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________________ कदली २०० बुनो कला-बं० । काष्ठकेले-म०। Wild Pla-| utain ( Masa spientum) - (२) कृष्ण कदली-(यह महाराष्ट्र में प्रसिद्ध है) (३) गिरिकदली-(पार्वतीय कदली वृक्षपहाड़ी केला ) गिरिकदली, गिरिरम्भा, पर्वतमोचा, अरण्यकदली बहुवीजा, वनरम्भा, गिरिजा, गजवल्लभा (रा०नि०)-सं० । पहाड़ो केला, पर्वती केरा-हिं। (४) सुवर्ण कदली-सुवर्ण कदली, सुवर्ण रम्भा, कनकरम्भा, पीता, सुवर्णमोचा, चम्पकरम्भा, सुरम्भिका, सुभगा, हेमफला, स्वर्णफला, कनकस्तम्भा, पीतरम्भा, गौरा, गौरम्भा, काञ्चन कदली, सुरप्रिया (रा. नि०) कणक मोचा, कणकरंभा-सं० । सोनकेला, रायकेला, - हिं० । चापाकला - सोनकेली-को पाटोया-उत्० । (५) चम्पक-सुवर्णकदली, चम्पक रम्भा (रा०नि०)-सं० चंपा केला-हिं० । चाँपा कला । (६) मयंकदली- मर्त्यमान कला-बं० । मर्तबान केला-हिं। संज्ञा निर्णायनी टिप्पणी-अति पूर्वकाल में भारत में इसे 'मोचक' कहते थे । मोचक का अर्थ 'मुक्त हुआ है । प्रथमतः वृक्ष के गर्म से इसका जो फूल निकलता है, वह एक प्रावरणी के भीतर रहता है। उसी प्रावरणी के फटने पर फूल पाता है। प्रत्येक फूल गुच्छगात्र में दूसरे प्रावरण से श्रावृत रहता है । वह प्रावरण युक्त होनेपर फल निकलता है। इसीसे फल को मोचक कहते हैं। शिवपूजा के मंत्र में हम केले का मोचा नाम यह सरस भूमि में ही अच्छी तरह उपजता है। अंशुमत्फला से अंशु वा तन्तु रखनेवाले द्रव्य का अर्थ निकलता है । केले के वृक्षका तन्तु विशेष विख्यात है। वारणवुषा और वारणवल्लभा का अर्थ हस्तिप्रिया है । सकृत्फला शब्द से साल में एक वृक्ष के एक ही वार फल देने का अर्थ निक- . लता है । भानुफला का अर्थ सूर्योत्तापप्रिया है। वनलक्ष्मी वन की शोभा बढ़ानेवाले फल का द्योतक है। इससे वन में भी धनागम वा प्राणधारण होता है । हस्तिविषाणी से ऐसा फल अभि प्रेत है जो हस्तिदन्त की भाँति सुगोल, दीर्घ, अथच ईषत् वक्र हो। चर्मण्वती का अर्थ चर्म की भाँति प्रावरणयुका है। इसी प्रकार अन्य संस्कृत शब्दों के अर्थ भी समझे जा सकते हैं। इसकी भारव्य संज्ञा 'मौज़' संस्कृत मोचा शब्द से व्युत्पन्न है । लाटिन भाषा का 'मिउसा" वा "मुजा" शब्द अरबी मौज़से व्युत्पन्नहै । इसकी अंगरेजी संज्ञा 'बनाना' 'ग्रोक' 'अरियाना' Ariana शब्द से व्युत्पनहे। ग्रीक अरियाना संभवतः तैलङ्गी भाषा के अरिति शब्द से व्युत्पन्न है । ग्रीक अरियाना का अन्यतम पर्याय औराना (Our. ana) है ।कितने ही लोग ग्रीक औराना शब्दको संस्कृत के वारणवुषा शब्द से व्युत्पन्न मानते हैं। क्योंकि ग्रील भाषा में भारतीय जिन औषधियों का उल्लेख हुआ है, उनका देशीय नाम अधिकारा दक्षिण देशीय भाषा सेही संगृहीत हुआ है। प्लाण्टेन शब्द ग्रीक ग्रंथकार सावफरिस्तुस ( Theophrastus ) वा रूमीप्लाइनी (Pliny ) द्वारा उल्लिखित पल नामक शब्द से व्युत्पन्न है । तदुक्क पल वृक्ष और उसके फल का वर्णन सर्वथा कदली वृक्ष और कदली फल से मिलता-जुलता है। पुनः उन्होंने उसे हमारे ऋषियों का खाद्य भी बताया है । अस्तु, इसमें कोई सन्देह नहीं कि 'पल' संस्कृत फल वा तामिल 'बल' शब्द से व्युत्पन्न है । मलावार में अब भी इसे 'पल' नाम से ही अभिहित करते हैं। उत्पत्ति स्थान और भेद-भारतवर्ष ही केले का श्रादि वास स्थान है और वह यहाँ सर्वत्र होता है। किंतु पाश्चात्य प्रदेश की अपेक्षा पूर्व प्रदेश और दाक्षिणात्य में ही अधिक होता है। "एतत् मोचाफलं नमः शिवाय नमः।" कोई भी इस स्थल पर कदली, रम्भा वा अन्य संज्ञा का व्यवहार नहीं करता । प्राचीन निघण्टु ग्रन्थ में 'मोचा' शब्द कदली वृक्ष के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। राजवल्लभकार ने मोचा ( केले का फूल) के अर्थ में मोचक शब्द का व्यवहार किया है। कदली का अर्थ जल में ही पुष्टि पाना है। केले का वृक्ष कुछ जल प्रधान होता है ।
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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