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________________ कटेरी उक्त दोष मिट जाते हैं और गर्भ सुरक्षित रहता एवं स्वस्थ शिशु का प्रसव होता है । १६५६ कण्टकारी त्वक्-श्राध पाच कटाई की छाल पोटली में बाँधकर दो सेर ताज़े गोदुग्ध में श्राधा दूध शेष रहने तक पकायें । तदुपरांत उसे साफ करके पियें। वादी और अम्ल पदार्थ खाने पीने से परहेज़ करें । इससे साध्य क्लीवत्व का रोगी भी पुनरपि पुत्व शक्ति प्राप्त करता है । उसकी स्वाभाविक पु ंस्त्व शक्ति स्थिर हो जाती है और वह मर्द बन जाता है। कटाई के फूल इसके फूल शीघ्रपाकी एवं वात कफनाशक और क्षुधाजनक हैं तथा कास और हिक्का को लाभ प्रद हैं। इसके फूलों का जीरा विबंधनाशक है औौर वस्त्यश्मरी को निकालता है । यदि इसे पीसकर मधु में मिलाकर शिशु को चटायें, तो तज्जात कास रोग दूर हो । - ० ० । डाक्टर विलसन ( Calcutta Med. Phye. Trans, Vol !!, P. 406 ) के मतानुसार इसके कांड, पुष्प और फल तिक एवं वायु निस्सारक हैं और जलपूर्ण विस्फोटक युक्त पाद-दाह Ignipelitis ) में प्रयोजित होते हैं । - फ्रा० इं . २ भ० पृ० २५८ । वंध्या स्त्री को श्वेत कटेरी का फूल खिलाने से उसे गर्भस्थापन होता है । उसे खाने से श्रामाशय की शक्ति बढ़ जाती है और श्राहार- पाचन में सहायता प्राप्त होती है और कफ, कास, कृच्छ,,कुष्ठ और कफ ज्वर आराम होते हैं। कटाई और फल के बीज इसके फलों को मस्तक पर लगाने से शिरःशूल श्राराम होता है । इसके फलों को कूटकर सम भाग तेल मिला कर कथित करें । जब द्रव भाग जलकर सूख जाय और तैल मात्र शेष रह जाय तब तेल को वस्त्र-पूत करलें । इस तेल के अभ्यंग से कठिन से कठिन वायु के रोग शांत होते हैं। इसके रस में मधु मिलाकर चटाने से सूजाक राम होता है। कटेरी कटेरी के बीजों को मक्खन निकाले हुये दूध में वें और फिर शुष्क कर लेवें । इसके बाद उन बीजों को छाछ में भिगोकर रात भर रहने दें और दिन में सुखा लिया करें। इस प्रकार चार-पाँच दिन तक करें। इन बीजों को घी में तलकर खाने से उदरशूल और पित्तज व्याधियाँ शांत होती हैं । इसके बीजों को पानी में पीसकर प्रलेप करने सूजन उतरती है। से I इसके बीजों को पीसकर इन्द्रो पर मर्दन करे और ऊपर से एरण्ड-पत्र 'बाँध देवें । इससे मैथुन शक्ति पैदा होती है और नपुंसकता का नाश होता है । इसको (फल) पीसकर खिलाने से साँप का विष उतरता है | ख़० श्र० । इसके फल का लेप कफजात सूजन को सम्यक् विलीन करता है एवं यह उसके लिए गुणकारी है । इसके खाने से कास एवं श्वास दूर होते हैं । परन्तु यह श्राकुलताजनक है अर्थात् इससे व्या कुलता एवं मूर्च्छा उत्पन्न होती है | ( उत्तम यह है कि इसे शुद्ध करके काम में लावें ) फल पाचक ( और सुधाजनक ) है । म० मु० 1 इसके फल का प्रलेप कफज शोथों को विलीन करता और बाल काले करता है । कास, श्वास, कफ और पित्त के दोष, ज्वर, पार्श्व-शूल, मूत्र कृच्छ्र. मलावष्टंभ कब्ज, सूंघने की शक्ति का जाते रहना, उदरज कृमि और बंध्या स्त्रियों के रोग- इनमें कटेरी के फूल और फल का सेवन लाभकारी है। । बु० मु० । इसका फल हुक्का में तमाकू की भाँति सेवन करने से दंत कृमि नष्ट होजाते हैं । यदि इसके फल को पानी में पकाकर गो घृत भून लें, और मांस, मसाला एवं प्याज के साथ पकाकर खायें, तो वात, पित्त, कफ, श्वास, कास, पार्श्व शूल, ज्वर, मूत्रकृच्छ, प्राण शक्ति का नष्ट होजाना इन रोगों में उपकार हो तथा यह उदर कृमि नष्ट करने और बन्ध्या स्त्रियों के रोग - निवारण करने के लिये यह बहुत ही गुणकारी है। यह पाचक और बल्य है । इससे चित्त प्रप्तन्न रहता
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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