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________________ कदम २००३ कदम . यूनानी मतानुसार. प्रकृति-सभी प्रकार के कदम शीतल और | रूक्ष हैं । इसके बड़े भेद वा महाकदम्ब को उष्ण लिखा है। हानिकत्ता-शीतल प्रकृति को हानिप्रद है। यह आध्मानकारक एवं कफजनक है। दर्पघ्न-गरम मसाला और मांस | प्रतिनिधि-बालूबालू । प्रधानकर्म-पित्तघ्न । मात्रा-१-२ तो०। गुण, कर्म, प्रयोग-यह कफ और पित्त के दोष को मिटाता और रक्त को सांद्र करता है। अपने प्रभाव से यह स्त्रियों एवं ख्वाजा सराओं के स्तन दीर्घ करता है । यह मांस को सुस्वादु बनाता और निर्बिषैल है। -म० मु०। इसकी पत्ती अत्यन्त शीतल है और यह कफ पित्त एवं रक्त के दोष मिटाती है। -ता० श० । ___ ग्रामीण लोग इसे अधिकता से खाते हैं, यह पित्तघ्न, हृल्लास निवारक, उष्माहारक, और पिपासाहर है । यह अम्लस्वाद युक्त होता है और मांस के साथ कच्चा पकाया हुश्रा सुस्वादु होता प्रत्यंग स्त्रियों तथा खवाजा सराओं के स्तनों को दीर्घता प्रदान करते हैं और कण्ठगत रोगों को लाभकारी है। -ख. अ०। नव्यमत डीमक-कदम का फल जो आकार में प्रायः छोटी नारंगी के बराबर होता है, यहाँ के निवासी खाते हैं और इसे शीतल एवं कफ तथा रक्रदोष को नष्ट करनेवाला मानते हैं। इसकी छाल वल्य और ज्वरध्न मानी जाती है।. तालुपात-रोग में शिशु के सिर पर इसका ताजा रस लगाया जाता है और साथ ही थोड़ा रस जीरा और चीनी के साथ मुख द्वारा प्रयोजित किया जाता है। चतु शोथ वा अभिष्यन्द रोग में इसकी छाल का रस नीबू का रस (Lime-juice) अफीम और फिटकरी इन सबको बराबर बराबर लेकर अति गुहा ( Orbit ) के चतुर्दिक लगाएँ। (फार्माकोग्राफिया इंडिका, खं० २, पृ० १७०) आर० एन० खोरी-धारा कदम्ब अर्थात् कदम को लोग वन्य सिङ्कोना कहते हैं। इसका त्वक् वलकारक है, एवं त्वक्-स्वरस जीरे के चूर्ण और चीनी के साथ शिशुओं के वमन-प्रतिकारार्थ व्यवहार किया जाता है। फल शीतल, श्रमापह और ज्वरघ्न होता है । ज्वर में प्यास का प्रवल , वेग होने पर फल का रस सेवन किया जाता है। ( मेटीरिया मेडिका अॉफ इण्डिया-२ य खं० ३२५ पृ०) नादकर्णी ने यह अधिक लिखा है 'इसकी छाल का काढ़ा ज्वर में दिया जाता हैमुखपाक (Aph the or Stomatitis) रोगमें इसके पत्र काथसे गंडूष कराया जाता है।" (ई. मे० मे० पृ०७४) ए० सी० मुकर्जी-मुखपाक रोग में इसके पत्र-काथ का गरगरा वा कुल्लियाँ कराई जाती हैं। (वैट्स डिक्शनरी) कभी-कभी कदम की पत्ती मवेशियों को खिलाई जाती है । लकड़ी मुलायम एवं सफेद रंग की होती है । पर उसमें कुछ-कुछ पीलापन भी झलकता है। इससे कछार और दारजिलिंग में चाय के सन्दूक बनते हैं । कदम से कड़ियों और बरंगों का भी काम निकलता है। कारण इसकी __ वैद्य कहते हैं कि यह चरपरा, कड़ा , मीठा कसेला, खारा, शीतल, रूत और गुरुपाकी है तथा दुग्ध, वीर्य, और शारीरिक शक्ति को बढ़ाता है। यह रक्कदोष, सूजाक, अतिसार, बादी कफ, पित्त, विष और गरमी को दूर करता है। इसकी छाल का काढ़ा पिलाने से ज्वर छूटता है। इसका त्वक् बल्य है । इसके पत्र क्वाथका गंडूष करनेसे मन्वां ? दूर होता है । इसकी हरी कोपलें कसेली, शीतल, पाचन शक्तिवर्द्धक, तथा लघुपाकी है और अरुचि को निमूल करती है। ये सुर्खबादा और अतिसार को लाभ पहुँचाती है । इसके फल क्षुद्वोधकारक गुरु एवं उष्ण होते हैं, कफ एवं वीयें उत्पन्न करते और खाने के काम में आते हैं। इसके पके हुये फल बादी, पित्त और श्लेष्मा का नाश करते हैं । फूल और पत्ते पित्तज रोगों एवं रक्तविकार में लाभकारी है और फोड़े फुसी एवं खाज़ को दूर करते हैं। अपने प्रभावज गुण के कारण करम के |
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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