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________________ २००६ कदम्ब पुष्पा शालि । जड़हन । एक प्रकार का धान । रा० नि० व० १६ | कदम्बपुष्पा - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] गोरखमुंडी । महाश्रावणी | रा० नि० व०५ । मुण्डितिका वृक्ष | .कदम्बपुष्पिका, कदम्बपुष्पी - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] गोरखमुण्डी । महाश्रावणिका । यथा - "कदम्ब पुष्पी मन्दारी ।” भा० पू० १ भ० । सु० चि०१६ श्र० । कदम्बम् - [ ] एक प्रकार का कदम जो दक्खिनी हिन्दुस्तान: होता है । कम्पम, ( Siegesbe ckia Orientalis) कदम्ब वायु- सं० पु० [सं० पु० ] सुगंध वायु । खुशबूदार हवा | कदम्बा, कदम्बी-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] घघरबेल । वंदाल | देवदाली लता । रा०नि० ० ३ । कदम्बानल - दे० "कदम्बवाय” । कदम्बादिकषाय- स० पुं० [सं० पु ं०] एक प्रकार का क्वाथ | योग — कदम्बमूल की छाल, खदिर और पीली कटसरैया की जड़ समान भाग मिश्रित कर काथ बनायें । इसके सेवन से एक मास में स्त्री का योनि शूल नष्ट होता है । बसवरा० १६ प्र० पृ० २४६ । | कदम्ब - [ते०] कदम । कदर - संज्ञा पु ं० [सं० पु० ] ( १ ) सफेद खैर | श्वेत खदिर । पपरिया कत्था । पर्याय- सोमवल्क, ब्रह्मशल्य, खदिरोपम, सोमवल्कल, खदिर, श्वेतसार, (२) बबूल, बबूरक वृक्ष - र० मा० । कदरा -संज्ञा स्त्री [सं० त्रो० ] (१) असगंध । श्रश्वगंधा | के० दे० नि० । नि० शि० । ( २ ) दे० " कदर " कदरू - [ शीराज़ी ] अंज़रूत । कदम्बिका-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] कदम का पेड़ करो - संज्ञा स्त्री० [सं० कद = बुरा + रव = शब्द ] मैना वै० निघo | कदम्ब वृक्ष | के आकार का एक पक्षी । -संज्ञा पुं० [सं० नी० ] वेदना । व्यथा । तकलीफ । गुण- भावप्रकाश के मत से यह विशद, वर्ण के लिये हितकर और मुखरोग, कफ तथा रक्तदोष विनाशक है । "खदिराकृतिः श्वेतसारः यथा । - " खदिर कदर भंडी । " वा० सू० ११ ० श्रसनादि-गण। “कदरः खदिराकरः श्वेतसारः कदला संज्ञा पुं० [सं०ली० ] ( १ ) एक रोग | मे० रत्रिकं । वह बेर के समान ऊंची गाँठ जो पैर में काँटा वा कंकड़ी (वा ठीकरी ) चुभने से पड़ जाती है । और कड़ी होकर बढ़ती है। गुलाबुर । 1 चाँई । टाँकी । गोखरू - हिं० । कुल श्राँटी, कड़ा, जामुड़ा - बं० | सु० नि० १३ श्र० | मा० नि० तु० रो० । नोट - कोलवत् के स्थान में कहीं कहीं कीलवत् पाठ आया है। वहां उसका अर्थ "कील के समान ऊँची गाँठ समझना चाहिये । यह रोग हाथों में भी होता है 1 चिकित्सा - श्रद्वारा कदर को निकालकर तप्त तैल तथा अग्नि से उक्त स्थान जला देना चाहिये । (२) एक प्रकार का पायस । जमा हुआ दूध श० मा० । सु० सू० ३८ श्र० ड० । च० सू० ४ ० ४३ दश के (३) लकड़ी चीरने का चारा । क्रकच | मे० | (४) अंकुश । श्रकुस | संज्ञा पु ं० [] (१) केवड़ा काज़ी (श्रु० ) काढ़ी (फ़ा० ) । (२) गँदलापन | अस्वच्छता गँदला होना । धुँधला होना । कदरफल - [?] उप्पी | कदरम - [मल०] खैर | कदल, कदलक - संज्ञा पुं० [सं० पु० ] (१) केला । कदलीवृक्ष । (२) पिठवन । पृश्निपर्णी । मे० । श० र० । कदल - संज्ञा पु ं० [सं० क्री० ] कपाल । नराङ्गुर । मे० लत्रिक | कदलडी - [ मल० ] श्रपामार्ग | चिर्चिटा | कदल तङ्गाय - [ मल० ] दरयाई नारियल । कदल नोराय - [ मल० ] समुदरफेन । समुद्रभाग । कदलमु - [ ते० ] केला । कदली । कदला - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] ( १ ) केले का पेड़ | कदली वृक्ष । ( २ ) पिठवन । पृश्निपर्णी । ( ३ ) सेमल का पेड़ | शाल्मली वृक्ष । ( ४ ) डिम्बिका | मे लत्रिक |
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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