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________________ १७६० एफिड्रा after faget Ephedra foliata, Boiss. ) को देश में ' कूचर" कहते हैं । यह बलूचिस्तान, सिंध, कुर्रम की घाटी, पंजाब के दक्षिणी मैदानों और नमक की पहाड़ियोंमें ३००० फुट की ऊँचाई पर मिलता है। इसमें किसो प्रकार का क्रियात्मक सार वर्तमान नहीं होता । इतिहास - श्रायुर्वेदीय एवं प्राचीन यूनानीग्रन्थों में एफिड़ा का कहीं भी उल्लेख नहीं पाया जाता । परंतु चीन देशवासी गत पाँच सहस्र वर्ष से इसका बराबर श्रोषधीय उपयोग करते आ रहे हैं । पिछली सदी से पाश्चात्य चिकित्सकों का ध्यान भी इस पधि की ओर अधिक आकृष्ट हुआ और उन्होंने इसका क्रियात्मक सार पृथक् कर इसका रोगियों पर परीक्षण किया । सर्व प्रथम टोकियोनिवासो जापानी चिकित्सक एन० नेगाई ने सन् १८८७ ई० में इससे एफिड्रोन नामक सार निकाला । पुनः सन् १३१७ ई० में दो और चिकित्सकों ने, जिनके नाम श्रम्टस और कबोटा हैं, इसके श्रौषधीय प्रभावों का भली भाँति परीक्षण किया। जो कुछ शेष था उसका पूरण डॉक्टर च्यू तथा रोड (Read) एवं श्रोरों ने सन् १६२५ ई० में कर दी, जिससे फ्रांस देशीय अन्य श्रन्वेषकों को भी इस श्रोषधि और इसके औषधीयांश के परीक्षण की प्रबलेच्छा पैदा हो गई । पश्चात् के अन्वेषणों से पता चला कि एफिड्रा केवल उत्तरी चीन तक ही परिमित नहीं है, अपितु इसकी भौगोलिक सोमा सुदूरवर्ती प्रदेशों तक भी विस्तारित है। इसकी जातियों की संख्या भी अच्छी खासी है। लियू (Liu ) नामक अन्वेषक' | का कथन है, कि कोई भी देश एफिड्रा से रिक्त नहीं हो सकता । यह सत्य भी है, क्योंकि भारत भूमि में ही इसकी बहुसंख्यक जातियाँ सुलभ हैं, जो अधिकतर हिमालय के शुष्क प्रदेशों में उपलब्ध होती हैं । इसके कतिपय भेद, जो समतल भूमि पर पाए जाते हैं, उनमें औषधीय घटक श्रत्यन्त न्यून होते हैं वा उनका सर्वथा श्रभाव होता है । हिमालय के समशीतोष्ण और उच्च प्रदेशों में भी यह किसी न किसी श्रंश में अवश्य पाया जाता है। एफिड्रा 15 रासायनिक संघटन -- ( १ ) एफिड्रोन Ephedrin ( (C10H ON ) जो एक वर्णहीन स्फटिकीय द्रव्य है । इसके हाइड्रोक्लोराइड की विवर्ण सूचियाँ होती हैं । ( २ ) स्युडो-एफिड्रोन Pseudo - ephedrine या श्राइसो एफिड्रोन ( Isephidrine ) रासायनिक सूत्र C10H15 ON जो एफिडा जिराडिऐना और एफिड्रा इंटरमीडिया में एफिड्रीन के साथ पाया जाता है । यह एफिड्रोन को हाइड्रोक्लोरिक एसिड के साथ उत्ताप पहुँचाने से प्रस्तुन होता है । सम्भवतः विकृतिशून्यता ( Stability ) ही एफिड्रीन का सर्वप्रधान गुण है | उष्णता, प्रकाश एवं वायु के प्रभाव से इसके विलयन बिगड़ते नहीं और पुराना होने से इसके गुणों में कोई अंतर नहीं होता है । अन्य भारतीय वनस्पतियाँ जिनमें एफिडी न पाई जाती है - ( १ ) बला (Sid cordifolia ) - वैसे तो इसके सर्वाङ्ग में एफिड्रोन वर्तमान होती है, किन्तु पत्ती में सबसे अधिक पाई जाती है । (२) सहिजन (Moringa pterygosper• ma ) - इसमें एफिड्रीनवत् एक प्रकार का सत्व पाया जाता है । एफिड्रीन की न्यूनाधिकता के कारण निम्न कारणों से प्रत्येक प्रकार के एफिड्रा में एफिड्रीन की मात्रा न्यूनाधिक हुआ करती है— (१) जाति भेद - अमरिकन जातीय में प्रायः एफिड्रीन नहीं होती । यूरोपियन जातीय में स्युड्रो एफिड्रोन नामक एक श्राइसोमेरिक पदार्थ होता है । चोनी और भारतीय जातियों में एफिड्रोन और स्युडो-एफिड्रोन प्रायः दोनों पाई जाती हैं। इन दोनों क्षारोदों में से प्रत्येक परिमाण उसकी जाति पर ही निर्भर करता है । (२) ऊँचाई - इसके उत्पत्ति-स्थान की ऊँचाई के अनुसार एफिड्रीन की मात्रा में भेद हुआ करता है । परन्तु यह बात भारतीय जातियों में नहीं पाई जाती । (३) वृष्टि - जहाँ जितनीही अधिक वार्षिक वृष्टि होती है, वहाँ के एफिड्रा में उतनी ही अधिक
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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