प्रशाखा को विस्तारित करती है; परंतु श्वासकेन्द्र पर इसका कुछ भी प्रभाव नहीं होता। इसका विलयन (१०० में ४ भाग) पचीस मिनट में ही आँख की पुतली को प्रसारित कर देता है और मस्तिष्क में प्रवृद्ध रक्वेगजनित अनिद्रा रोग का प्रादुर्भाव करता है। समस्त क्षुप वा मिलित उभय क्षारों की क्रिया-प्रयोग द्वारा जिस प्रकार ये श्वास-नाड़ी और उसकी शाखा का विस्तार करते हैं, उसी प्रकार रक्त-चाप को वृद्धि नहीं करते। उक्त 'हारोदों को पृथक्-पृथक उपयोग करने की श्रोता इनका सम्मिलित प्रयोग विशेष उपयोगी होता है। इनके अधिक काल तक सेवन करने से कोई अपकार नहीं होता। भारतीय एफीड़ा के चिकित्सोपयोगी प्रयोगयह पहले लिखा गया है कि एफीड्रा की अनेक भारतीय जातियों में अत्यधिक परिमाण में स्युडोएफीडीन वर्तमान होती है। अनेक दशाओं में इसकी विभिन्न जातियों से समस्त दारोदों में से एफोडोन को प्राप्ति ५० प्रतिशत से अधिक नहीं होतो । परंच उससे प्रायः बहुत ही कम मात्रा में होती है । वर्तमान काल में कारोदों का मूल्य लगभग ६००) प्रति पौंड है और इतने पर भी ये पर्याप्त मात्रा में प्राप्य नहीं होते। कतिपय भारतीय जातियों में स्युडो-एफीडीन की मात्रा एफीडोन की अपेक्षा बहुत अधिक होती है। इन घटनाओं पर दृष्टि रखते हुए हम लोगों ने यह जानने का प्रयत्न किया, कि चिकित्सा-कार्य में एफीडीन की जगह स्युडो-एकीड़ोन का उपयोग कहाँ तक सम्भव है। ___ श्वास-चिकित्सा और एफीड्रीन एवं स्युडोएफीड्रोन-उस समय से जब से कि एफीड्रोन की क्रिया (Sympathomimetic action) का अन्वेषण हुआ, श्वास-रोग की चिकित्सा में इस बारोद का विपुल प्रयोग किया जा चुका है। इसके द्वारा प्राप्त लाभ यद्यपि सर्वथा एडोनेलीनवत् प्राशुकारी नहीं, तथापि शोत्र और निश्चित अवश्य है । इसके अतिरिक्त मुख द्वारा इसका उपयोग हो सकता है । एतदर्थ सूचीकाभरण (Injection) द्वारा इसके प्रयोग की आवश्यकता नहीं
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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