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________________ १६०८ कचु - संज्ञा पुं० [सं० स्त्री० ] ( १ ) इस नाम का एक पौधा जिसकी जड़ में कंद होता है । कचु गाछ -( बं० ) । ( २ ) कच्ची । श्ररुई । घुइयाँ । (३) मानकंद | मान कचु (बं० ) । कास- श्रालू ( मरा० ) | माणक (सं० ) | ( ४ ) कचूर । ( ५ ) हल्दी | 9 कचुगुन्दवी - [ बं० हिं० ] ( Hamalomena aromatica.) कचुबंग - [ मल • ] धतूर । कंचुरा - संज्ञा पु० [?] कंचूर | कचुरी-संज्ञा स्त्री० [देश० ] साँप का केचुल । कंचुकी । कचुरीकिज ङ्ङ - [ मल० ] कचूर | कर्चू रे । कचुरो -[ गु० ] कचूर | कल कलंग - [ म० ] कचूर । कचुविलायती - संज्ञा स्त्री० [ द० ] चंद्रमल्लिका | कचुसाक-संज्ञा पुं० [ कचु+साक ] कचु । कच्ची । Arum Colocasia. कचू-संज्ञा पु ं० [हिं०, बं० ] एक प्रकार की घुइयाँ । Colocasia Antiquorum, Schott. कचूकतार-संज्ञा पु ं० [सं० ] कंबी | कचूधारा - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] श्रम्बाड़े का पत्ता । कचूमन - [ शीराज़ी ] काकनज | कचूमर - संज्ञा पु ं० [देश० ] जंगली गूज़र । दे० "कठूमर"। कर-संज्ञा पु ं० [सं० कचूरः ] हल्दी की जाति का एक पौधा जो ऊपर से देखने में बिलकुल हल्दी की तरह का होता है, पर हल्दी की जड़ में और इसकी जड़ वा गाँठ में भेद होता है । कचूर की जड़ वा गाँठ सफ़ेद होती है और उसमें कपूर की सी कड़ी म होती है । इसको ज़मीन से खोदकर जल में पकाकर सुखा लेते हैं। यह सोंठ के बराबर छोटी गाँठ होती है, जो सुगंधित और तिक्र एवं तीक्ष्ण श्रास्वादयुक्र होती है। इसमें जो मधुर श्रास्वादयुक्त और अल्पगंधि होता है, वह असली कचूर नहीं है। कचूर का पौधा सारे भारतवर्ष में लगाया जाता है और पूर्वीय हिमालय की तराई में श्रापसे श्राप होता है । नरकचूर ( Curcuma Coe. sia, Roxb.) इसका एक बड़ा भेद है, जिसे कचूर संस्कृत में "शटी" वा "पृथुपलाशिका' कहते हैं । वि० दे० "नरकचूर” | पर्य्या–कचूरं, कचूर; गन्धमूलः, द्राविदः, कार्श्य, वेधमुख्यः, दुर्लभः, सढी, ( ध० निः ), कचूरः, द्राविड़ः, कार्शः, दुर्लभः, गन्धमूलकः, वेधमुख्यः, गन्धसारः, जटिलः ( रा० नि० ) कचूरः, वेधमुख्यः, ( वेध्यमुख्यं ) द्राविदः, कल्पकः, शठी, ( भा० ), कचेारः, स्थूलकन्दः, सटी, गन्धः (द्रव्य ० ), शटी ( मद० ), काल्पकः, वेधमुख्यकः ( श्र० का० ), दुर्लभः ( गण०), कचुरः, कचुरेकः, जटाल, काश्यं सं० । कचूर[हिं० द० | कोवूर, शोड़ी, शटी, सूठ-बं। ज़रंबाद, उरूकुल काफ़र, इकुल काफ़र अ० । कज़.. र ज़. रंबाद,ज़ ुरंबाद, जरंबाद - फ्रा० । कयुमा ज़ेडोgfer Curcuma zedoari, Rosce., क' मा जेरम्बेट Curcuma zerumbet, Roxb.( Root of - Long zedoary) - ले० । लाँग ज़ेडोएरी ( Long ) Zedoary - श्रं । ज़ेडोरो Zedoaire-फ्रां० । किच्चि - लिक्किज़ङ्ग, पूलाङ्किज़ङ्ग ु - ता० । किञ्चिलि-गडुलु, कचोरम्, श्रौकानोकचेट्टा - ते० । कञ्च्चोलम् कच्चरि किज़ङ, पुला-किज़ङ, अडवी कछोल-मल० । कचोरा-कना० | कचोर - मरा०, कों० । काचूर, कचूरी - गु० | कचूर - बम्ब० । धानुर्वे - बर० | हिं०हुई - सिं० । कचोर, काचरी, कुव्- मरा० । आर्द्र वा हरिद्रा वर्ग (N. O. Scituminece ) रासायनिक संगठन - एक प्रकार का अस्थिर तैल, एक विक्र मृडुराल, कयुमीन प्रभृति, राल, शर्करा, निर्यास और सैन्द्रियकाम्ल, श्वेतसार, तंतु (Curde fibre ), भस्म, आर्द्रता, अल्ब्युमिनाइड्स और अरबीन इत्यादि । इससे प्राप्त तैल पीताभ श्वेत ऐवं चिपचिपा Viscid और (turil तथा कर्पूरवत् गंधास्वादमय होता है । इसकी जड़ में जदवारीन Zdoarin ) नामक सत्व प्राप्त होता है। औषधार्थ व्यवहार — मूलकन्द तथा पत्र | इसकी जड़ लंका से बम्बई आती है । भारतवर्ष में इन श्योषधि का प्रधानतः सौंदर्यवद्ध न लेपादि
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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